इंसानियत और मुहब्बत का पैगाम देता है ईद

सहरसा। अनुमंडल के शहरी क्षेत्र सहित ग्रामीण इलाकों में मुसलमानों का पवित्र त्योहार ईद शांति

By JagranEdited By: Publish:Mon, 25 May 2020 04:32 PM (IST) Updated:Mon, 25 May 2020 04:32 PM (IST)
इंसानियत और मुहब्बत का पैगाम देता है ईद
इंसानियत और मुहब्बत का पैगाम देता है ईद

सहरसा। अनुमंडल के शहरी क्षेत्र सहित ग्रामीण इलाकों में मुसलमानों का पवित्र त्योहार ईद शांतिपूर्ण वातावरण में सादगी के साथ मनाया गया।अधिकांश लोगों ने लाकडाउन का पालन करते हुए अपने अपने घरों में ईद की नमाज अदा की। वहीं कुछ लोगों ने सूरज निकलते ही मस्जिदों एवं इदगाहों में भी ईद की नमाज पढ़ने से बाज नहीं आए। प्रशासन एवं पुलिस की टीम भी लोगों को शारीरिक दूरी बना कर इबादत करने की नसीहत देते देखे गए। अपने-अपने घरों में बड़ी संख्या में औरतों ने भी बाजमात ईद की नमाज अदा की। पहली बार बाजमात ईद की नमाज पढ़ने वाली महिलाओं, युवतियों में काफी उत्साह देखा गया। नगर निवासी गुलशन आरा, जमिला खातून,रूबी खातून, अफसाना प्रवीण, छात्रा आइसा फातिमा, तानिया, हफसा आदि ने बताया कि पहली बार लॉकडाउन के कारण ईद की नमाज घर पर हुई और हमलोगों ने भी नमाज अदा कर अल्लाह से अपने जिला, सूबे एवं देश सहित पूरी दुनिया को कोरोना महामारी से मुक्त करने की दुआ की। अपने घरों पर नमाज अदा करने वाले आलीम मौलाना मंसूर कहते हैं कि भूख प्यास सहन कर एक महीना तक सिर्फ अल्लाह को याद करने वाले रोजेदारों के लिए ईद अल्लाह का ईनाम है। उन्होंने बताया कि ईद इंसानियत और मोहब्बत का पैगाम देता है। कहा कि एक माह रोजा रखकर लोग गरीबों के दर्द और मर्म को समझने लगते हैं और उनसे उनकी हमदर्दी बनी रहती है। सक्षम मुसलमान को अपनी कुल संपत्ति का ढाई प्रतिशत गरीबों में प्रतिवर्ष बांटना होता है। इमाम संघ के जिलाध्यक्ष मौलाना मुमताज रहमानी कहते हैं कि सदका और जकात निकालने से सामाजिक जिम्मेदारी का भी निर्वहन होता है। कहते हैं महीने की कड़ी आजमाइश के बाद ईद रोजेदारों के लिए अल्लाह के तरफ से रूहानी इनाम है।

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