अति प्राचीन हैं मां ताराचंडी शक्तिपीठ, यहां दर्शन-पूजन से पूरी होती हैं मनोकामनाएं

रोहतास जिला मुख्यालय से महज पांच किलोमीटर पूरब-दक्षिण कैमूर पहाड़ी की गुफा में स्थित जगत जननी मां ताराचंडी धाम देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यताओं के अनुसार सती का दायां नेत्र इस स्थान पर गिरा था। नेत्र गिरने के कारण ही इस शक्तिपीठ का नाम मां ताराचंडी धाम हुआ।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 06 Oct 2021 11:36 PM (IST) Updated:Wed, 06 Oct 2021 11:36 PM (IST)
अति प्राचीन हैं मां ताराचंडी शक्तिपीठ, यहां दर्शन-पूजन से पूरी होती हैं मनोकामनाएं
अति प्राचीन हैं मां ताराचंडी शक्तिपीठ, यहां दर्शन-पूजन से पूरी होती हैं मनोकामनाएं

ब्रजेश पाठक, सासाराम : रोहतास। रोहतास जिला मुख्यालय से महज पांच किलोमीटर पूरब-दक्षिण कैमूर पहाड़ी की गुफा में स्थित जगत जननी मां ताराचंडी धाम देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यताओं के अनुसार सती का दायां नेत्र इस स्थान पर गिरा था। नेत्र गिरने के कारण ही इस शक्तिपीठ का नाम मां ताराचंडी धाम हुआ। मान्यता है कि सच्चे मन से दर्शन-पूजन करने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं मां पूर्ण करती हैं। मंदिर के गर्भगृह के पास स्थित 11वीं सदी के शिलालेख से भी इस बात की पुष्टि होती है कि इस शक्तिस्थल की ख्याति उस समय भी काफी थी। शारदीय व वासंतिक नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। मां तारा की प्रतिमा पूर्व मध्यकालीन तथा प्रत्यालीढ़ मुद्रा में है। मां का बायां पैर आगे शव पर आरूढ़ है। मां का वर्ण नील है तथा चार हाथ हैं। दाहिने हाथ में खड़ग व कैंची है। जबकि बाएं में मुंड व कमल है। कटि में व्याघ्रचर्म लिपटा है। मंदिर जिस गुफा में है उसकी ऊंचाई लगभग चार फीट है। गुफा के अंदर व बाहर की मूर्तियां पूर्व मध्यकालीन हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का व़र्णन है । यह वह स्थल है जहां श्रीविष्णु के चक्र से खंडित होकर सती का दायां नेत्र यहीं पर गिरा था। जो ताराचंडी शक्तिपीठ के नाम से विख्यात हुआ।

तंत्र-चूड़ामणि के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। यहां देवी के दायां नेत्र गिरने के कारण यह शक्तिपीठ बना। नगर देवी हैं मां ताराचंडी :

ताराचंडी कमेटी के सचिव महेंद्र साहू बताते हैं कि सासाराम नगर में निवास करने वाले लोगों की नगर माता ताराचंडी देवी हैं। यहां सावन में सभी घरों से चुनरी कढैया चढ़ाया जाता है। शारदीय व वासंतिक नवरात्र में मां की पूजा अर्चना के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। आठ सौ वर्ष पूर्व भी थी मंदिर की ख्याति : मंदिर के गर्भगृह के समीप संवत 1229 का खरवार वंशीय राजा प्रताप धवल देव द्वारा ब्राह्मी लिपि में लिखवाया गया शिलालेख भी है, जो मंदिर की ख्याति को दर्शाता है। इस शिलालेख में राजा ने अपना आदेश पत्र लिखवाया ताकि यहां दर्शन-पूजन के लिए दूर-दूर से आने वाले लोगों को भी उनके आदेश की जानकारी हो सके। रोहतास की पुरातन संस्कृति पर शोध कर चुके डा. श्यामसुंदर तिवारी बताते हैं कि पुराणों, तंत्र शास्त्रों व प्रतिमा विज्ञान में मां तारा व चंडी का जैसा रूप वर्णित है, उसी अनुसार सासाराम में दस महाविद्याओं में दूसरी मां तारा अवस्थित हैं।

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