बढ़ते संक्रमण के सामने उपलब्ध संसाधन ऊंट के मुंह में जीरा समान

पूर्णिया। जिले में संक्रमण की दर बढ़ने के साथ ही स्थिति खराब होती जा रही है। प्रत्येक दिन 4

By JagranEdited By: Publish:Tue, 04 May 2021 07:54 PM (IST) Updated:Tue, 04 May 2021 07:54 PM (IST)
बढ़ते संक्रमण के सामने उपलब्ध संसाधन ऊंट के मुंह में जीरा समान
बढ़ते संक्रमण के सामने उपलब्ध संसाधन ऊंट के मुंह में जीरा समान

पूर्णिया। जिले में संक्रमण की दर बढ़ने के साथ ही स्थिति खराब होती जा रही है। प्रत्येक दिन 400 से 500 के बीच संक्रमित मिल रहे हैं। जांच किट के साथ अब अस्पताल में बेड की दिक्कत हो रही है। मौके पर मरीज को बेड नहीं मिल पा रहा है। इसके लिए उन्हें एक से दो दिन का इंतजार करना पड़ रहा है।

अब निजी लैब समेत सरकारी अस्पताल में जांच किट की दिक्कत प्रारंभ हो गई है। कई बार मरीज को वापस लौटाया जाता है और बाद में आने को कहा जाता है। घर पहुंच कर टेस्ट करने के लिए ना ही सरकारी और ना ही निजी लैब ही तैयार है। आरटी पीसीआर में तीन से चार दिनों की वेंटिग चल रही है। इसमें रिपोर्ट मिलना मुश्किल है। रिपोर्ट के लिए काई बार चक्कर लगाना पड़ता है। सही से कोई बताने को तैयार नहीं होता है। प्रशासन के दावा के उलट निजी अस्पतालों में बेड तक नहीं मिल रहे है। प्रशासन जिन अस्पतालों में बेड के खाली होने का दावा करता है वहां भी मरीज को वापस लौटना पड़ता है। पहले सात निजी अस्पताल थे लेकिन अब एक नया निजी अस्पताल भी इसमें जोड़ा गया है। मैक्स सेवन में 25 बेड पहले निर्धारित थे जिसको अब 40 कर दिया गया है। उसके बाद भी वहां मरीजों की भर्ती नहीं हो पा रही है। पिछले एक सप्ताह से वहां एक भी बेड खाली नहीं था। फातमा में 15 बेड हैं सभी भरे हुए हैं। गलैक्सी में 10, क्रिस्चयन अस्पताल 20, केके अस्पताल 05, सदभावना 20, नवज्योति अस्पताल 05, अलफा अस्पताल में 10 बेड है। एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल मरीजों को चक्कर काटना पड़ता है। अधिकांश अस्पतालों में बेड भरे हुए मिलते हैं। फोन पर सही से जवाब नहीं मिलता है। सक्रिय मरीजों की संख्या बढ़ने से हो रही है परेशानी -

जिले में अब सक्रिय मरीजों की संख्या 3200 से भी अधिक है। रोज इसमें चार सौ से 500 नए मरीज जुड़ जाते है। उस रफ्तार से मरीज रिकवर नहीं कर रहे हैं। संक्रमित सक्रिय मरीज बढ़ते ही गंभीर मरीज कम से कम ऑक्सीजन की समस्या वाले मरीज बढ़ते जा रहे हैं जिनको अस्पताल में भर्ती कर ही इलाज किया जा सकता है। निजी अस्पताल की तरफ पहले लोग रूख करते हैं। दो दिनों तक अस्पताल में बेड की संख्या महज 70 थी जो अब बढ़ा कर 115 तक की गई है। सक्रिय मरीजों में दस फीसद को भी अगर अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता हुई तो यह संसाधन ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा है।

केस स्टडी -:

अशोक कुमार शहर के व्यवसायी है उनको जब सांस की समस्या हुई तो उन्हें अस्पताल में बेड से भटकते रहे लेकिन उन्हें सुबह से शाम हो गई लेकिन बेड नहीं मिला। काफी मशक्कत और काफी फोन के बाद उन्हें देर शाम एक बेड मुहैय्या कराया गया है। कौशिक कुमार के साथ भी ऐसा ही हुआ। प्रमुख निजी अस्पताल ने बेड देने से इनकार कर दिया तो अन्य शहर लेकर जाना पड़ा। किसी भी अस्पताल में चले जाएं 12 घंटे से एक दिन की वेटिग तो रहेगी। तुरंत तो कहीं भी बेड नहीं मिलेगा। तब तक ऑक्सीजन सिलेंडर के भरोसे ही मरीज का उपचार करते रहना होगा।

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