दीया बनाने वालों के जीवन में अंधेरा

सहरसा। दीपावली का त्योहार आमलोगों के साथ खासकर कुम्हार जाति के लोगों के लिए अपार खुशी लेकर आता है, प

By JagranEdited By: Publish:Sun, 20 Oct 2019 06:17 PM (IST) Updated:Sun, 20 Oct 2019 06:17 PM (IST)
दीया बनाने वालों के जीवन में अंधेरा
दीया बनाने वालों के जीवन में अंधेरा

सहरसा। दीपावली का त्योहार आमलोगों के साथ खासकर कुम्हार जाति के लोगों के लिए अपार खुशी लेकर आता है, परंतु अब यह बात नहीं रही। मिट्टी के दीया ओर ढिबरी की जगह अब चाईनीज लाइट लेता जा रहा है। बाजार में रंग- बिरंगे चाईनीज र्लाट के बढ़ते प्रचलन के कारण मिट्टी के दीया की मांग नहीं के बराबर रह गई है। फलस्वरूप दीपावली के मौके पर भी चाक से दीया बनाने वालों के घर में खुशी नहीं आती। इनलोगों द्वारा कमोवेश जो दीया बनाया जाता है, उसकी भी बिक्री नहीं हो पाती। इस जाति के समक्ष भुखमरी की नौबत उत्पन्न हो रही है।

-------------------

पुश्तैनी धंधा से मुंह मोड़ने लगे हैं लोग

-----------

कुछ वर्ष पूर्व तक कुम्हार जाति के लोग दीपावली की महीनो तैयारी करते थे। जगह- जगह से मिट्टी और तैयार दीया को पकाने के लिए सामग्री इकट्ठा किया जाता था। दीपावली के मौके पर दीया बेचकर इन लोगों को अच्छी आमदनी होती थी, परंतु अब इस पेशे में कोई दम नहीं रहा है। पहले लोग खपड़ा का घर बनाते थे तो इसकी बिक्री से उन लोगों का गुजारा चलता था, परंतु अब खपड़ा का घर लोग नहीं के बराबर बनाते। इसके चलते इसकी मांग पूरी तरह समाप्त हो गई है। ऐसे में इस जाति के लोग मजदूरी कर या रिक्शा- ठेला चलाकर अपने परिवार की परवरिश कर रहे हैं। रोजी की खोज में अधिकांश लोग पंजाब, दिल्ली व अन्य प्रांतों में भटकते हैं।

-------------------

क्या कहते हैं कुम्हार जाति के लोग

---------

मुरलीवसंतपरु के सुकन पंडित करते हैं कि पहले वे लोग दीपावली में अच्छी आमदनी कमा लेते थे, परंतु अब मिट्टी के दीया के शक्ल की लाईट भी बाजार में बिकने लगी है। लोग उसी का उपयोग करते हैं। वे लोग जो दीया बनाते हैं वह भी नहीं बिक पाता। सुलिन्दाबाद के रामदेव पंडित कहते हैं कि पहले वे लोग सालोभर मिट्टी के बर्तन बेचते थे, अब तो मेले में भी मिट्टी का खिलौना नहीं बिक पाता है। महिषी के मनोहर पंडित का कहना है कि जब से सरकार से छतदार मकान का प्रावधान कर दिया है, कोई खपड़ा खरीदनेवाला भी नहीं मिलता। सरकार उनलोगों के रोजगार के लिए कुछ सोच नहीं रही है और न ही दूसरे रोजगार के लिए कोई सहायता दी जा रही है। ऐसे में वे लोग रोजी की खोज में पलायन करने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

chat bot
आपका साथी