कोरोना से नहीं मिली राहत, लंफी बीमारी पशुओं के लिए बनी आफत

पूर्णिया [राजीव कुमार] विश्वव्यापी कोरोना से अभी लोगों को राहत भी नहीं मिली है की पशु पाल

By JagranEdited By: Publish:Thu, 27 Aug 2020 07:33 PM (IST) Updated:Thu, 27 Aug 2020 07:33 PM (IST)
कोरोना से नहीं मिली राहत, लंफी बीमारी पशुओं के लिए बनी आफत
कोरोना से नहीं मिली राहत, लंफी बीमारी पशुओं के लिए बनी आफत

पूर्णिया [राजीव कुमार]

विश्वव्यापी कोरोना से अभी लोगों को राहत भी नहीं मिली है की पशु पालकों के लिए एक बड़ी आफत लंफी चर्म रोग की बीमारी आ गयी है। यह बीमारी भी कोरोना की तरह कमजोर इम्यूनिटी वाले पशुओं के लिए मौत का कारण बन रही है। सीमांचल के जिलों पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज सहरसा, मधेपुरा एवं सुपौल में पशुओं में फैल चुकी है। यह एक वायरल बीमारी है और सम्पर्क में आने के बाद एक पशुओं से दूसरे पशुओं में फैल रही है। बड़ी संख्या में पशुओं में इस बीमारी के फैलने के बाद पशुपालन विभाग ने सरकार को एक त्राहिमाम संदेश भेजा है। जिसके बाद राज्य मुख्यालय स्थित पशुपालन विभाग भी हरकत में आ गया है। बताया जाता है कि बिहार के पूर्व यह बीमारी पंजाब, मध्यप्रदेश, हरियाणा एवं छतीसगढ़ में भी पशुओं में फैल चुकी है। इसकी

व्यापकता को देखते हुए अब इसके लिए भी केन्द्र सरकार टीका विकसित करने की तैयारी कर रही है। सीमांचल में इस बीमारी से अब तक तीन लाख से अधिक पशु इसकी चपेट में आ चुके हैं जिस कारण पशु पालकों के समक्ष बड़ी समस्या उत्पन्न हो गयी है।

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क्या है लंफी वायरस के लक्षण

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इससे संक्रमित पशुओं में बुखार 104 डिग्री से अधिक होता है। पशुओं को भूख नहीं लगती है और वे खाना छोड़ देते हैं। उनके आंख एवं नाक से पानी बहने लगता है तथा दूध देने वाले पशुओं का दूध काफी कम हो जाता है। इसके अलावा शरीर के कई हिस्सों में पहले छोटे- छोटे धाव हो जाते हैं और फिर वे धीरे - धीरे बढ़ते जाते हैं और उससे उनका चमड़ा गलकर गिरने लगता है। यह बीमारी पशुओं के कई अंगों को भी अपना निशाना बनाती है। कमजोर इम्यूनिटी वाले पशुओं की कुछ दिनों के बाद पशुओं की इससे मौत भी हो जाती है।

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वायरस की दवा नहीं लक्षण से इलाज

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अभी तक इस वायरस का कोई इलाज नहीं है और पशु चिकित्सक लक्षणों के आधार पर इसका इलाज कर रहे हैं। इससे संक्रमित पशुओं को एंटी बाइटिक की सुई केअलावा दर्द निवारक सुई एवं विटामिन की सुई दी जाती है। मजबूत इम्यूनिटी वाले पशु इस दवा के बाद ठीक हो जाते हैं जबकि कमजोर इम्यूनिटी वाले पशुओं की मौत हो जाती है।

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मवेशियों के बीच शारीरिक दूरी बनाकर बचाया जा सकता है इसके संक्रमण से

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कोरोना बीमारी की तरह इस बीमारी से भी पशुओं को शारीरिक दूरी बनाकर इसके संक्रमण से बचाया जा सकता है। मख्खियां इस बायरस को पशुओं में फैलाने की सबसे बड़ी संवाहक होती है। पशु चिकित्सक डा. ए. एन मंडल कहते हैं की यह वायरस कैप्री पोक्स के परिवार से जुड़ा बायरस है। भारत में पहली बार इसकी पहचान 2019 में उड़ीसा में की गयी थी।

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सीमांचल में पशु पालन है लोगों का मुख्य व्यवसाय

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बाढ़ एवं त्रासदी को झेलने वाले सीमांचल के जिलों के लोगों का पशुपालन एक मुख्य व्यवसाय है। पशुपालन से ही यहां के लाखों परिवारों को दो जून की रोटी नसीब होती है। इन पशुओं से दूध का उत्पादन बड़ी मात्रा में यहां होता है।

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कोट

इस बीमारी के कई जिलों में पशुओं में फैलने की सूचना मिली है, जिस इलाके में इसके फैलने की सूचना मिलती है वहां चिकित्सकों को कैंप करने का निर्देश दिया गया है इसके अलावा इस बीमारी के टीके के लिए भी भारत सरकार को पत्र लिखा गया है: पशुपालन निदेशक विनोद सिंह गुंजियाल

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