सिर्फ गंगा स्नान व पूजा करना ही भक्ति नहीं : जीयर स्वामी

रोहतास। भक्ति सिर्फ गंगा स्नान और मंदिर में पूजा करना ही नहीं है बल्कि ईश्वर का भजन करन

By JagranEdited By: Publish:Fri, 05 Feb 2021 06:29 PM (IST) Updated:Fri, 05 Feb 2021 06:29 PM (IST)
सिर्फ गंगा स्नान व पूजा करना ही भक्ति नहीं : जीयर स्वामी
सिर्फ गंगा स्नान व पूजा करना ही भक्ति नहीं : जीयर स्वामी

रोहतास। भक्ति सिर्फ गंगा स्नान और मंदिर में पूजा करना ही नहीं है, बल्कि ईश्वर का भजन करना, सत्कर्म करना, पुत्र, पति, स्वामी, समाज व मानवता की सेवा करना भी भक्ति है। प्रखंड के सतसा गांव में प्रवचन के दौरान शुक्रवार को जीयर स्वामी ने यह बातें कही।

श्रीमद्भागवत कथा के तहत नैमिषारण्य प्रसंग की चर्चा करते हुए कहा कि करीब छह हजार वर्ष पूर्व वहां धर्म सम्मेलन हुआ था। शौनक ऋषि ने एक हजार वर्ष तक चलने वाले अनुष्ठान का आयोजन किया था। कलियुग में लंबे अनुष्ठान का महत्व नहीं है, क्योंकि चूक एवं त्रुटि की संभावनाएं अधिक हैं। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु के द्रविड़ प्रदेश में भक्ति का जन्म हुआ, महाराष्ट्र में युवा हुई और गुजरात में वृद्धा हो गई। उन्होंने कहा कि भगवान को प्राप्त करने का सरल तरीका भक्ति है। भगवान अपने भक्तों में अमीर, कुलीनता, वृद्ध, बालक, मनुष्य और जानवर का भेद नहीं करते। गरीब सुदामा, बालक प्रहलाद, माता सेवरी और गजराज पर कृपा करके उन्होंने संसार को भक्ति का संदेश दिया है। जीयर स्वामी ने कहा कि जीवन में शुभ-अशुभ कार्यों का प्रतिफल अवश्य भोगना पड़ता है। जाने-अनजाने में अगर कोई पाप होता है, तो संत के पास व तीर्थ में जाकर उसका मार्जन किया जा सकता है। लेकिन तीर्थ और संतो के यहां किए गये अपराध का मार्जन संभव नहीं है। भक्ति और भगवान के आश्रय में रहकर सुकर्म करते हुए अपने अपराधों के प्रभाव को कम किया जा सकता है, लेकिन पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता है। बारिश में छाता या बरसाती से और आंधी में दिये को शीशा से बचाव किया जा सकता है, लेकिन बारिश एवं आंधी को रोका नहीं जा सकता है। भक्ति और सत्कर्म का प्रभाव यही होता है। प्रारब्ध या होनी का समूल नाश नहीं होता। प्रारब्ध को भोगना ही पड़ता है। शास्त्रों में कहा गया है कि प्रारब्ध अवश्यमेव भोक्तव्यम। ईश्वर की भक्ति अथवा संत-सद्गुरु के प्रभाव से प्रारब्ध की तीक्ष्णता को कम किया जा सकता है।

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