दीप प्रज्वलित कर मनाएं दीपावली, पटाखों से करें परहेज
जागरण संवाददाता पूर्णिया पर्यावरण का बचाव वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए आवश्यक है। भारती
जागरण संवाददाता, पूर्णिया : पर्यावरण का बचाव वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए आवश्यक है। भारतीय संस्कृति में पर्यावरण रक्षा की बात शामिल है। दीपावली के दिन घर-बाहर की सफाई की जाती है। साफ-सफाई का उद्देश्य भी परिवेश और पर्यावरण को स्वच्छ और संरक्षित करना है। लेकिन इस दिन आतिशबाजी की परंपरा बढ़ गई है जिससे पर्यावरण, जीव जंतु और पशु-पक्षियों को भी नुकसान पहुंचता है। आतिशबाजी से हवा में तांबा, कैल्शियम, गंधक, बेरियम की मात्रा बढ़ जाती है जो तत्व प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। इसके अंश कोहरे के साथ कई दिनों तक हवा में बने रहते हैं। हवा में मौजूद रहने के कारण प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। पूर्णिया विश्वविद्यालय के वनस्पति विभाग के प्रमुख डा. एके मिश्रा कहते हैं कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना भी दीपावली का पर्व मनाया जा सकता है। दीपावली के दिन हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है जो पहले से ही विभिन्न कारणों से खतरनाक स्थिति में है।
आम लोगों को भी होती है परेशानी
राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डा. एनके झा ने बताया कि ध्वनि और वायु प्रदूषण पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदेह है। इससे ह्रदय की समस्या, फेफड़े, गुर्दे और लीवर को भी नुकसान पहुंचता है। पहले से अगर हार्ट या फेफड़े की समस्या से पीड़ित हैं तो उनको इस दिन अधिक संभल कर रहना होगा। बाहर के वायु प्रदूषण से स्वयं को बचा कर रखना होगा। दीपावली में वायु प्रदूषण सामान्य से अधिक बढ़ जाता है जिससे त्वचा को भी नुकसान पहुंचता है। कई तरह के एलर्जी की समस्या से लोग पीड़ित हो जाते हैं। कैंसर जैसे रोग का भी कारण यह प्रदूषण बनता है। गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को भी इस दिन अधिक परेशानी होती है। इसलिए ऐसे पटाखे जिससे अधिक प्रदूषण हो उससे परहेज करना ही उचित है। कई तरह के पटाखे हैं जो कम प्रदूषण फैलाते हैं और उसमें आवाज भी कम होता है, उसका इस्तेमाल श्रेयस्कर हो सकता है। फुलझड़ी जैसे पटाखे का इस्तेमाल सीमित मात्रा में किया जा सकता है।
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खुले मैदान में पटाखे छोड़ना उचित
सीमित मात्रा में अगर आतिशबाजी करनी भी है तो खुले मैदान में करनी चाहिए। मोहल्ले और जनसंख्या के बीच में करने से नुकसान हो सकता है। इससे पशु और जानवर भी आतंकित हो जाते हैं। खुले मैदान में वायु प्रदूषण भी कम होता है। मोहल्ले के बीच में तंग गलियों में या छतों पर आतिशबाजी से नुकसान अधिक होता है। हालांकि दीपावली प्रकाश का पर्व है। इसलिए इस दिन देश में मिट्टी के दीप तेल के साथ प्रज्वलित करने की परंपरा है। कहते हैं इससे लक्ष्मी भी आकर्षित होती है। मिट्टी के दीप प्रज्वलित करने से कीड़े, मकोड़ा भी मरते हैं। सरसों और तिल के तेल से दीप प्रज्वलित किया जाता है। इस अवसर पर पटाखे के बजाय दीप प्रज्वलित कर खुशियां मनानी चाहिए।