World Rhinoceros Day 2020: पटना जू में है भारत का सबसे बड़ा गैंडों का परिवार, विश्व में दूसरा स्थान

संकटग्रस्त प्राणियों में शामिल गैंडा को संजय गांधी जैविक उद्यान में अनुकूल वातावरण और संरक्षण मिल रहा है। गैंडा के प्रजनन और संरक्षण के क्षेत्र में बिहार की राजधानी का पटना जू पूरे विश्व में दूसरे स्थान पर है।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Tue, 22 Sep 2020 12:33 PM (IST) Updated:Tue, 22 Sep 2020 12:33 PM (IST)
World Rhinoceros Day 2020: पटना जू में है भारत का सबसे बड़ा गैंडों का परिवार, विश्व में दूसरा स्थान
संजय गांधी जैविक उद्यान में टहलता गैंडे का बच्चा। पटना जू का गैंडा प्रजनन में है दूसरा स्थान।

पिंटू कुमार, पटना। संकटग्रस्त प्राणियों में शामिल गैंडा को संजय गांधी जैविक उद्यान में अनुकूल वातावरण और संरक्षण मिल रहा है। यही वजह है कि यहां गैंडों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। गैंडा के प्रजनन और संरक्षण के क्षेत्र में पटना जू पूरे विश्व में दूसरे स्थान पर है। इस मामले में पहले स्थान पर अमेरिका का सैनडियागो जू है। हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना जू में दो सींग वाले गैंडा इंक्लोजर का उद्घाटन किया है, जहां दर्शक गैंडे को काफी नजदीक से देख सकते हैं। 

चिडिय़ाघर में हैं 13 गैंडे

जानवरों के अदला-बदली कार्यक्रम के तहत दिल्ली, कानपुर, रांची, हैदराबाद और अमेरिका को गैंडे उपलब्ध कराने के बावजूद संजय गांधी जैविक उद्यान में गैंडों की संख्या 13 है। इनमें दो शिशु गैंडा सहित सात नर और छह मादा शामिल हैं। 

चिडिय़ाघर की शान हैं ये गैंडे 

नाम          जन्म तिथि         लिंग 

हड़ताली      8 जुलाई 1988     मादा 

रानी           6 जुलाई 1991    मादा

अयोध्या      27 दिसंबर 1992   नर

गौरी          8 अगस्त 2002    मादा

गणेश        19 सितंबर 2004   नर

लाली        3 दिसंबर  2005    मादा

शक्तिराज    30 अक्टूबर 2007   नर 

एलेक्शन    6 अप्रैल    2009   मादा 

जंबो       11 नवंबर 2011     नर

विद्युत       6 सितंबर 2013     नर

शक्ति        8 जुलाई 2017      नर

गुड़िया      8 मई 2020        मादा 

युवराज      16 जून  2020     नर 

गैंडा संरक्षण केंद्र है जू की शान

यहां 3.5 एकड़ में फैला हुआ गैंडा संरक्षण केंद्र है। इसे केंद्रीय चिडिय़ाघर प्राधिकरण के सहयोग से 538.74 लाख रुपये की लागत से बनाया गया है। इसमें छह नाइट हाउस हैं, जहां एक साथ 25 गैंडों को रखा जा सकता है। यहां एक नर गैंडा गणेश व मादा गैंडा लाली को छोड़ा गया है। अगले पांच वर्ष में गैंडों की संख्या 20 तक पहुंचाने का लक्ष्य है। 

3.5 एकड़ में फैला है गैंडा संरक्षण केंद्र

538.74 लाख रुपये की लागत से हुआ निर्माण

25 गैंडों को रखने की है व्यवस्था

05 साल में गैंडों की संख्या 20 तक पहुंचाने का लक्ष्य

नजदीक से देख सकेंगे दो सिंग वाले गैंडे को

चिडियाघर घूमने वाले दर्शक दो सींग वाले गैंडे को नजदीक से देख सकेंगे। दो सींग वाले गैंडे के अत्याधुनिक इंक्लोजर का निर्माण 100.7 लाख रुपये की लागत से किया गया है। यहां वियतनाम से दो सींग वाले गैंडे को अदला-बदली योजना के तहत लाया जाना है। इस इंक्लोजर में गैंडों को नजदीक से देखने की सुविधा है। 

ऐसे हुई थी शुरुआत

28 मई 1979 को असम से एक जोड़ा भारतीय गैंडा संजय गांधी जैविक उद्यान में लाया गया था। इसमें नर कांछा की उम्र लगभग दो वर्ष और मादा कांछी की उम्र लगभग 5 वर्ष थी। तीन वर्ष बाद 28 मार्च 1982 को तीसरा गैंडा नर राजू बेतिया से लाया गया। इसकी उम्र लगभग एक वर्ष थी। उद्यान के प्राकृतिक वातावरण और उत्कृष्ट प्रजनन नीतियों के कारण राजू और कांछी ने 8 जुलाई 1988 को एक मादा गैंडा को जन्म दिया। राजू और कांछी फिर 8 जुलाई 1991 को एक मादा गैंडा को जन्म दिये। वर्ष 1991 में गैंडों की संख्या 5 हो गई। असम से प्राप्त नर गैंडा कांछा और लगभग 18 वर्ष की उम्र में कांछी के मिलन से वर्ष 1993 में एक नर गैंडा का जन्म हुआ। वर्ष 1988 में उद्यान में जन्मी मादा हड़ताली ने 9 वर्ष की उम्र में पहली बार 1997 में एक नर गैंडा को जन्म दी। हड़ताली अबतक कुल 10 शिशु को जन्म दे चुकी है। उद्यान के पास अब गैंडों की चार ब्लड-लाइन है, जो शायद ही दुनिया के किसी चिडिय़ाघर में उपलब्ध है। 22 सितंबर 2017 को विश्व गैंडा दिवस के मौके पर उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने गैंडा प्रजनन और संरक्षण केंद्र का शिलान्यास किया था। 

28 मई 1979 को असम से आया था पहला गैंडा

08 जुलाई 1988 को जू में जन्मा था पहला गैंडा

04 ब्लड लाइन मौजूद है गैंडा की पटना जू में

13 गैंडे हैं अब संजय गांधी जैविक उद्यान में

पटना जू के निदेशक अमित कुमार कहते हैं, संजय गांधी जैविक उद्यान में गैंडा प्रजनन और संरक्षण अपने तरह का पहला केंद्र है, जिसे केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण के आंशिक वित्तीय अनुदान से बनाया गया है। इस केंद्र में नर गणेश और मादा लाली को छोड़ा गया है, जो प्राकृतिक वातावरण में काफी अच्छे से रह रहे हैं। 

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