पूर्णिया में हुआ कार्यक्रम, वक्ताओं ने कहा - सबौर मखाना-1 का अधिक बीज उत्पादन के लिए विवि सजग

मखाना विकास योजना की सफलता को देखते हुए मखाना विकास योजना को बिहार सरकार बड़े पैमाने पर चलाने का निर्णय लिया है तथा इसका विस्तार पांच वर्षों के लिए किया है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 14 Jun 2021 12:03 AM (IST) Updated:Mon, 14 Jun 2021 12:03 AM (IST)
पूर्णिया में हुआ कार्यक्रम, वक्ताओं ने कहा - सबौर मखाना-1 का अधिक बीज उत्पादन के लिए विवि सजग
पूर्णिया में हुआ कार्यक्रम, वक्ताओं ने कहा - सबौर मखाना-1 का अधिक बीज उत्पादन के लिए विवि सजग

पूर्णिया। मखाना विकास योजना की सफलता को देखते हुए मखाना विकास योजना को बिहार सरकार बड़े पैमाने पर चलाने का निर्णय लिया है तथा इसका विस्तार पांच वर्षों के लिए किया है। इसके लिए काफी मात्रा में सबौर मखाना-1 के बीज उत्पादन के लिए विश्वविद्यालय सजग है। उक्त बातें भोपाशा एग्रीकल्चर कॉलेज में कृषि प्रक्षेत्र के भ्रमण के लिए आए बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के अधिष्ठाता कृषि डॉ. रेवती रमण सिंह एवं निदेशक, छात्र कल्याण डॉ. राजेश कुमार ने कही। इस दौरान कॉलेज के प्राचार्य डॉ. पारसनाथ भी मौजूद थे। मौके पर हरी खाद पर भी चर्चा की गई।

इस मौके पर डॉ. रेवती रमण सिंह ने बताया कि अधिक तापक्रम के कारण यहां की मिट्टी में पाये जाने वाला नाइट्रोजन व जीवांश पदार्थ का अधिकांश भाग नष्ट हो जाता है। क्योंकि मिट्टी में 90 प्रतिशत से अधिक नाइट्रोजन कार्बनिक रूप में पाया जाता हैं। यही कारण है कि यहाँ की मिट्टी में जीवांश पदार्थ एवं नाइट्रोजन की कमी पायी जाती है। ऐसी स्थिति में हरी खाद मृदा में जीवांश पदार्थ की मात्रा में वृद्धि एवं उचित स्वास्थ्य के लिए एक उत्तम एवं सस्ता विकल्प है। डॉ. सिंह ने बताया कि रबी फसल की कटाई एवं खरीफ फसल की बोआई के बीच का समय हरी खाद की फसल के लिए सर्वोतम है क्योंकि इस दौरान सामान्यतया खेत खाली रहता है।

निदेशक छात्र कल्याण बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि मृदा उर्वरता में कमी का सीधा प्रभाव फसलों की उत्पादकता के साथ-साथ मानव स्वास्थ पर पड रहा है। मृदा उर्वरता को बढाने का सबसे अच्छा एवं सस्ता उपाय हरी खादों का उपयोग है। हरी खाद के प्रयोग से मृदा स्वास्थ के साथ साथ मानव के स्वास्थ पर भी सकात्मक प्रभाव पडेगा।

प्राचार्य डॉ. पारसनाथ ने कहा कि खाद्य और कृषि संगठन का अनुमान हे कि वैश्विक खाद्य उत्पादन को वर्ष 2030 तक 40 प्रतिशत तथा 2050 तक 70 प्रतिशत तक बढाने की आवश्यकता है। इसलिए हरी खाद खेतों के लिए आवश्यक है।

कृषि शस्य वैज्ञानिक एवं प्रभारी कृषि प्रक्षेत्र डॉ. जीएल चौधरी ने कहा कि ढैंचा की हरी खाद लेने के लिए ढैचा उपयुत है। इसके लिए प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल में 20-30 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

मृदा वैज्ञानिक डॉ. पंकज कुमार यादव ने कहा कि हरी खाद से मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा में भी वृद्धि होती है, वायु संचार बढ़ता है, मृदा तापमान में संतुलन आता है तथा लाभदायक जीवाणुओं की संख्या बढ़ती है।

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