आमजनों के पहुंच में इलाज होनी चाहिए सुलभ : एस राजशेखरन

फोटो - 22 पीआरएन - 1314 कैचवर्ड कार्यक्रम - ओपेन फ्रैक्चर पर व्यख्यान व कुल्हे की हड्डी पर

By JagranEdited By: Publish:Sat, 23 Feb 2019 12:03 AM (IST) Updated:Sat, 23 Feb 2019 12:03 AM (IST)
आमजनों के पहुंच में इलाज होनी 
चाहिए सुलभ : एस राजशेखरन
आमजनों के पहुंच में इलाज होनी चाहिए सुलभ : एस राजशेखरन

फोटो - 22 पीआरएन - 13,14

कैचवर्ड : कार्यक्रम

- ओपेन फ्रैक्चर पर व्यख्यान व कुल्हे की हड्डी पर कार्यशाला रहा मुख्य आकर्षण का केंद्र

- बोआकॉन का 45 वां वार्षिक सम्मेलन वीवीआइटी में शुरू

- तीन दिवसीय सम्मेलन में लगा है ऑर्थोपैडिक चिकित्सक का जमघट

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जागरण संवाददाता, पूर्णिया : स्थानीय विद्या विहार इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में बिहार आर्थोपेडिक संघ का 45वां वार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन शुक्रवार को हुआ। पहले दिन कोयम्बटूर के प्रो. एस राजशेखरन का ओपेन फ्रैक्चर पर व्याख्यान और महाराष्ट्र के एस शिवशंकर का कुल्हे की टुूटी हड्डी के इलाज में नई तकनीक पर कार्यशाला मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा। राजशेखरन अपने व्यख्यान पर डॉक्टर से मानवीय पक्ष पर जोर देने की अपील की। उन्होंने कहा कि चिकित्सा सुविधा तभी कारगर और अच्छी है जब उसकी पहुंच आम लोगों तक है। अगर ऐसी खर्चीली चिकित्सा सुविधा का क्या लाभ जो उस शहर के लोग वहन ही नहीं कर पाते हैं। साथ ही उन्होंने इस पर भी बल दिया कि चिकित्सक किसी हालत में ऐसे लोगों को वंचित नहीं होने दें जो अपनी परिस्थिति के कारण इलाज नहीं करा पा रहे हैं। यह मानवता प्रत्येक डॉक्टर के लिए जरूरी है। बोआकॉन के इस सम्मेलन में देश और विदेश के नामी आर्थोपेडिक सर्जन का व्याख्यान हुआ और अपने अनुभव साझा किया। तीन दिवसीय सम्मेलन का समापन 24 को होगा। तीन दिनों में करीब 500 चिकित्सक के इस सम्मेलन में शामिल होने की उम्मीद है। स्थानीय चिकित्सक के अलावा राज्य के सभी जिले और देश भर के नामी आर्थोपेडिक चिकित्सक इस सम्मेलन में शामिल हो रहे हैं। 350 चिकित्सकों ने सम्मेलन के लिए अबतक निबंधन हो चुका है। पहले दिन मुख्य वक्ता कोयम्बटूर के प्रो. एस राजशेखरन थे। इसके अलावा महाराष्ट्र से आए एस शिवशंकर ने कार्यशाला में कुल्हे की हड्डी टूटने पर लगने वाली प्लेट की जगह रॉड के इस्तेमाल की नई तकनीक के बारे में बताया। इस दौरान वीडियो सेशन हुआ। इसमें विस्तार से टूटी हड्डी के ऑपरेशन के बारे में जानकारी दी गई। सर्जरी के दौरान क्या करना चाहिए इस बारे में सलाह दिया गया और कौन सी तकनीक इस्तेमाल करने चाहिए उस बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। इस दौरान वीवीआइटी परिसर में कई दवा कंपनियों ने अपने स्टॉल लगाए हैं। दूसरे दिन सतत चिकित्सा की शिक्षा के अंतर्गत व्याख्यान होगा। साथ ही पोस्टर प्रजेटशन, वीडियो सेशन, केस परिचर्चा, बिहार आर्थोपेडिक एसोसिएशन के कार्यकारिणी की बैठक आयोजित होगी। इसके साथ ही जनरल बॉडी मीटिंग के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। तीसरे और आखिरी दिन ट्रॉमा विकृति संक्रमण पर व्यख्यान होगा। इसके अलावा पीजी छात्रों के लिए क्विज, व्याख्यान और प्रतियोगिता पेपर, पोस्टर प्रजेटेशन होगा। इस मौके पर डॉ केएस आनंद, डॉ एमएम हक, डॉ डीके यादव, डॉ अगंद आदि मौजूद थे।

