देश भर में यही से उरांव जनजाति का हुआ था प्रसार, पूर्वजों की धरती पर पहुंच हो रहे धन्य

रोहतासगढ़ से ही उरांव जनजाति का प्रसार सैकड़ों वर्ष पूर्व देश भर में हुआ था। आज वे जहां भी हैं अपने पूर्वजों की मिट्टी उन्हें एकता में बांधे हुई है। तभी तो 15 वर्षों से देश भर से वनवासी रोहतासगढ़ तीर्थ यात्रा महोत्सव में पहुंच इस मिट्टी को नमन करते है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 28 Feb 2021 09:48 PM (IST) Updated:Sun, 28 Feb 2021 09:48 PM (IST)
देश भर में यही से उरांव जनजाति का हुआ था प्रसार, पूर्वजों की धरती पर पहुंच हो रहे धन्य
देश भर में यही से उरांव जनजाति का हुआ था प्रसार, पूर्वजों की धरती पर पहुंच हो रहे धन्य

प्रेम पाठक, डेहरी आन सोन : रोहतासगढ़ से ही उरांव जनजाति का प्रसार सैकड़ों वर्ष पूर्व देश भर में हुआ था। आज वे जहां भी हैं अपने पूर्वजों की मिट्टी उन्हें एकता में बांधे हुई है। तभी तो 15 वर्षों से देश भर से वनवासी रोहतासगढ़ तीर्थ यात्रा महोत्सव में पहुंच इस मिट्टी को नमन करते है। यह धरती उनके लिए किसी तीर्थ से कम नहीं। अपने पुरखों की धरती पर पहुंच धन्य हो रहे हैं। महोत्सव के दूसरे दिन रविवार को भी सैकड़ों की तादाद में वनवासी यहां पहुंच इस मिट्टी को नमन किए व अपने पूजाघर में रखने के लिए कुछ मिट्टी साथ भी ले गए। दिल्ली, छतीसगढ़, मध्य प्रदेश, उतर प्रदेश, उड़ीसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल के अलावा कई प्रांतों व पड़ोसी देश नेपाल से वनवासी यहां पहुंच अपने को धन्य मान रहे हैं।

तीर्थयात्रा आयोजन समिति के अध्यक्ष व वनवासी कल्याण आश्रम के क्षेत्रीय सह संगठन मंत्री महरंग जी उरांव कहते हैं कि उक्त किला के आसपास के क्षेत्रों से ही उरांव और खरवार वंश के लोग देश के विभिन्न प्रांतों में आक्रांताओं के समय छल से किला जीत लेने के बाद गए थे। जनजाति समुदाय की संस्कृति, विरासत एवं उरांव जनजाति के उद्गम स्थल को राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित करने को लेकर तीर्थयात्रा महोत्सव का आयोजन 2006 से शुरू किया गया था। इसकी विशेषता यह है कि देश के नौ राज्यों से वनवासी समुदाय के लोग एकत्रित होकर विभिन्न परंपराओं व तौर तरीकों को एक रूप देते हुए पूजा अर्चना करते हैं और अपनी संस्कृति को संरक्षित करने का संकल्प लेते हैं।वहीं नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर, पूजा पद्धति से भी अवगत करा रहे हैं।2015 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जुएल उरांव और ग्रामीण विकास राज्यमंत्री सुदर्शन भगत , 2016 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री विष्णु देव साय, राज्य तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, 2017 में राज्य के तत्कालीन राज्यपाल व वर्तमान में राष्ट्रपति रामनाथ कोविद, 2018 में झारखंड विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष दिनेश उरांव, छत्तीसगढ़ के तत्कालीन वन मंत्री गणेश राम भगत समेत कई लोग इसमें शामिल हो चुके हैं।

करम वृक्ष की पूजा कर घर ले जाते हैं मिट्टी :

उरांव जनजाति में करम पेड़ का विशेष धार्मिक महत्व है। तीर्थ यात्रा पर यहां पहुंचे समाज के सदस्यों ने बताया कि रोहतासगढ़ पर अभी भी चार करम के पेड़ स्थित हैं जो उनके लिए बोधिवृक्ष से कम नहीं है। जिसकी पूजा अर्चना कर जनजाति समाज के लोग खुद को धन्य मानते हैं। महिलाएं करम वृक्ष के नीचे की मिट्टी अपने आंचल में बांधकर अपने-अपने घर ले जा रही हैं, ताकि पूर्वजों की याद को इस मिट्टी से जीवंत रखी जा सके। मध्य प्रदेश से पहुंची महिलाएं कहती हैं कि हमारे पूर्वज इसी रोहतासगढ़ से अन्य प्रांतों में गए हैं। इसी करम वृक्ष की पूजा-अर्चना रोहतासगढ़ किला के राजा उरगन ठाकुर की पुत्री सिगी देई व उनकी सेनापति की पुत्री कैली देई द्वारा की गई थी। अपने पूर्वजों के साथ-साथ इन दोनों वीरांगनाओं की याद में हमलोग इस मिट्टी को अपने घर ले जाते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। रोहतासगढ़ को मानते हैं पूर्वजों की धरती :

उरांव आदिवासियों का कहना है कि रोहतासगढ़ उनके पूर्वजों की धरती है। मुगलकाल में यहां के लोगों को शोषण व अत्याचार का सामना करना पड़ता था, तभी यहां से लोग अपनी रोजी-रोटी व सुरक्षा के लिए अन्य प्रांतों में जाकर बस गए। 10 किलोमीटर पैदल 1580 फीट की ऊंचाई चढ़कर तीर्थयात्री अपने पूर्वजों के स्थल रोहतासगढ़ किला पहुंच रहे हैं। जहां आसपास रोहितेश्वर धाम, शिव मंदिर ,गणेश मंदिर ,शिव पार्वती मंदिर में भव्य रूप से पूजा अर्चना करते हैं। कहते हैं शोध अन्वेषक:

काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान के शोध अन्वेषक डॉ. श्याम सुन्दर तिवारी कहते हैं कि उरांव जनजाति का स्थल रोहतास गढ़ ही है। ऐसी मान्यता है कि किले को अपने पूर्वज की धरती मान कर के पूजा अर्चना में इस समुदाय के लोग याद करते हैं। सैकड़ों वर्ष पूर्व का लगा करम पेड़ आज भी है, जिसकी पूजा करते हैं। यह पेड़ इनके लिए बोधिवृक्ष समान है।

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