दर्द को पीछे छोड़ बनाई जीवन की नई राह

पटना के वीमेन टिफिन सर्विस समूह में वे महिलाएं शामिल हैं जो खेलने-पढ़ने की उम्र में ब्याह दी गई।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 11 Jul 2020 01:45 AM (IST) Updated:Sat, 11 Jul 2020 06:09 AM (IST)
दर्द को पीछे छोड़ बनाई जीवन की नई राह
दर्द को पीछे छोड़ बनाई जीवन की नई राह

अंकिता भारद्वाज, पटना : पटना के वीमेन टिफिन सर्विस समूह में वे महिलाएं शामिल हैं, जो खेलने-पढ़ने की उम्र में ब्याह दी गईं और ससुराल की दहलीज लाघते ही सामना हुआ लात-घूंसों से।आज न सिर्फ आत्मनिर्भर हैं, बल्कि औरों को भी प्रेरणा दे रहीं हैं। कोरोना काल में टिफिन सेवा प्रभावित हुई तो अब सिलाई-कढ़ाई, सैनिटरी पैड की पैकिंग का काम भी चल रहा है।

पटना, बिहार की माला देवी की शादी महज दस साल में कर दी गई। पारिवारिक विवाद में जेल की सलाखों के पीछे भी जाना पड़ा। बाहर निकलीं तो सारे दरवाजे बंद। सोनी कुमारी का ब्याह तब कर दिया गया, जब महज चौदह साल की थीं। इसकी तो कल्पना भी नहीं की थी कि पति शरीर पर खौलता हुआ तेल डाल देगा। विरोध के स्वर तेज हुए तो ससुराल से बाहर निकाल दिया गया। मायके में भी शरण नहीं मिली। माला आज टिफिन सर्विस से जुड़कर आजीविका चला रहीं हैं तो सोनी कपड़ों के साथ अपनी फटी किस्मत को भी सिल रहीं हैं।

जिला प्रशासन और महिला हेल्पलाइन के सहयोग से चल रहे समूह में इन्हें पनाह मिली और उनके लिए यह जिंदगी की दूसरी पारी है। इस समूह की समन्वयक प्रज्ञा भारती बताती हैं कि वीमेन टिफिन सर्विस समूह में 40 महिलाएं हैं। यह 2016 से चल रहा है। इनमें वे महिलाएं हैं, जिन्होंने काफी प्रताड़ना झेली है, लेकिन अब आर्थिक रूप से स्वावलंबी होकर आत्मविश्वास के साथ जी रहीं।

इन महिलाओं के साथ जो कुछ भी हुआ, वह समाज के लिए सवाल ही नहीं, चिंतन और मंथन का भी विषय है। शिल्पी कुमारी बताती हैं कि उनकी शादी 2011 में हुई थी। छह-सात महीने ठीक-ठाक रहा, इसके बाद इतनी प्रताड़ना झेली कि दो माह की नवजात बेटी के साथ ससुराल छोड़ दी। आज वे समूह से जुड़कर पैसे भी कमा रहीं और बेटी को भी पढ़ा रही हैं।

कंचन देवी की कहानी भी कुछ ऐसा ही रही। 2005 में शादी हुई। पति सारी कमाई शराब में फूंक देता था। बच्चों की जिंदगी तबाह हो रही थी। यही शराब 2015 में पति की मौत का कारण बन गई। वे भी समूह से जुड़ीं और बच्चों का खुद लालन-पालन कर रहीं।

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कोट :

हमारे यहा हर दिन घरेलू हिंसा के एक-दो मामले आते हैं। कई बार तो प्रताड़ित

महिलाएं अपने लिए आवाज भी नहीं उठा पातीं। ये महिलाएं प्रेरणा हैं। महिलाएं

आत्मनिर्भर रहेंगी तो किसी को भी उनके उत्पीड़न से पहले सोचना पड़ेगा।

- दिलमणि मिश्रा, अध्यक्ष महिला आयोग, बिहार

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