युवाओं के व्यक्तित्व निर्माण में लगे हैं अरूण जायसवाल
सहरसा। शहर के नया बाजार निवासी डॉ. अरूण कुमार जायसवाल पिछले दो-तीन दशकों से युवाओं
सहरसा। शहर के नया बाजार निवासी डॉ. अरूण कुमार जायसवाल पिछले दो-तीन दशकों से युवाओं को संस्कृति एवं नैतिक शिक्षा से जोड़ने की मुहिम चला रहे हैं। वे करीब 25-30 वर्षों से लोगों को संस्कृति से जोड़ने के लिए युवाओं की बडी पौध खड़ा कर दी है। वे कहते हैं कि जब तक लोगों में अपनी संस्कृति व ऐतिहासिक विरासत से लगाव नहीं होगा तब तक संस्कृति का विकास संभव नहीं है। संस्कृति बचेगी तो लोक परंपराएं जीवित रहेगी। किसी भी क्षेत्र की पहचान उसकी लोक संस्कृति से होती है इसीलिए सबों को संस्कृति के अधिकार से जोड़ना आवश्यक है। अपनी सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण रखने के लिए संस्कृति को अपनाना होगा। 57 वर्षीय डॉ. अरूण कुमार जायसवाल युवाओं को चरित्र निर्माण के साथ-साथ उसे आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी प्रयास करते हैं। 21वीं सदी में युग बदलेगा इस अभियान के साथ पहले से ही शांतिकुंज हरिद्वार जाकर युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य से दीक्षा लेकर संस्कृति का संवाहक बनकर युवाओं को संस्कृति से जोड़ने की मुहिम उन्होंने शुरू कर दी थी। जो अब एक वट वृक्ष के रूप में सामने खड़ा है। वे अब तक करीब 50 हजार से अधिक युवाओं को संस्कृति व नैतिकता का बोध करा चुके हैं। वे नियमित रूप से पटना में युवा न्यायधीशों को स्ट्रैस मैनेजमेंट, लाइफ मैनेजमेंट और टाइम मैनेजमेंट के गुरों को सिखाते हैं। इनकी कई पुस्तक भी वैदिक संस्कृति पर प्रकाशित हो चुकी है।
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लॉकडाउन में भी यूटयूब के माध्यम से जगा रहे चेतना
गायत्री शक्तिपीठ के ट्रस्टी डा. अरूण कुमार जायसवाल करीब दस वर्षों से हर रविवार को युवाओं के बीच व्यक्तित्व परिष्कार करते हैं। लॉकडाउन में यू-टयूब के माध्यम से आनलाइन ही हर रविवार युवाओं की चेतना को विकसित करने में लगे हुए हैं। युवाओं को संस्कृति का महत्व एवं उसका अपने जीवन में प्रभाव को बताते हुए वे कहते हैं कि संस्कृति ही हमारे जीवन का आधार है। कोई भी लोकोत्सव हो या परंपरा सब हमारे जीवन की संस्कृति से ही जुड़ी हुई है और इसका धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व है।
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संस्कारशाला से जुड़े 5000 बच्चे
डॉ. अरूण कुमार जायसवाल प्राचीन भारतीय इतिहास से एमए की उपाधि प्राप्त की तथा वैदिक संस्कृति पर अपना शोध कार्य पूरा किया। वैदिक संस्कृति के तहत ही वे अब तक 5 हजार से अधिक बच्चों को संस्कारशाला से जोड़ कर उन्हें नि:शुल्क शिक्षा मुहैया करा रहे हैं। समाज के गरीब व शिक्षा से वंचित बच्चों को उसी गली-मुहल्ला में संस्कारशाला खोलकर उसे पठन पाठन सामग्री सहित शिक्षा प्रदान करने का अभियान अब भी जारी है। वे अब तक कई युवाओं की फौज खड़ा कर ली है जो उनके अभियान का हिस्सा बन चुके हैं।
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विदेशों में भी पढा चुके हैं संस्कृति का पाठ
वे अब तक राज्य ही नहीं देश के विभिन्न राज्यों के अलावा विदेशों में भी लोगों को भारतीय संस्कृति का पाठ पढा चुके हैं। युवाओं में चरित्र निर्माण एवं वैदिक संस्कृति को लेकर कई देशों की यात्रा कर चुके है। जिसमें अमेरिका, इंग्लैंड, हांगकांग, चीन, दुबई, सिगापुर, किरगिस्तान जैसे कई देशेां में भारतीय संस्कृति का परचम लहराया है। इनकी विदेशों में ज्यादा डिमांड रहती है।
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भागवतगीता के श्लोकों को यूटयूब पर कर रहे अपलोड
वे लॉकडाउन के दौरान भागवतगीता के 700 श्लोकों का हिदी अनुवाद किया है। जिन्हें वे प्रत्येक दिन एक-एक श्लोक यूटयूब चैनल गायत्री शक्तिपीठ, सहरसा पर अपलोड किया जा रहा है। जिससे आनेवाली पीढी भी परिचित हो सकें।