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फोटो - 22 पीआरएन-12

ओपेन फ्रैक्चर में जोड़ा नया आयाम

बिहार आर्थोपेडिक एसोसिएशन के 45वें वार्षिक सम्मेलन का आयोजन पूर्णिया में हो रहा है। पहले विश्व आर्थोपेडिक कमेटी के डायरेक्टर और देश के ही नहीं विदेश में माने हुए सर्जन कोयम्बटूर के प्रो. एस राजशेखर का व्याख्यान विशेष आकर्षण का केंद्र था। इस दौरान स्थानीय और बाहर के आए चिकित्सक ने उनके व्याख्यान को सुना और उनके अनुभव से लाभांवित हुए। उन्होंने ओपेन फ्रैक्चर जिसमें हड्डी भी टूट जाती है और घाव भी हो जाता है, इसमें मांस फट जाता है जख्म हो जाता है साथ ही हड्डी भी टूट जाती है। ऐसी स्थिति डॉक्टरों के लिए दोहरी चुनौती होती है। इसका इलाज और उसकी तकनीक पर उन्होंने नए आयाम जोड़े। इस दौरान उन्होंने उपस्थित डॉक्टरों को कई महत्वपूर्ण सलाह भी दिए। उन्होंने कहा कि डॉक्टर को अपने मरीज के प्रति बहुत मानवीय रवैया अपनाना चाहिए। इस बात खास ख्याल रखना चाहिए कि कोई मरीज अगर उनके क्लीनिक पर पहुंच गया है और खर्च का वहन करने में सक्षम नहीं है तो भी वैसे मरीज का इलाज बंद नहीं होना चाहिए। इसके साथ डॉक्टर को यह देखना होगा उनके इस सोच का कोई गलत फायदा नहीं उठा लें। दरअसल प्रो. राजशेखरन का कहना था डॉक्टर के मानवीय रवैये का फायदा सही पात्र को ही मिले। इसके साथ ही समाज की भी जिम्मेदारी है कि वह वैसे डॉक्टर को सहयोग करें और जो खर्च वहन कर सकते हैं वह इलाज में किसी भी कटौती की उम्मीद नहीं करें। साथ ही उन्होंने बताया कि इलाज हमेशा शहर और वहां के लोगों के द्वारा वहन करने लायक होनी चाहिए। ऐसी सुविधा या ऐसे बड़े अस्पताल खोलकर कोई फायदा नहीं है जो वहां के लोग वहन नहीं कर पाएं। उन्होंने सभी युवा डॉक्टर को कार्य प्रति लगन और ईमानदारी अपनाने की सलाह दी।

फोटो - 22 पीआरएन-15

कुल्हे की हडडी टूटने पर करें रॉड का इस्तेमाल

आर्थोपेडिक सम्मेलन में कुल्हे की हडडी पर नए इलाज की तकनीक के बारे में कार्यशाला आयोजित हुई। प्रो. एस राजशेखरन के व्यख्यान के बाद वी शिवशंकर का व्याख्यान इस कार्यशाला का विशेष आकर्षण का केंद्र रहा। इस मौके पर महाराष्ट्र के बी शिवशंकर ने कुल्हे की हडडी टूटने के बाद बिना अधिक खर्च बढ़ाये कैसे इलाज किया जा सकता है इस संबंध में जानकारी दी। उन्होंने अपने वीडियो प्रजेटशन में बताया कि कुल्हे की हडडी टूटने पर आमतौर पर प्लेट लगाया जाता है। इसमें खतरा यह रहता है कि अगर प्लेट मुड़ गया तो दोबारा उसी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। यह शत प्रतिशत कारगर तरीका नहीं है। इसकी जगह पर अब रॉड का इस्तेमाल किया जा रहा है। प्लेट और रॉड के खर्च में मामूली अंतर है। इस तकनीक में रॉड को हडडी में ड्रिल कर लगा दिया जाता है। यह काफी मुश्किल नहीं है। आर्थोपेडिक सर्जन इसे बहुत ही आसानी से करते हैं। इस तकनीक का फायदा यह है कि इसमें मरीज जल्दी ठीक होते हैं। इसके साथ ही प्लेट की तरह रॉड के मुड़ने का खतरा नहीं रहता है। इस नई तकनीक से टूटे कुल्हे की हडडी जल्द जुड़ती है और कारगर इलाज होता है। इसमें तुलनात्मक रूप से मरीज जल्दी स्वस्थ होते हैं। उन्होंने कहा कि सम्मेलन का शानदार अनुभव है। इसमें डॉक्टर के एक दूसरे के इलाज के तरीके से अवगत होते हैं। ऐसे कई अनुभव और जानकारी को साझा करने का मौका मिलता है जो किसी किताब में नहीं मिलती है। इसलिए सम्मेलन सभी डॉक्टर के अपने अनुभव और जानकारी को साझा करने और अपने आपको अपग्रेड करने का शानदार मौका है। इलाज के दौरान कई बार डॉक्टर ऐसे प्रयोग करते हैं जो बुक में नहीं है जो काफी सफल भी होता है। इसलिए यह सम्मेलन सभी चिकित्सकों के लिए यादगार रहेगा।

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