ढैंचा सुधारेगा खेतों की सेहत
सहरसा। कोसी क्षेत्र में एकतरफ बाढ़ का कहर है तो दूसरी तरफ जमीन में कई महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है। रसायनिक खाद के प्रयोग के कारण यह समस्या और गहराती जा रही है। सरकार द्वारा जैविक खाद प्रोत्साहन योजना बंद करने के कारण इस क्षेत्र में खाद का निर्माण भी बंद है।
सहरसा। कोसी क्षेत्र में एकतरफ बाढ़ का कहर है तो दूसरी तरफ जमीन में कई महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है। रसायनिक खाद के प्रयोग के कारण यह समस्या और गहराती जा रही है। सरकार द्वारा जैविक खाद प्रोत्साहन योजना बंद करने के कारण इस क्षेत्र में खाद का निर्माण भी बंद है।
इस समस्या के समाधान के लिए रबी की खेती के साथ कृषि विभाग ने बड़े पैमाने पर ढैंचा और मूंग की खेती कराने की योजना बनाई है। इसके लिए जहां सैकड़ों एकड़ में प्रत्यक्षण होगा, वहीं किसानों को अनुदानित दर पर बीज और किट दिया जाएगा।
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क्या है ढैंचा और मूंग की फसल से फायदा
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कृषि विज्ञानी का मानना है कि ढैंचा एक तरह से यूरिया की फैक्ट्री है, जो सबसे अधिक नाइट्रोजन फिक्स करता है। इससे हरित खाद के उत्पादन को बढ़ावा मिलता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। इससे गरमा के मौसम में खेतों में तेज धूप एवं हवा के कारण मिट्टी की ऊपरी परत का अपरदन समाप्त करता है। कृषि विज्ञानी डा. आरसी यादव कहते हैं कि ढैंचा और मूंग जैसा छीमीदार पौधा जमीन में नाइट्रोजन फिक्स करने में सबसे कारगर साबित होता है।
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लाभांवित होंगे इलाके के किसान
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ढैंचा की खेती के 40 दिन बाद इसे खेत में ही जोत दिए जाता है, जिससे खेतों को कई पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। वहीं मूंग की खेती को बढ़ावा दिए जाने से इलाका दलहन की खेती के प्रति आत्मनिर्भर होगा और इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी। गत वर्ष भी इलाके में बड़े पैमाने पर मूंग की खेती की गई थी, जो यास तूफान के कारण बर्बाद हो गयी। इस वर्ष सभी प्रखंडों का लक्ष्य निर्धारित कर ढैंचा व मूंग की खेती कराए जाने की योजना है।
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कोट
ढैंचा और मूंग की खेती से खेतों को पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन व अन्य पोषक तत्व प्राप्त होता है। इस लिहाज से विभाग ने अधिकाधिक किसानों को ढैंचा और मूुंग की खेती के लिए प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया है। इस वर्ष बड़े पैमाने पर इसकी खेती कराई जाएगी।
दिनेश प्रसाद सिंह, जिला कृषि पदाधिकारी, सहरसा