कैमूर के जंगलों में घूम रहे हैं बाघ
जिले की कैमूर पहाड़ी पर बसे कैमूर वन्यप्राणी क्षेत्र के जंगल में भी बाघ हैं। इसका पुख्ता प्रमाण वन विभाग के पास है। अब इस क्षेत्र को भी टाइगर रिजर्व घोषित करने की कवायद तेज हो गई है। इसके बाद मध्यप्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्र से कैमूर वन्य जीव आश्रयणी तक टाइगर कारिडोर बनाने की पहल भी हो रही है।
ब्रजेश पाठक, सासाराम, रोहतास : जिले की कैमूर पहाड़ी पर बसे कैमूर वन्यप्राणी क्षेत्र के जंगल में भी बाघ हैं। इसका पुख्ता प्रमाण वन विभाग के पास है। अब इस क्षेत्र को भी टाइगर रिजर्व घोषित करने की कवायद तेज हो गई है। इसके बाद मध्यप्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्र से कैमूर वन्य जीव आश्रयणी तक टाइगर कारिडोर बनाने की पहल भी हो रही है। पहली बार राष्ट्रीय बाल संरक्षण प्राधिकरण ने यहां के लिए बजट का भी प्रावधान किया है। कैमूर वन्य प्राणी आश्रयणी क्षेत्र के रोहतास, तिलौथू, औरैया व भुड़कुड़ा पहाड़ी पर भी बाघ के कई पदचिह्न देखे गए हैं।
वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि लगातार इस जंगल में बाघों की आवाजाही होने का पुख्ता सबूत राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को उपलब्ध कराया गया है। मध्यप्रदेश के संजय डुबरी टाइगर रिजर्व से कैमूर वन्य जीव आश्रयणी का क्षेत्र मिलता है। संजय डुबरी से बांधव गढ़ टाइगर रिजर्व जुड़ा हुआ है। पलामू का टाइगर रिजर्व भी इससे जुड़ा है। ऐसे में इसे टाइगर कारिडोर बनाने की पहल शुरू है। इससे बाघों को विचरण के लिए बड़ा क्षेत्र मिलेगा। चार दशक पहले भी यहां थे बाघ :
कैमूर पहाड़ी के घने जंगलों में चार दशक पूर्व तक बाघ रहने की बात पहाड़ी पर बसे गांवों के बुजुर्ग बताते हैं। लोगों का कहना है कि यहां काफी संख्या में 1975-76 तक बाघ थे। पेड़ों के कटने, वन माफिया के कारण वनों में आवाजाही बढ़ने के कारण बाघों की संख्या धीरे-धीरे समाप्त हो गई। हाल के वर्षों में माफिया व नक्सलियों पर शिकंजे तथा वन विभाग द्वारा सक्रियता बढ़ने से इस क्षेत्र में बाघों की आवाजाही फिर बढ़ी है। बाघों की आवाजाही के हैं पुख्ता सबूत :
नवंबर 2019 में तिलौथू क्षेत्र में पहली बार बाघ के पंजों के निशान व मल प्राप्त हुआ था। मल को देहरादून स्थित वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की प्रयोगशाला में जांच कराई गई थी। वहां से इसकी पुष्टि भी हुई। जांच में पंजे के निशान भी बाघ के ही पाए गए। इसका डीएनए बांधवगढ़ के बाघ से मिला है। अब यहां जगह-जगह वाटर होल बनाकर बाघों के लिए पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। कहते हैं अधिकारी :
कैमूर वन्य क्षेत्र का इलाका 1800 वर्ग किमी से ज्यादा है। मध्य प्रदेश के दो टाइगर रिजर्व क्षेत्र और झारखंड के पलामू के बेतला टाइगर रिजर्व क्षेत्र से भी इसका सीधा कारिडोर बनता है। इससे इस जंगल में लगातार बाघों की आवाजाही हो रही है। इसका पुख्ता प्रमाण एनटीसीए को उपलब्ध कराया गया है। मध्यप्रदेश के दो टाइगर रिजर्व क्षेत्र से कैमूर वन्य जीव आश्रयणी तक टाइगर कारिडोर बनाने की पहल हो रही है। इस वन्य क्षेत्र के रोहतास, तिलौथू, चेनारी, औरैया व भुड़कुड़ा पहाड़ी पर भी बाघ के पद चिह्न व उनकी आवाजाही देखी गई है तथा बाघ का विचरण करते हुए तस्वीर भी ऑटोमेटिक कैमरे से ली गई है।
प्रद्युम्न गौरव
डीएफओ, रोहतास।