देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद का जहां गुजरा था आखिरी वक्त, पटना में बनेगा शानदार संग्रहालय
Dr. Rajendra Prasad Birth Anniversary पटना के बिहार विद्यापीठ परिसर में गुजरे थे देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू के आखिरी दिन अब यहां बनेगा खास भवन अगले वर्ष से भवन का निर्माण कार्य आरंभ हो जाएगा जो लगभग एक वर्ष में पूरा कर लिया जाएगा ----------
पटना, जागरण संवाददाता। बिहार विद्यापीठ परिसर में बने देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद का कमरा आज भी यहां आने वाले लोगों को आकर्षित करता है। भवन में रखी सामग्रियां और भवन की दीवार पर लगी 'हारिए न हिम्मत बिसारिये न हरि का नाम, जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए' ये पंक्तियां राजेंद्र बाबू की सादगी और उनके पूरे व्यक्तित्व को दर्शाती है। सादगी के प्रतिमूर्ति व देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद का बिहार विद्यापीठ से गहरा लगाव रहा। तीन दिसंबर 1884 को सिवान जिले के जिरादेई गांव में जन्मे राजेंद्र बाबू का बिहार विद्यापीठ से गहरा लगाव रहा। विद्यापीठ की स्थापना से लेकर राष्ट्रपति भवन तक का सफर उन्होंने इसी रास्ते से होकर तय किया था।
बिहार विद्यापीठ के अध्यक्ष व सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी विजय प्रकाश ने बताया कि राजेंद्र बाबू से जुड़ी स्मृतियों को संभाल कर रखने के लिए विद्यापीठ परिसर में नए संग्रहालय का निर्माण 3.50 करोड़ रुपये की लागत से होगा है। अगले वर्ष से भवन का निर्माण कार्य आरंभ हो जाएगा, जो लगभग एक वर्ष में तैयार होगा। भवन को संग्रहालय के रूप में तैयार किया जाएगा जिसमें एक्जीविशन हाल, सभागार एवं स्टोर बनाए जाएंगे। संग्रहालय में राजेंद्र बाबू के जीवन से जुड़ी सारी सामग्री के साथ चित्रों की प्रदर्शनी लगी रहेगी। वहीं, परिसर में स्थापित पुराने भवन को भी रंग-रोगन करने के साथ खपरैल वाले मकान का भी कायाकल्प होगा। 3.50 करोड़ की लागत से बिहार विद्यापीठ में होगा निर्माण 28 फरवरी 1963 को राजेंद्र बाबू ने विद्यापीठ में ली थी अंतिम सांस 14 मई 1962 को राष्ट्रपति भवन से लौट आए थे विद्यापीठ
विद्यापीठ में राजेंद्र बाबू ने ली थी अंतिम सांस
राष्ट्रपति पद से अवकाश प्राप्त करने के बाद डा. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति भवन से 14 मई 1962 को पटना आए। बिहार विद्यापीठ में बने भवन में 28 फरवरी 1963 की रात 10 बजकर 13 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली। संग्रहालय में रखे राजेंद्र बाबू के जीवन से जुड़ी सामग्री को देखने के लिए वर्ष में पांच से छह सौ लोग अलग-अलग जगहों से आते हैं। संग्रहालय में राजेंद्र बाबू को मिलने वाले भारत रत्न मेडल, एमएल की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के पश्चात 1916 में मिलने वाली डिग्री समेत कई वस्तुएं धरोहर के रूप में मौजूद हैं।