चुनाव में नहीं होता था धनबल का उपयोग
सहरसा। आगामी सात नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर मतदाताओं में उत्साह है। हालां
सहरसा। आगामी सात नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर मतदाताओं में उत्साह है। हालांकि इस चुनाव के दौरान वैसे मतदाताओं से बातचीत की गयी जिन्होंने पहले कई बार मतदान किया है। पहले के चुनाव कैसे होते थे और आज होने वाले चुनाव में क्या बदलाव हुए हैं। इसको लेकर बुजुर्ग मतदाताओं से संपर्क किया गया।
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महिलाएं घूंघट और पुरुष कुर्ते - पजामे में मतदान केंद्रों के बाहर बैलेट पेपर के जरिए अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने के लिए खड़े नजर आते थे। न आज की तरह तड़क-भड़क थी और न ही इस कदर धनबल का जोर चुनाव में चलता था।
तीर्थ नाथ साह
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राजनीतिक दल किसी कीमत पर चुनाव जीतना चाहते हैं, फिर उसमें नैतिकता के लिए जगह कहां बचती है। राजनीति जन सेवा की जगह सत्ता, संपत्ति और शक्ति का स्त्रोत हो जाए तो उसमें हर वर्ग का आकर्षण होता है। चुनाव में विजय का आधार जाति, संप्रदाय, धन शक्ति और शरीर शक्ति बनने लगी है ।
मोइन खान
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चुनाव प्रचार अभियान के तहत कई किमी की यात्रा करनी पड़ती थी। यह तब असाधारण एवं अभूतपूर्व कार्य था। संगठन, संसाधन और कार्यकर्ता की कमी थी। उस समय मीडिया का भी इतना विस्तार नहीं था कि उसके माध्यम से अपनी बात लोगों तक पहुंचा सकें।
जागेश्वर यादव
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अलग-अलग क्षेत्रों और राज्यों के अलग अलग मुद्दों पर चुनाव होता था । भारत के पुनर्निर्माण, विकास जीवन यापन, आम नागरिकों के अधिकार, राजनीतिक पार्टियों के ढांचे, अर्थव्यवस्था, समाज, संस्कृति गरीबी बेरोजगारी आदि मुद्दों को लेकर जनता के बीच नेता पहुंचते थे। आज जात-पात, बाहुबल चुनाव का मुद्दा बनता है।
भुटाई मेहत्तर