Positive News: पटना की स्‍लम बस्तियों में उम्‍मीद की किरण बनीं वंदना, असहाय बच्‍चों को दे रहीं ज्ञान का उजियारा

Positive News पटना की वंदना शहर की स्‍लम बस्तियों में बच्‍चों को ज्ञान का उजियारा दे रहीं हैं। उनकी कोशिशों की बदौलत इस साल वहां के 10 बच्‍चे मैट्रिक की परीक्षा देने जा रहे हैं। उन्‍होंने अब तक चार सौ से अधिक बच्‍चों की जिंदगी संवारी है।

By Edited By: Publish:Thu, 22 Oct 2020 06:00 AM (IST) Updated:Thu, 22 Oct 2020 05:38 PM (IST)
Positive News: पटना की स्‍लम बस्तियों में उम्‍मीद की किरण बनीं वंदना, असहाय बच्‍चों को दे रहीं ज्ञान का उजियारा
पटना की स्‍लम बस्तियों में उम्‍मीद की किरण बनीं वंदना।

पटना, जेएनएन। अपनी जिंदगी में खुशियां भरना हर किसी का सपना होता है। पटना के कंकड़बाग कॉलोनी मोड़ की रहने वाली वंदना झा उन कुछेक लोगों में हैं, जिन्होंने स्लम के बच्चों का जीवन संवारने को ही अपना मिशन बना लिया है। वे पिछले पांच सालों से शहर की चकाचौंध से दूर स्लम में रहने वाले बच्चों की आंखों में उम्मीद की किरण जगा रही हैं। उन्‍होंने अब तक चार सौ से अधिक बच्‍चों का जीवन संवारा है। सिलसिला जारी है।

वंदना पटना के कंकड़बाग, भूतनाथ, मंदिरी की स्लम बस्तियों में जाकर अभिभावकों को शिक्षा के प्रति जागरूक कर रही हैं। उन्हें शिक्षा के महत्व को बता रही हैं। बच्चों को उन्हीं के इलाके में काम करने वाली संस्था से जोड़ देती हैं, ताकि वे पढ़-लिख सकें। उनके प्रयास से स्लम के 10 बच्चों ने इस बार मैट्रिक बोर्ड परीक्षा के लिए फॉर्म भरा है।

अब तक 400 बच्चों का जीवन संवारा

वंदना अबतक स्लम के 400 बच्चों को उनके इलाके की समाजसेवी संस्था से जोड़ चुकी हैं। इसमें कंकड़बाग की संस्था समृद्धि, भूतनाथ रोड की उड़ान क्लासेज और दक्षिणी मंदिरी की बी फॉर नेशन जैसी संस्थाएं शामिल हैं, जहां बच्चे मुफ्त में पढ़ रहे हैं। वंदना के प्रयासों से स्कूल छोड़ चुके 150 बच्चे फिर से स्कूल जाना शुरू कर चुके हैं।

भाई के अधूरे सपने को कर रहीं पूरा

वंदना के भाई की मौत वर्ष 2015 में हो गई थी। उनके भाई मनीष कुमार चौधरी लोगों को मुफ्त में एंबुलेंस दिलवाने में खूब मदद करते थे। वे एक अस्पताल में फार्मासिस्ट थे। उनके इस प्रयास ने कई लोगों की जिंदगियां बचाई। भाई की मौत के बाद वंदना अब उनके अधूरे सपने को पूरा कर रही हैं। जरूरतमंदों की मदद करना उनका मकसद बन चुका है।

पति और परिवार का पूरा सपोर्ट

वंदना कहती हैं कि उन्हें इस काम के लिए कहीं से कोई फंड नहीं मिलता है। उनके पति सरकारी नौकरी में हैं। स्लम के बच्चों के लिए किताबें, स्टेशनरी और जरूरत के सामान खरीदने के लिए पति ही पैसे देते हैं। परिवार के अन्य सदस्यों का भी सहयोग मिलता है।

रोज छह घंटे करतीं समाजसेवा

वंदना सुबह सात बजे से 10 बजे तक कंकड़बाग स्लम के बच्चों के परिवारों से मिलकर उनकी समस्या सुनती हैं। जहां तक संभव होता है, उनकी मदद करती हैं। इसके बाद दोपहर डेढ़ बजे से दो घंटे मंदिरी स्लम के बच्चों के परिवारों से मिलती हैं। दोपहर 3:30 बजे से शाम के छह बजे तक बी फॉर नेशन के मंदिरी केंद्र पर बच्चों को पढ़ाती भी हैं।

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