भटकती पीढ़ी को अपने मूल में वापस लौटने के लिए झकझोरता है चिन्नामूल नाटक

जागरण संवाददाता पूर्णिया पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता और कला भवन नाट्य विभाग के

By JagranEdited By: Publish:Sun, 21 Nov 2021 07:32 PM (IST) Updated:Sun, 21 Nov 2021 07:32 PM (IST)
भटकती पीढ़ी को अपने मूल में वापस लौटने के लिए झकझोरता है चिन्नामूल नाटक
भटकती पीढ़ी को अपने मूल में वापस लौटने के लिए झकझोरता है चिन्नामूल नाटक

जागरण संवाददाता, पूर्णिया: पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता और कला भवन नाट्य विभाग के संयुक्त तत्वावधान में स्थानीय कला भवन के सुधांशु रंगशाला में चार दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य उत्सव का आयोजन किया जाता है। पहले दिन उड़िया नाटक व्याघ्र रोहन नाटक का शानदार मंचन किया गया जिसको दर्शकों की खूब सराहना मिली। हिन्दी में कथानक को पहले दर्शकों को संप्रेषित कर दिया जिस बाद रंगकर्मियों ने अपने अभिनय कौशल से भाषा की बंदिश को मिटा दिया। दूसरे दिन रविवार को रंगशाला में नाटक के दर्शकों की अच्छी भीड़ रही और असमिया भाषा में चिन्नामूल का शानदार मंचन हुआ। नाटक के निर्देशक असीम कुमार दास है। मंत्रमुग्ध होकर दर्शकों ने नाटक का आनंद लिया। आजादी के 75 वें अमृत महोत्सव के शुभ अवसर पर नाट्योत्सव के दूसरे दिन कला भवन के सुधांशु रंगशाला में असम के कलाकारों की जबरदस्त प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम की पूरी व्यवस्था रंगकर्मी अंजनी कुमार श्रीवास्तव, शिवाजी राम राव, राज रोशन, बादल झा, चंदन, अभिनव आनंद, आदि कलाकारों ने संभाला। कार्यक्रम के दौरान केंद्र के डिप्टी डायरेक्टर तापस कुमार सामंत्रे ने बताया कि बिहार सांस्कृतिक तौर पर काफी समृद्ध है। यहां मगध, मिथिला की संस्कृति की अपने एक अलग पहचान है। यह तो गौतम बुद्ध के ज्ञान की धरती है। बिहार की माटी में सांस्कृतिक रंग बिखरने का मौका मिला है। एक भारत श्रेष्ठ भारत का सपना तभी साकार होगा जब विभिन्न अपने -अपनी संस्कृतियों को संजोने का प्रयास करेंगे। कला भवन नाट्य विभाग के सचिव सह कार्यक्रम समन्वयक विश्वजीत कुमार सिंह बताया कि देश की विभिन्न प्रांतों की संस्कृति और भाषा को देखने और समझने का मौका पूर्णियावासियों को मिला है।

अपनी माटी और अपनी संस्कृति को पहचानने का दिया संदेश:-

बदलाव एवं स्वीकृति की प्रवृत्ति हमारी संस्कृति में हमेशा से रही है। विकास के सपनों के लालच में निर्दोष लोग खुद के मूल, जड़ और संस्कृति से अलग होते जा रहे हैं। चिन्नामूल नाटक में परंपरा और संस्कृति दूर होते लोगों की कहानी है। गहराई से नजर डालता है बाहरी व्यक्ति के बहकावे में आकार और दूसरों की चकाचौंध में अन्य जीवन शैली लोग अपना रहे हैं लेकिन यह अपनी विरासत और पहचान को खोने के समान है।

चिन्ना मूल जानवरों का एक रूपक व्यक्तित्व है। अभिनेता मनुष्यों और उनके लक्षणों का प्रतिनिधित्व करने के लिए बतख आदि अन्य जीव बन जाते हैं। अंतर्निहित कमजोरी का लाभ उठाते हुए कुछ लोगों को मुख्यधारा भटकाया जाता है।

दर्जनों नाटकों में कर चुकें है निर्देशन:-

निर्देशक असीम कुमार नाथ असम राज्य के जाने माने कलाकार हैं। इन्होंने कई नाटकों में बेहतर निर्देशन किया है। नाटक नास्ता एटी पद्या, दुशमांता, द लीयर, ब्लैक एपिसोड जारी है। तेजोट प्रतिबिबा, बायोनर खोल, राजा जगदंबा, बिसाड गथा, लाइफ कैनवास, चिन्नामल आदि शामिल है। असीम कुमार नाथ संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जूनियर फैलोशिप से भी सम्मानित किया गया है।

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