काली कोख के अभिशाप से मुक्त नहीं हो पा रहा सीमांचल

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By JagranEdited By: Publish:Mon, 18 Oct 2021 07:51 PM (IST) Updated:Mon, 18 Oct 2021 07:51 PM (IST)
काली कोख के अभिशाप से मुक्त नहीं हो पा रहा सीमांचल
काली कोख के अभिशाप से मुक्त नहीं हो पा रहा सीमांचल

पूर्णिया। नेपाल व बांग्लादेश की सीमा पर अवस्थित पूर्णिया प्रमंडल काली कोख के अभिशाप से यह क्षेत्र अब भी मुक्त नहीं हो पा रहा है। केवल पूर्णिया जिले में सात वर्षों के दौरान चाइल्ड लाइन के माध्यम कुल 17 नवजात विभिन्न दत्तक केंद्र पहुंचाए गए हैं। इसमें नौ बच्चियां व आठ बच्चे शामिल हैं। इसके अलावा आधा दर्जन से अधिक नवजात को ग्रामीण इलाकों के निसंतान दंपतियों ने खुद से अंगीकार कर लिया। इसी औसत में पूर्णिया, कटिहार व अररिया जिले में सड़कों व बहियारों में नवजात मिलते रहे हैं, जिन्हें जन्म देने के बाद मां ने मुंह मोड़ लिया। कस्बाई क्षेत्रों से बरामद हुए हैं अधिकांश नवजात

चाइल्ड लाइन के जिला संयोजक मयूरेश गौरव के अनुसार सन 2014 से अब तक पूर्णिया जिले के विभिन्न प्रखंडों से 17 नवजातों को संरक्षण में लेते हुए विभिन्न विशिष्ट दत्तक केद्रों के हवाले किया गया है। उन्होंने बताया कि गत तीन साल पूर्णिया में ही दत्तक केंद्र संचालित है और अब यहां मिलने वाले बच्चे इसी केंद्र के सुपुर्द कर दिया जाता है। उन्होंने बताया कि अधिकांश नवजात कस्बाई क्षेत्रों से ही बरामद हुए हैं। इन बच्चों को कहीं सड़कों के किनारे तो कहीं खेल खलिहानों में छोड़ दिया गया। बाद में ग्रामीणों की सूचना पर चाइल्ड लाइन द्वारा बच्चों को अपने संरक्षण में लिया गया। ममता पर भारी पड़ रहा समाज का भय व लाज

समाजशास्त्री मनोज कुमार झा के अनुसार किशोरियों में भटकाव, बौद्धिक परिपक्वता का अभाव व समाज का भय आदि कारकों के कारण ममता बौनी पड़ रही है। प्रेम में छलावा भी इसका एक कारण बनता है। यह संक्रमित सामाजिक परिवेश का भी परिचायक है। सामाजिक विकास ही इसका निदान है। =======

वैरी हो रही मैया मगर आंचल को मोहताज नहीं कन्हैया.

पूर्णिया: काली कोख के मोती सूनी गोद के सितारे बन रहे हैं। भले ही जन्म देने वाली मां वैरी बन रही है, लेकिन ये नवजात आंचल को मोहताज नहीं है। पूर्णिया स्थित विशिष्ट दत्तक ग्रहण संस्थान के प्रमुख मु. असगर व प्रियंका कुमारी ने बताया कि यह केंद्र एक अप्रैल 2018 से संचालित है। इस केंद्र में पूर्णिया के अलावा अररिया व किशनगंज जिले में मिलने वाले नवजात व पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे रखे जाते हैं। एक सुखद बात यह है कि जिस औसत में जन्म देने वाली मां द्वारा किसी भी विवशता में नवजात का त्याग किया जाता है, उससे कम औसत उन दंपतियों की नहीं रहती है जो उन नवजातों को संतान के रुप में अंगीकार करते हैं। उन्होंने बताया कि तीन साल के अंदर उनके संस्थान से कुल 24 बच्चे गोद लिए गए हैं। इसमें छह बच्चों को विदेशी दंपतियों ने गोद लिया है, जबकि 18 बच्चों को देश के विभिन्न भागों के दंपती ने गोद लिया है।

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