पीला सोना पर प्रतिकूल मौसम की काली छाया

जागरण संवाददाता पूर्णिया पूर्णिया परिक्षेत्र में पीला सोना के नाम से मकई जाना जाता है। यहां

By JagranEdited By: Publish:Thu, 09 Dec 2021 05:55 PM (IST) Updated:Thu, 09 Dec 2021 05:55 PM (IST)
पीला सोना पर प्रतिकूल मौसम की काली छाया
पीला सोना पर प्रतिकूल मौसम की काली छाया

जागरण संवाददाता, पूर्णिया: पूर्णिया परिक्षेत्र में पीला सोना के नाम से मकई जाना जाता है। यहां के किसान मक्का का सबसे अधिक उत्पादन करते हैं। प्रति एकड़ लगभग 50 क्विंटल मक्का यहां के किसान उगाते हैं जो अन्य राज्यों की अपेक्षा सबसे अधिक है। यहां का मक्का देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा विदेशों में भी भेजे जाते हैं। लेकिन इस बार इसका आच्छादन एवं उत्पादन प्रभावित होने का खतरा उत्पन्न हो गया है।

जिले में हर साल 80 से 95 हेक्टेयर में इसकी खेती होती है। उत्तर बिहार की सबसे बड़ी मंडी गुलाबबाग में हर साल अरबों के मक्का का कारोबार होता है। लेकिन इस वर्ष खाद की किल्लत और प्रतिकूल मौसम के कारण पीला सोने के उत्पादन पर काली छाया मंडराने लगी है। रबी की बोआई का समय अब हाथ से निकल रहा है कितु लक्ष्य का आधा भी आच्छादन नहीं हो पाया है। भोला पासवान कृषि विश्वविद्यालय के प्राचार्य डा. पारसनाथ कहते हैं कि दिसंबर माह का पखवारा अब समाप्त होने वाला है कितु मौसम में अभी तक ठंडी नहीं आई है। अभी भी तापमान सामान्य से अधिक है जिसका प्रभाव रबी फसल का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। वहीं डीएपी खाद की भी किल्लत बनी हुई है।

दिसंबर में भी गर्म बना हुआ है मौसम

भोला पासवान शास्त्री कृषि कालेज के डा. पंकज कुमार कहते है कि रबी फसल की बोआई के समय कम तापमान की आवश्यकता होती है और उसकी कटाई उष्ण मौसम में की जाती है। राज्य में रबी फसल की बोआई का बेहतर समय अक्टूबर के दूसरे पखवारा से नवंबर के पहले पखवारे तक है। चूकि इस समय तापमान कम रहता है। बोआई के लिए 25 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान अनुकूल माना जाता है। लेकिन इस बार नवंबर का दूसरा पखवारा अब बीतने वाला है लेकिन ठंड उस अनुरूप नहीं पड़ रही। अभी भी अधिकतम तापमान 28-29 डिग्री सेल्सियस बना हुआ है। मौसम की प्रतिकूलता का सीधा प्रभाव रबी फसल के उत्पादन पर पड़ सकता है।

डीएपी की किल्लत खड़ी कर रही परेशानी

रबी फसल के लिए खेतों में डीएपी प्रमुख खाद है। सीमांचल की मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन, जिक और पोटेशियम की कमी पाई गई है। इसकी कमी पूरी करने के लिए किसान खेतों में बोआई से पहले डीएपी और पोटेशियम डालते हैं। इसके बिना खेतों में मक्का, गेहूं, तेलहन आदि की बोआई किसान नहीं करते क्योंकि इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है। लेकिन अभी डीएपी खाद आउट आफ मार्केट हो गया है। जिला कृषि पदाधिकारी का कहना है कि आवश्यकता के अनुरूप जिले में डीएपी उपलब्ध नहीं है। ऐसे में खाद की किल्लत के कारण भी खेतों में मक्के एवं अन्य रबी फसल का आच्छादन प्रभावित हो रहा है। अभी तक लक्ष्य का आधा भी नहीं हो पाया है बोआई

जिले में रबी मौसम में भी किसान सबसे अधिक मक्का फसल लगाते हैं। गेहूं, दलहन आदि की तुलना में 10 गुणा अधिक मक्का का उत्पादन यहां होता है। जिले में हर वर्ष मक्के की खेती 80 से 95 हजार हेक्टेयर में होती है। जिले में इस बार 80,515 हेक्टेयर में मक्का के आच्छादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। लेकिन अभी तक सिर्फ 41155 हेक्टेयर में ही इसकी बोआई हो पाई है। जबकि बोआई का आदर्श समय अगले सप्ताह में समाप्त हो रहा है। ऐसे में इस बार सीमांचल के पीला सोना के उत्पादन पर काली छाया मंडरा रही है।

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