दादी अम्मा की जुबानी सुनें पंचायत चुनाव की कहानी

सहरसा। देश में पहली बार पंचायत चुनाव कैसे हुआ था। उस समय लोग समाज सेवा एवं समाज विकास के प्रति जनप्रतिनिधि कैसे सदैव प्रयत्नशील रहते थे। मगर आज कितना बदलाव हुआ है यह सबकुछ अतीत के पन्नों में दर्ज है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 21 Sep 2021 05:59 PM (IST) Updated:Tue, 21 Sep 2021 05:59 PM (IST)
दादी अम्मा की जुबानी सुनें  पंचायत चुनाव की कहानी
दादी अम्मा की जुबानी सुनें पंचायत चुनाव की कहानी

सहरसा। देश में पहली बार पंचायत चुनाव कैसे हुआ था। उस समय लोग समाज सेवा एवं समाज विकास के प्रति जनप्रतिनिधि कैसे सदैव प्रयत्नशील रहते थे। मगर, आज कितना बदलाव हुआ है, यह सबकुछ अतीत के पन्नों में दर्ज है। शायद पढ़ने को तो जरुर मिल जाएगा, मगर सुनने को बहुत ही कम अवसर मिल पाएगा।

इन सबके बीच प्रखंड की एक दादी अम्मा पहले चुनाव की साक्षी हैं। दादी अम्मा की जुबानी पहले चुनाव की कहानी अपने आप में रोचक एवं असंभव सा प्रतीत होता है। चुनाव में कोई तामझाम नहीं होता था। गांव का एक चौकीदार ही शांतिपूर्ण मतदान करा लेता था।

पंचायत चुनाव का बिगुल फूंका जा चुका है। चुनावी मैदान में उतरने वाले निवर्तमान जनप्रतिनिधि व पिछले चुनाव में हारे हुए एवं संभावित प्रत्याशी पूरे दम-खम से दिन-रात घर पर दस्तक दें रहे हैं। खाने-पीने की चिता किये बगैर जनसंपर्क व प्रचार प्रसार में जुटे हुए है, मगर देश में पहली बार हुए पंचायत चुनाव का नजारा कुछ और ही बयां कर रही हैं।

प्रखंड के पटोरी गांव के निवासी स्वर्गीय जयदेव दत्त की धर्म पत्नी बुजुर्ग मतदाता 90 वर्षीय सावित्री देवी कहती है कि देश में पहला पंचायती चुनाव 1952 में हुआ था। गांव की सरकार चुनने का यह पहला मौका था। जब गांव में ही मुखिया सरपंच बनता था तब इतना शोरगुल नहीं होता था।

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पति के साथ डालने गई थी वोट

कहती हैं कि अपने पति स्वर्गीय जयदेव दत्त के साथ पंचायत चुनाव का वोट डालने गई थी। तब इतना तामझाम नहीं होता था। जितना अब के जमाने में हो रहा है। गांव के एक चौकीदार को मतदान केंद्र पर रख मुखिया सरपंच का चुनाव शांतिपूर्ण हो जाता था। उस समय के पंचायत चुनाव और आज के समय के चुनाव में जमीन आसमान का फर्क नजर आता है। वह चितित मुद्रा में बता रही थी कि लगभग 80 के दशक के बाद से मुखिया सरपंच चुनाव में मारपीट, बूथ लूट की घटना होने लगी थी। पहले हार जीत के बाद दुश्मनी नहीं होती थी। अब समय कहां रहा। यादों को ताजा करते हुए सावित्री देवी ने बताया कि पहले लोग कुर्सी के नहीं जनसेवा के भूखे होते थे। वह अपनी डबडबाई आंखों से आज के हालात भी बखूबी देख रही है। इस बार के चुनाव में वे फिर से वोट डालने जाएंगी। इसे वह अपना हक बताती हैं, और कहती हैं, मतदान का प्रयोग सभी को करना चाहिए। यह हमारा संवैधानिक हक है।

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