लेखिका शांति जैन का निधन, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों पद्मश्री लेने की ख्वाहिश रह गई अधूरी

बिहार गान की रचयिता पद्मश्री डॉ. शांति जैन का हृदयघात से रविवार लोहानिपुर स्थित गिरि अपार्टमेंट (पटना) में निधन हो गया। 75 वर्षीय डॉ. शांति जैन का अंतिम संस्कार गुलबी घाट में उनके भतीजे सुनील प्रकाश ने किया।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Sun, 02 May 2021 05:26 PM (IST) Updated:Sun, 02 May 2021 05:26 PM (IST)
लेखिका शांति जैन का निधन, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों पद्मश्री लेने की ख्वाहिश रह गई अधूरी
बिहार गान की रचयिता पद्मश्री डॉ. शांति जैन। जागरण आर्काइव।

प्रभात रंजन, पटना। बिहार गान की रचयिता, लोक गायिका, विदुषी साहित्यकार, आकाशवाणी और दूरदर्शन कलाकार पद्मश्री डॉ. शांति जैन का हृदयघात से रविवार लोहानिपुर स्थित गिरि अपार्टमेंट में निधन हो गया। 75 वर्षीय डॉ. शांति जैन का अंतिम संस्कार गुलबी घाट में उनके भतीजे सुनील प्रकाश ने किया। पद्मश्री शांति जैन की छोटी बहन शारदा जैन ने बताया कि शनिवार की रात उनसे फोन पर बात हुई थी। उनकी तबीयत कुछ ठीक नहीं थी। शारदा जैन ने कहा कि दीदी को राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री का पुरस्कार मिलना था, जिसका अफसोस रहेगा।

आरा में हुआ था जन्म

शारदा ने बताया कि दीदी ने कहा था कि दिल्ली में राष्ट्रपति से पद्मश्री पुरस्कार मिलने के बाद परिवार और साहित्य प्रेमियों के लिए पार्टी करेंगे। उनका ये सपना अधूरा रह गया। शांति जैन तीन बहनों के बीच में थीं। उनकी बड़ी बहन शिला जैन, बड़े भाई विमल जैन थे, जिनका निधन बहुत पहले हो गया था। डॉ. शांति जैन मूल रूप से मध्य प्रदेश की रहने वाली थीं, लेकिन उनका जन्म बिहार के भोजपुर जिले के आरा शहर में चार जुलाई 1946 को हुआ था। पद्मश्री डॉ. शांति जैन की पढ़ाई भी आरा में हींहुई। कठोर अनुशासन में रहते हुए जैन बाला विश्राम हॉस्टल में पढ़ाई की, जहां सिर्फ जैन लड़कियां ही रहती थीं। आरा के जैन कॉलेज से शांति जैन ने स्नातक की डिग्री प्राप्त की। फिर बाद के दिनों में संस्कृत, हिंदी में एमए करने के बाद पीएचडी, डि.लिट ली।

आकाशवाणी में सेवा देने के बाद बनीॆ व्याख्याता 

चार साल तक आकाशवाणी पटना में अपनी सेवा देने के बाद शांति जैन पटना वीमेंस कॉलेज में संस्कृत की लेक्चरर बनीं। श्री अरिंवद महिला कॉलेज में हिंदी विभाग के प्राध्यापक प्रो. शिवनारायण बताते हैं कि शांति जैन वीमेंस कॉलेज से श्री अरिवंद महिला काॅलेज में आईं। यहां उन्होंने 14 साल  शिक्षिका के रूप में सेवा दी। सरकार के आदेश के बाद डॉ. शांति जैन आरा के जैन कॉलेज में पढ़ाने गईं और वहीं से 2008 में संस्कृत विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त हुईं। पढ़ाने के दौरान उनका साहित्य लेखन का काम चलता रहा। साहित्य लेखन पर उन्होंने 40 से अधिक किताबें अलग-अलग विधाओं में लिखीं, जिसके कारण राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार मिले। 

जेपी को भजन सुनाने जाती थीं आवास

रेडियो पर गायी रामायण की चौपाई के कारण डॉ. शांति जैन को पूरा बिहार व उत्तर प्रदेश सुनता था। शांति की छोटी बहन शारदा ने बताया कि 1978 के दौरान लोकनायक जयप्रकाश नारायण बीमार रहा करते थे। उनका डायलिसिस चल रहा था। जेपी के पास बहुत लोग आते भजन-गीत सुना पैसे ले जाते थे। इसी क्रम में पटना के एसपी गंगा शरण सिंह से शांति जैन की मुलाकात हुई। उन्होंने जेपी को भजन-गीत सुनाने की विनती की। जेपी को गीत-भजन सुनाने डॉ. शांति जैन कदमकुआं स्थित जेपी आवास में जाया करती थीं। रामायण की चौपाई जेपी पर नींद की दवा का काम करती थी। 

साहित्य को मिला पुरस्कार 

शांति जैन को वर्ष 2009 में संगीत नाटक अकादमी दिल्ली से राष्ट्रीय सम्मान, वर्ष 2008 में राष्ट्रीय देवी अहिल्या सम्मान, वर्ष 2006 में केके बिड़ला फाउंडेशन की ओर से शंकर पुरस्कार, वर्ष 2008 में बिहार सरकार से बिहार कलाकार सम्मान, चैती पुस्तक के लिए 1983 में बिहार सरकार द्वारा राजभाषा पुरस्कार, वर्ष 2018 में दिनकर सुलभ साहित्य सम्मान मिला। जैन की प्रकाशित पुस्तकों में वेणीसंहार की शास्त्रीय समीक्षा, काव्य पुस्तक एक वृत्त के चारों ओर, छलकती आंखें, हिंदी गीत पिया की हवेली, कविता संग्रह हथेली का आदमी, धूप में पानी की लकीरें, एक कोमल क्रांतिवीर के अंतिम दो वर्ष, समय के स्वर आदि पुस्तकें प्रमुख हैं।

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