पहले गांव वाले चंदा देकर लड़ाते थे चुनाव

सहरसा। पहले जमाने के पंचायत चुनाव और आज के दौड़ में हो रहे पंचायत चुनाव में काफी अंतर है। आज के पंचायत चुनाव में प्रत्याशी धनबल बाहुबल तथा छद्मबल के सहारे कुर्सी हथियाने में विश्वास रखते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 13 Sep 2021 06:17 PM (IST) Updated:Mon, 13 Sep 2021 06:17 PM (IST)
पहले गांव वाले चंदा  देकर लड़ाते थे चुनाव
पहले गांव वाले चंदा देकर लड़ाते थे चुनाव

सहरसा। पहले जमाने के पंचायत चुनाव और आज के दौड़ में हो रहे पंचायत चुनाव में काफी अंतर है। आज के पंचायत चुनाव में प्रत्याशी धनबल, बाहुबल तथा छद्मबल के सहारे कुर्सी हथियाने में विश्वास रखते हैं। जनता से झूठे वादे तथा खासकर युवाओं को वोट के लिए गुमराह करते हैं। आज के समय में सेवा और विकास के सहारे चुनाव जीतने की न किसी को क्षमता है नहीं साहस। मतदाता एवं जनप्रतिनिधि का संबंध दुकानदार एवं ग्राहक जैसा हो गया है।

उक्त बातें लगभग 28 साल तक लगातार धबौली पंचायत के मुखिया रहे बैद्यनाथ प्रसाद ने कही। पटना विश्वविद्यालय से 1961 में स्नातक बैद्यनाथ प्रसाद सिंह पहली बार 1978 में निर्विरोध मुखिया बने। उसके बाद वो 2006 तक धबौली दक्षिण पंचायत के मुखिया पद पर रहे। अब वो चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।

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पहले सिर्फ नामांकन में होता था खर्च

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उन्होंने बताया कि 30 - 40 साल पहले ऐसी स्थिति नहीं थी। उस समय केवल मुखिया तथा सरपंच का चुनाव होता था। गांव के बुद्धिजीवी तथा आर्थिक रूप से सम्पन्न व्यक्ति ही गांव के सामाजिक व्यक्ति को चुनाव लड़ने के लिए खड़ा करते थे। गांव वाले ही चंदा देते थे जिसमें नामांकन के सिवा और कोई खर्च नहीं होता था। आज के समय में चुनाव लड़ना तथा जीत हासिल करना पूर्ण रूप से व्यवसाय बन गया है। बिके मतदाता चुनाव जीतने वाले प्रत्याशी के पास विकास की बात करने का साहस कैसे कर सकता है। उस समय किसी प्रकार के हुए विवादों का निपटारा सामाजिक स्तर पर किया जाता था। जात-पात की राजनीति नहीं होती थी। मात्र जवाहर रोजगार योजना की राशि से कुछ काम होता था। मुखिया को चेक काटने का अधिकार नहीं था। उन्होंने कहा कि जनता ऐसे प्रतिनिधि को चुने जो विकास की दिशा में काम करे।

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पहले जनप्रतिनिधि होते थे स्पष्टवादी एवं निडर

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उस जमाने में मुखिया एवं सरपंच का चुनाव हुआ करता था। अधिकतर चुनाव निर्विरोध ही होता था। उस समय के मुखिया व सरपंच निडर एवं स्पष्टवादी होते थे। ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने के लिए बाध्य किया जाता था। आज तो मतदाता दिन भर एक उम्मीदवार के साथ तो रात भर दूसरे के साथ। बिका हुआ मतदाता विकास की क्या बात कर सकता है।आज विकास के मुद्दे पर मतदाता को जागरूक होने की जरूरत है क्योंकि लोकतंत्र में प्रतिनिधि चुनने का सर्वोच्च शक्ति जनता के पास है।

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