कागजों पर दर्ज है गांवों के नाम, जमीन पर बह रही नदी की धारा
पूर्णिया। अमौर प्रखंड क्षेत्र के दो दर्जन गांवों के नाम अब महज सरकारी दस्तावेज में बचे हैं। जमीन पर अब परमान व कनकई नदी की धारा बह रही है। गत दस वर्षों के दौरान प्रखंड क्षेत्र के एक दर्जन से अधिक गांव परमान व कनकई नदी के गर्भ में समा चुके हैं। इन गांवों के लोग विस्थापितों की जिदगी बीता रहे हैं। सड़कों के किनारे व अन्य सरकारी भूमि पर उनका समय बीत रहा है।
पूर्णिया। अमौर प्रखंड क्षेत्र के दो दर्जन गांवों के नाम अब महज सरकारी दस्तावेज में बचे हैं। जमीन पर अब परमान व कनकई नदी की धारा बह रही है। गत दस वर्षों के दौरान प्रखंड क्षेत्र के एक दर्जन से अधिक गांव परमान व कनकई नदी के गर्भ में समा चुके हैं। इन गांवों के लोग विस्थापितों की जिदगी बीता रहे हैं। सड़कों के किनारे व अन्य सरकारी भूमि पर उनका समय बीत रहा है। इधर कटाव का कहर साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है।
बता दें कि परमान नदी के कटान से 10 वर्षों में शादीपुर, सोनापुर,बलवा, मनवारे, रसेली, गेरिया, कदगवा , बिजलिया, ढरीया,परसराई, कोचका, सिघिया ,पलसा व बेलगाछी सहित कई अन्य गांव विलीन हो चुके हैं। धरातल पर अब इन गांवों का नामोनिशान भी मौजूद नहीं है। अब बस लोगों के जुबान पर ही इन गांवों का नाम बसा है। वही बकरा नदी के कटान से मंगलपुर, शर्मा टोली, छतरभोग ,मेनापुर आदि गांवों का अस्तित्व यहां मिट चुका है। वही कनकई नदी के कटाव से डहुआबाड़ी, तालबारी टोला, चौका गांव, सीमलवाड़ी, ज्ञानडोभ , मुर्गी टोला, खारी टोला, बासोल,बाबनडोभ, चनकी,तालबारी आदि गांव अब बस कागजों पर बचे हैं। कई प्रधानमंत्री सड़क एवं मुख्यमंत्री सड़क भी कटाव की भेंट चढ़ चुका है। इस स्थिति के कारण फिलहाल 50 हजार की आबादी आवागमन की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। लोग प्रति दिन पुल के अभाव के कारण नाव सहारे अपने जान के हथेली में रखकर पार होने के लिए मजबूर हैं।
कटाव के चलते कल के किसान बन गए मजदूर
परमान, कनकई व बकरा के कटाव के कारण केवल बस्तियों का अस्तित्व ही समाप्त नहीं हुआ है। इसके अतिरिक्त यहां के किसान भी इसका दंश झेल रहे हैं। सैकड़ों एकड़ उपजाउ भूमि नदियों के गर्भ में समा चुका है।
कभी क्षेत्र के समृद्ध किसान रहे इन परिवारों के लोग आज दिल्ली, पंजाब में नौकरी कर अपनी गृहस्थी चला रहे हैं। जानकारों का कहना है कि नदियों का प्राकृतिक छाड़न के अतिक्रमित होने के चलते क्षेत्र में कटाव का खतरा साल दर साल बढ़ रहा है। इसके अलावा सड़क व पुल-पुलियों के निर्माण से नदियों की अविरल धारा में रुकावट भी इस तबाही का कारण बन रहा है।