सिमरिया में बने स्टैच्यू ऑफ लिटरेचर

अभिलेख भवन सभागार में मंत्रिमंडल सचिवालय (राजभाषा) विभाग के तत्वावधान में मनी जयंती

By JagranEdited By: Publish:Tue, 24 Sep 2019 01:31 AM (IST) Updated:Tue, 24 Sep 2019 01:31 AM (IST)
सिमरिया में बने स्टैच्यू ऑफ लिटरेचर
सिमरिया में बने स्टैच्यू ऑफ लिटरेचर

पटना। अभिलेख भवन सभागार में मंत्रिमंडल सचिवालय (राजभाषा) विभाग के तत्वावधान में केदारनाथ मिश्र 'प्रभात' एवं रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के दौरान दिनकर के सम्मान में बेगूसराय के सिमरिया में स्टैच्यू ऑफ लिटरेचर बनाए जाने की मांग उठी। इस मौके पर बिहार हिदी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री डॉ. शिववंश पांडेय ने कहा कि प्रभात और दिनकर में दोनों में बहुत समानता है। दोनों ने एक साथ लिखना शुरू किया। दिनकर की पहली कविता 1926 में जबलपुर से छपी और केदार नाथ मिश्र प्रभात की पहली कविता 1923 में कोलकाता से छपी। दोनों नौकरी सेवा में भी साथ चले। केदारनाथ मिश्र 'प्रभात' हिदी के राष्ट्रीय स्तर के यशस्वी कवि थे। वे प्राचीन परंपरा का अनुसरण करने के बावजूद नवीन भाव-बोध एवं नूतन युग-चेतना को वाणी देने में सतत लगे रहे।

डॉ. विजय कुमार शांडिल्य ने कहा कि प्रभातजी ने छायावादी रचना-शैली में मानव जीवन के लिए ऊर्जा से भरे संदेश दिये हैं। उनकी कविताओं में खड़ी बोली की काव्य-शक्ति का परिमार्जित रूप निखरा है। डॉ. फरजाना इरफान ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि प्रभात जी में छायावाद की रोमाटिक हिलोर अवश्य है, लेकिन उनके साहित्यिक दृष्टिकोण और काव्य-सिद्धात प्रखर, स्पष्ट एवं सुसंगत हैं। वरिष्ठ कवि रामउपदेश सिंह विदेह ने रामधारी सिंह दिनकर को अपने व्याख्यान का विषय बनाया और कहा कि दिनकर न सिर्फ नव-स्वच्छंद कविता के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि थे बल्कि सर्वश्रेष्ठ कवि भी थे। उनके प्रथम कविता संग्रह विजय-संदेश की कविताएं इस बात का प्रमाण हैं कि उनकी कवि-प्रतिभा का प्रथम उन्मेष राष्ट्रीय कविताओं में हुआ।

पौरुष के गायक हैं रामधारी सिंह दिनकर

पटना जंक्शन के स्टेशन निदेशक निलेश कुमार ने कहा कि जिस तरह से न्यूयार्क में स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी है, उसी तरह से सिमरिया में भी स्टेच्यू ऑफ लिटरेचर होनी चाहिए। बिहार की धरोहरों को हमने पटना जंक्शन पर उकेरने की कोशिश की है। दिनकर जी के सम्मान में उनकी कृति पटना जंक्शन पर उकेरी गई है और उनकी चंद पंक्तियां लिखी हुई हैं, जिसे हजारों लोग देखते हैं। दिनकरजी पौरुष के गायक हैं। वे शुरू से अंत तक भाषा एवं अभिव्यक्ति के साथ निरंतर प्रयोग करते रहे। 'वाद' और 'धारा' से वे कभी चिपके नहीं।

चेतना के शिखर पर नंगे पांव चले प्रभात

हिदी प्रगति समिति के अध्यक्ष और कवि सत्यनारायण ने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि चेतना के शिखर पर नंगे पांव चलना क्या होता है, यह कोई प्रभात जी से सीखे। मराठी के प्रसिद्ध उपन्यासकार शिवाजी सावंत ने अपना प्रसिद्ध उपन्यास मृत्युंजय प्रभात जी की कृति 'कर्ण' से प्रेरणा प्राप्त कर ही लिखा। लीक से हटकर प्रभातजी ने कैकेयी में कैकेयी को राष्ट्रमाता की तरह देखा। वह कहती है-'वैधव्य मुझे स्वीकार, राष्ट्र की जय हो/दासत्व नहीं स्वीकार, राष्ट्र की जय हो।' महाकवि दिनकर के विषय में उन्होंने कहा कि दिनकर ने राष्ट्र और समाज की कविता के समांतर प्रेम और श्रृंगार की कविता भी लिखीं। उनके राष्ट्र और समाजपरक काव्य की परिणति 'कुरूक्षेत्र' में हुई है, जबकि प्रेम और श्रृंगारपरक काव्य की परिणति 'उर्वशी' में। विभाग के विशेष सचिव डॉ. उपेंद्रनाथ पाण्डेय ने भी विचार रखे।

काव्य गोष्ठी से हुआ कार्यक्रम का समापन

कार्यक्रम के आरंभ में विभाग के उप निदेशक अनिल कुमार लाल ने स्वागत भाषण में महाकवि प्रभात और दिनकर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षिप्त प्रकाश डाला और जीवन में कविता की प्रासंगिकता को रेखाकित किया। सभा के अंत में एक संक्षिप्त काव्य-गोष्ठी भी हुई। इसमें डॉ. रानी श्रीवास्तव, हृदयनारायण झा, सरस्वती सिंह और मनोरमा तिवारी ने काव्य-पाठ किया। संचालन डॉ. प्रमोद कुंवर तथा धन्यवाद ज्ञापन लालबाबू पासवान ने किया। प्रगतिशील लेखक संघ की अध्यक्ष डॉ. रानी श्रीवास्तव ने अपनी लिखी कविता 'बिसात पर बिछाई जाती रही, हारी जाती रही, जीती जाती रही, हर काल खंड में, प्रश्न बन खड़ी रहीं औरतें..' पढ़ी।

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