पूनम के दांव में फंसकर बड़े-बड़े पहलवान हो जाते हैं चित, कैमूर के गांव से बनाई पूरे राज्य में पहचान
गांव-समाज के तानों से बेपरवाह हो पूनम ने बनाई पहचान दो भाई व दो बहनों में सबसे बड़ी पूनम बताती हैं बचपन में लड़कों से कुश्ती खेलते देख गांव-समाज भी तरह-तरह के ताने देता था। लेकिन माता-पिता ने इन बातों को नजरअंदाज कर हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहे
पटना, जागरण संवाददाता। Lady Sportsman in Bihar: बिहार जैसे राज्य में महिलाओं और लड़कियों का खेल के मैदान में उतरना आज भी बड़ी बात है। ऐसी तस्वीरें आज भी बिहार के कई इलाकों में देखा जाना संभव नहीं है। ऐसे प्रतिकूल हालात में बिहार की बेटी पूनम ने कुश्ती के खेल में अपना परचम लहराया है, जिस खेल को आम तौर पर पुरुषों का ही खेल माना जाता है।
कैमूर (Kaimur) जिले के शहुका (Sahuka) गांव की रहने वाली 20 वर्षीय पूनम देवी (Punam Devi) ने कुश्ती प्रतियोगिता (Wrestling championship) में राज्य स्तर पर पांच गोल्ड मेडल जीत अपनी पहचान बनाई है। दो भाई व दो बहनों में सबसे बड़ी पूनम बताती हैं, बचपन में लड़कों से कुश्ती खेलते देख गांव-समाज भी तरह-तरह के ताने देता था। लेकिन माता-पिता ने इन बातों को नजरअंदाज कर हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहे।
पूनम के पिता वीरेंद्र यादव ट्रक चालक हैं और मां गीता देवी कुशल गृहणी हैं। इसके बावजूद माता-पिता पूनम के सपने को पूरा करने में सहयोग दे रहे हैं। वे बताती हैं, खेल के प्रति बचपन से ही रूझान था। पहले दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेती थी, लेकिन इसमें भाग्य साथ नहीं दिया। वहीं जिले में जूनियर कुश्ती प्रतियोगिता हुई, जिसमें भाग लिया। प्रयास अच्छा रहा। अब दिन-रात कुश्ती के दांव-पेच दिमाग में चलता रहा।
15 किलोमीटर रोजाना चलानी पड़ती थी साइकिल
बेहतर प्रशिक्षण मिले, इसके लिए अपने गांव से प्रतिदिन 15 किलोमीटर साइकिल चलाकर एकलव्य संस्था पहुंचती थी। हर दिन सुबह चार बजे घर से निकलना होता था। लोग खूब ताने मारते थे, लेकिन हमने किसी की नहीं सुनी। पढ़ाई के साथ खेल पर ध्यान देते रहे। हमारी मेहनत को देख गांव की अन्य लड़कियां भी आगे बढऩे को प्रेरणा देती रहीं। पूनम ने बताया कि इन दिनों मुगलसराय (पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर) में होने वाली कुश्ती प्रतियोगिता को लेकर मेहनत करने में जुटी हैं। 29 जनवरी को आगरा में राष्ट्रीय प्रतियोगिता होनी है।