खेतों में जला दिए जानेवाले पुआल से बिहार में महिलाओं को मिल रहा रोजगार

बिहार के खेतों में फसल अवशेष को जलाने से रोकने के लिए सरकार कई तरह के प्रयास कर रही है। पुआल प्रबंधन वाले कृषि यंत्रों की खरीद पर 80 फीसद छूट के साथ-साथ इसे रोजगार से जोड़ने की कोशिश परवान पर है। पुआल से मशरूम मूर्तिकारी और फ्रेमिंग

By Sumita JaiswalEdited By: Publish:Sun, 07 Mar 2021 03:14 PM (IST) Updated:Sun, 07 Mar 2021 03:14 PM (IST)
खेतों में जला दिए जानेवाले पुआल से बिहार में महिलाओं को मिल रहा रोजगार
पुआल पर उगाया जा रहा मशरूम, सांकेतिक तस्‍वीर ।

पटना, रमण शुक्ला । बिहार के खेतों में पुआल जलाने से रोकने के लिए सरकार कई स्तर पर प्रयास कर रही है। पुआल प्रबंधन को लेकर लगातार नवाचार किए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षी योजना जल जीवन हरियाली से लेकर उद्योग और रोजगार में पुआल की भूमिका को जोडऩे का सिलसिला परवान पर है। यही नहीं, पुआल जलाने से होने वाले प्रदूषण पर रोकथाम के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं।

पुआल प्रबंधन को प्राथमिकता

कृषि विभाग की ओर से पुआल प्रबंधन को लेकर कृषि यंत्रों की खरीदारी पर 75 से 80 फीसद तक छूट (अनुदान) का प्रविधान किया गया है। आठ तरह के कृषि यंत्रों पर 40 हजार से लेकर 2.50 लाख रुपये तक का अनुदान सरकार दे रही है। पुआल को सीधे रोजगार से जोडऩे के प्रयास किए जा रहे हैं। पुआल से पशुओं के लिए चारा के साथ साथ चटाई निर्माण, मूर्ति निर्माण, स्मृति चिह्न, मशरूम उत्पादन में इस्तेमाल के साथ कंपोस्ट खाद बनाए जा रहे हैं। 

उद्योग विभाग ने फसल अवशेष से पल्प और भूसा का ब्रीकेट बनाने की यूनिट लगाने के लिए इसे प्रायोरिटी सेक्टर घोषित किया है। बरौनी डेयरी में प्रतिदिन 20 मीट्रिक टन भूसा का उपयोग ब्यॉयलर में किया जाता है।

हाजीपुर डेयरी के लिए वाष्प उत्पादन में थर्ड पार्टी द्वारा भूसा का ब्रीकेट व्यॉयलर के लिए उपयोग किया जाता है। सर्दियों में दूध पाउडर बनाने के समय लगभग 30 मैट्रिक टन भूसा का ब्रीकेट का उपयोग प्रतिदिन किया जाता है, जबकि अन्य महीनों में 2 मैट्रिक टन का उपयोग प्रतिदिन होता है। यही नहीं, फसल अवशेष को खेत में ही जैविक खाद के रूप में परिवर्तित किया जा रहा है।

जीविका दीदियां बना रहीं स्मृति चिह्न

जहानाबाद में कृषि विज्ञान केंद्र के पुआल से सैकड़ों जीविका दीदियां पुआल से स्मृति चिह्न व उपहार सामग्री बनाकर छह-सात सौ रुपये में बेच रही हैं। जहानाबाद कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं महिलाओं को मुफ्त में पुआल मुहैया कराया जाता है। पटना, कोलकाता और दिल्ली के मार्केट में अच्छी मांग हैं।

पुआल पर मशरूम की खेती

भूसे के तुलना में पुआल पर मशरूम उगाना ज्यादा लाभकारी है। लागत भी कम आर ही है। किसानों मुनाफा बढ़ा है। गर्मी के मौसम में पुआल पर कम समय में मशरूम का अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। भूसा पर जहां 30 से 35 दिन लगते हैं। वहीं, पुआल पर इसे 15 से 20 दिनों में ही तैयार हो जाता है। गर्मी में पारंपरिक तकनीक से दूधिया मशरूम उगाया जा रहा है। इसके विकल्प के रूप में पुआल पर एक्स्ट्रा पैडी मशरूम विकसित की जा रही है। धान की कटाई के बाद जो पुआल होते हैं, उसे छोटी-छोटी मुट्ठी (अंटिया) बांध लिया जाता है। आगे 15 से 20 मिनट तक पानी में फुलाकर गर्म पानी से उपचारित किया जाता है। फिर चौकोर या बोझे की तरह उसे बांधकर नीचे के पुआल वाली मुट्ठी पर मशरूम के बीज को रखा जाता है। इसके बाद परत दर परत पुआल रखकर बीज डाला जाता है। इस तरह छोटे टेबल का आकार बनाकर घर में ही मशरूम उत्पादन किया जा रहा है।

पुआल कृषि यंत्रवार अनुदान की राशि

कृषि यंत्र का नाम       राशि

स्ट्रा बेलर  - 2.25 से 2.50 लाख रुपये

सुपर सीडर  -  1.42 से 1. 68 लाख तक

स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम (एसएमएस)  82 से  88 हजार तक

स्ट्रॉरीपर- 1.80 से 2.20 लाख रुपये

रीपर-कम बाइंडर- 2 से 2.30 लाख

जीरो टिल सीड कम फर्टीलाइजर डिल 35 से 44 हजार

हैप्पी सीडर 1.10 से 1.20 लाख रुपये

रोटरी मल्चर- 1.10 से 1.20 लाख रुपये

बिहार कृषि विवि, सबौर, भागलपुर के प्रभारी कुलपति डॉ आरके सोहाने ने बताया कि पुआल को रोजगार से जोडऩे के लिए कृषि विवि की ओर से कई स्तर पर नवाचार किए जा रहे हैं। जहानाबाद में स्वयं सहायता समूह के जरिए और बक्सर जिले के डुमरांव स्टार्टअप जैसे दो पहल में सफलता मिली है। आगे और प्रयास जारी है। पुआल पर मशरूम की खेती भी काफी लाभकारी साबित हो रही है।

chat bot
आपका साथी