बुराइयों से बचाने का कवच है रमजान का रोजा:मौलाना मंसूर
कोरोना महामारी का एक ही इलाज है अपने आप को ठीक करो और अपने रब के बताए मार्ग पर चलो। उक्त बातें हजरत मौलाना मंसूर हसनैन बख्तियारपुरी ने कही।
सहरसा। कोरोना महामारी का एक ही इलाज है अपने आप को ठीक करो और अपने रब के बताए मार्ग पर चलो। उक्त बातें हजरत मौलाना मंसूर हसनैन बख्तियारपुरी ने कही।
मौलाना ने कहा कि रोजा अल्लाह के नजदीक ले जाने का रास्ता है। कुरान में स्पष्ट कहा गया है कि पवित्रता के साथ रोजा रखने वाला स्वाभाविक रूप से अल्लाह के निकट पहुंच जाते हैं। रोजा बुराइयों से बचाने वाला एक कवच है। रोजा रखकर गलत काम करने वालों को इनाम के रूप में सिर्फ भूख और प्यास ही मिलता है। उन्होंने लोगों से अपील करते हुए कहा कि कोरोना महामारी के बीच मस्जिद जाने के बजाय घरों मे रहकर कुरान की तिलावत करें और पांच वक्त का नमाज घर में ही अदा करें। सरकार के नियमों का अनुपालन करते हुए फैलने वाली बीमारी से बचें, ताकि समाज की निगाह में भी आप एक सच्चे पक्के मुसलमान बनकर रह सके।
कहा कि महामारी के दौरान गाइडलाइन का पालन करना नबी की सुन्नत है। इस की अवहेलना गुनाह है। उन्होंने कहा कि इस मुबारक माह में किसी तरह का झगड़ा या गुस्सा न करें बल्कि किसी से शिकायत हो तो उससे माफी मांगकर समाज में भाईचारा और एकता कायम करना चाहिये। गरीबों की ज्यादा से ज्यादा मदद करें। ज्यादा से ज्यादा सदका निकाले ताकि अल्लाह के गुस्से को शांत किया जा सके। उन्होंने कहा कि रोजेदार कोरोना महामारी को खत्म करने की दुआ करें। इफ्तार के समय मांगी गई दुआ को अल्लाह ज्यादा पसंद करते हैं। उस समय महामारी से बचने की दुआ करनी चाहिये।
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रोजा इंसान को इंसानियत की बुनियादी जरूरत का अहसास कराती है
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रोजा रोजेदार को बताता है कि भूख क्या है और प्यास क्या है। जिन लोगों को भूख और प्यास महसूस करने का मौका नही मिलता वे भी रमजान में भूख प्यास का अहसास कर भूखे और प्यासे के मर्म को समझते हैं। कुछ घंटों तक अमीर भी और गरीब भी एक ही परिस्थति में रहते है। जो सच्ची भावना से रोजा रखता है वह रमजान के बाद अपने जीवन में एक बड़ा परिवर्तन स्वंय देखता है। यानि रमजान से अगले रमजान तक का जीवन गुजारने के तरीकों पर इसका सकारात्मक असर होता है।