रोहतास में खनिज का अकूत भंडार, उद्योग को बढ़ावा देने से पलायन पर लगेगा ब्रेक

कोरोना महामारी को लेकर अन्य राज्यों में रह रहे लोग धीरे धीरे वापस आने लगे हैं तथा आसपास ही अब रोजगार की तलाश में जुट गए हैं। ऐसे में एक बार फिर जिले के बंद पड़े उद्योगों को लेकर चर्चा तेज हो गई हैं।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 16 Apr 2021 10:30 PM (IST) Updated:Fri, 16 Apr 2021 10:30 PM (IST)
रोहतास में खनिज का अकूत भंडार, उद्योग को बढ़ावा देने से पलायन पर लगेगा ब्रेक
रोहतास में खनिज का अकूत भंडार, उद्योग को बढ़ावा देने से पलायन पर लगेगा ब्रेक

जागरण संवाददाता, सासाराम : रोहतास। कोरोना महामारी को लेकर अन्य राज्यों में रह रहे लोग धीरे धीरे वापस आने लगे हैं तथा आसपास ही अब रोजगार की तलाश में जुट गए हैं। ऐसे में एक बार फिर जिले के बंद पड़े उद्योगों को लेकर चर्चा तेज हो गई हैं। सासाराम से बीजेपी सांसद छेदी पासवान ने सरकार को पत्र लिख उद्योग लगाने व खनन कार्य शुरू कराने की मांग की है।

सांसद का कहना है कि अपने यहां के बंद पड़े उद्योग धंधे फिर से अगर शुरू हो जाएं तो रोजी रोटी के लिए अन्य जगह जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। इसके शुरू हो जाने से मजदूरों के साथ -साथ छोटे से लेकर बड़े व्यापारियों को लाभ मिलने लगेगा। साथ ही साथ सरकार के राजस्व में भी वृद्धि होगी। छेदी पासवान ने कहा कि भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण पर्षद (जीएसआइ) ने भी माना है की जिले में चूना-पत्थर के अलावा बॉक्साइट, अभ्रख ,पायराइटस, पोटैशियम जैसे खनिज पदार्थ का अकूत भंडार है । रोहतास व नौहट्टा प्रखंड में कैमूर पहाड़ी की तलहटी में बॉक्साइट तथा अभ्रख ,पायराइटस, पोटैशियम जैसे खनिज पदार्थ का भंडार है। कैमूर जिला के अधौरा ब्लॉक के झरपा तथा घेरवानिया गांव में बॉक्साइट तथा अभ्रक की संभावनला है। जीएसआइ की एक रिपोर्ट के मुताबिक अधौरा में बॉक्साइट की 11 कैपिग का पता चला है। जिसकी मोटाई तीन से सात मीटर है। चूना पत्थर रोहतास के जारादाग तथा रामडिहरा के बीच 75 किलोमीटर की लंबाई तक फैला है। जीएसआइ ने यहां पर कोयले को लेकर भी सर्वे किया था लेकिन उसका कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला। इन पहाड़ियों में डोलोमाइट का भी भंडार है जिसका उपयोग रिफ्रैक्ट्री उद्योग में कच्चे माल के रूप में किया जाता है। चूना पत्थर का उपयोग सीमेंट के अलावा अन्य रसायनिक उद्योग, कपड़ा उद्योग तक में किया जाता है।सांसवद की मानें तो लगभग तीन दशक पूर्व जब चूना पत्थर उद्योग चलता था तो यहां पर दूसरे राज्यों से भी लोग काम करने आते थे।लेकिन वर्तमान में चूना पत्थर समेत पत्थर से जुड़े अन्य उद्योग पर रोक लग जाने से इससे जुड़े असंख्य परिवार बेरोजगार हो गए। इसके बाद साल 2012 मे भी पत्थर खदानों पर रोक लग जाने से यहां के स्थानीय मजदूरों को भी रोजी रोटी की तलाश में जिले से अन्यत्र पलायन करना पड़ा। इसके बंद होने का असर राजस्व पर भी दिख रहा है।

इस बंद पड़े उद्योग को लेकर संसद में भी आवाज उठाई गई है। कहा कि इसे चालू करने में वन विभाग के नियमावली का पेंच फंस रहा है। इसे दूर करने का प्रयास लगातार किया जा रहा है। बहुत जल्द ही इसके शुरू होने की संभावना है। चूना -पत्थर खदान के शुरू हो जाने से स्थानीय बेरोजगारों को भी रोजगार मिल जाएगा साथ ही जिले से पलायन पर भी हद तक ब्रेक लग सकती है।

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