गांव जलमग्न और सूखी पड़ी है नहरें

सहरसा। कहते हैं कोस-कोस पर पानी बदले चार कोस पर वाणी। फिलहाल कोसी की हालत ऐसी ही है। एक तरफ इलाका जलमग्न है और दूसरी तरफ नहरें सूखी पड़ी हैं। कहीं यह टूटी-फूटी भी हैं। नहरों में जंगल उग आए हैं लेकिन पानी नहीं आ रहा है। जिस नहर के भरोसे कोसी के पानी को नियंत्रित करने की योजना बनी उस मुख्य नहर में भी पानी का अभाव है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 30 Jul 2021 06:31 PM (IST) Updated:Fri, 30 Jul 2021 06:31 PM (IST)
गांव जलमग्न और सूखी पड़ी है नहरें
गांव जलमग्न और सूखी पड़ी है नहरें

सहरसा। कहते हैं कोस-कोस पर पानी बदले चार कोस पर वाणी। फिलहाल कोसी की हालत ऐसी ही है। एक तरफ इलाका जलमग्न है और दूसरी तरफ नहरें सूखी पड़ी हैं। कहीं यह टूटी-फूटी भी हैं। नहरों में जंगल उग आए हैं लेकिन पानी नहीं आ रहा है। जिस नहर के भरोसे कोसी के पानी को नियंत्रित करने की योजना बनी उस मुख्य नहर में भी पानी का अभाव है। इसका खामियाजा अन्नदाताओं पर पड़ रहा है। वो धान रोपनी के लिए पटवन का सहारा ले रहे हैं। इधर अधिकारी व कर्मचारी फाइलों पर पड़ी धूल झाड़ रहे हैं।

सहरसा और सुपौल जिले में दर्जनों गांव बाढ़ के फैले पानी के कारण जलमग्न है। कई स्थानों पर कटाव लगा हुआ है। वहीं इलाके की नहरें सूखी पड़ी है। नहरों के इर्द- गिर्द मैदानी इलाके में किसानों को पानी के लिए बारिश का इंतजार है। नहर की मरम्मत के नाम पर करोड़ो खर्च होने के बाद भी जगह- जगह नहर व उपनहर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। कहीं नहर का अतिक्रमण कर लिया गया, तो कहीं जर्जर नहर खेतों तक पानी पहुंचाने में अक्षम साबित हो रही हैं। मौसमी कर्मियों के मजदूरी तक का भी समय पर भुगतान नहीं होता। फलस्वरूप जर्जर नहर की नियमित देखरेख भी नहीं होती।

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मुख्य नहर से वितरणियों तक का है बुरा हाल

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सहरसा जिले में 37.19 किलोमीटर सहरसा उपशाखा और 11.58 किलोमीटर सुपौल उपशाखा नहर गुजरी है। सुपौल जिले की मुख्य नहर से अगर पानी पहुंच भी गई तो अन्य नहरों व वितरणियों में पानी पहुंचे यह जरूरी नहीं है। सहरसा जिले में स्थित बनगांव वितरणी, कहरा, रूपनगरा, चैनपुर, सुलिदाबाद, बनगढ़ा आदि लघु नहरों का बुरा हाल है। ये नहरें खेतों तक पानी नहीं पहुंच पाती। चालू खरीफ मौसम में सिचाई विभाग ने नहरों के माध्यम से 44920 हेक्टेयर सिचाई का लक्ष्य है, परंतु नहरों की स्थिति को देखकर 25 फीसद भी लक्ष्य को पूरा किया जाना कठिन प्रतीत होता है।

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विभागीय राजस्व वसूली को भी लग रहा है चूना

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नहरों से सिचाई व्यवस्था पूरी तरह फेल है। यही कारण है कि सिचाई शुल्क भी विभाग वसूल नहीं कर पा रहा है। सिचाई के लिए विभाग द्वारा खरीफ में 88 रुपये प्रति एकड़, रबी में 75 रुपये प्रति एकड़ और गरमा के लिए एक सौ रुपये प्रति एकड़ दर निर्धारित है। यह किसानों के लिए काफी सस्ता और लाभकारी है, परंतु सिचाई व्यवस्था दुरूस्त नहीं रहने के कारण विभाग यह मामूली शुल्क भी किसानों से वसूल पाने में विफल साबित हो रहा है। विगत कई वर्षों से इस मद में विभाग को एक पैसा भी राजस्व नहीं मिल पाया है।

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जीर्णोद्धार व मरम्मत के नाम पर 129 करोड़ रुपये का आवंटन

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कुसहा त्रासदी के बाद कोसी क्षेत्र की नहरों पर लगभग साढ़े 12 हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए। इस कार्य को शत- प्रतिशत पूरा किए बिना ही राशि का उठाव कर लिया गया। इसके अलावा हर वर्ष सहरसा मुख्य अभियंता सिचाई सृजन के अधीनस्थ कार्यालयों को नहरों के रखरखाव और मरम्मत के नाम पर राशि का आवंटन मिलता रहा, परंतु नहरों की हालत दिन- ब- दिन बिगड़ती जा रही है। चालू वित्तीय वर्ष में भी इन कार्यालयों को 129 करोड़ पैतालीस लाख रुपये का आवंटन प्राप्त हआ, बावजूद इसके नहरें सूखी पड़ी है। सिचाई के लिए किसानों में हाहाकार मचा है।

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मुख्य अभियंता सिचाई सृजन, जलसंसाधन विभाग के विभिन्न प्रमंडलों को प्राप्त आवंटन

1. सिचाई प्रमंडल वीरपुर - 40 लाख

2. सिचाई प्रमंडल राघोपुर- 25 लाख

3. सिचाई प्रमंडल त्रिवेणीगंज- 25 लाख

4. सिचाई प्रमंडल सहरसा- 35 लाख

5. सिचाई प्रमंडल बथनाहा- 35 लाख

6. सिचाई प्रमंडल नरपतगंज- 25 लाख

7. सिचाई प्रमंडल अररिया- 25 लाख

8. सिचाई प्रमंडल कटिहार- 25 लाख

9. सिचाई प्रमंडल मुरलीगंज- 25 लाख

10. सिचाई प्रमंडल बनमंखी- 25 लाख

11. सिचाई यांत्रिक प्रमंडल पूर्णिया- 70 लाख

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कोट

खेती के समय में नहरों में पानी नहीं रहना बेहद ही गंभीर विषय है। इसके कारणों की जांच कराकर उचित कार्रवाई की जाएगी। जिन नहरों में पानी नहीं पहुंच रहा है, उसके लिए भी त्वरित कदम उठाया जाएगा।

राकेश रंजन,

मुख्य अभियंता, सिचाई सृजन, जल संसाधन विभाग, सहरसा।

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