बिहार में फिर से लेना होगा टीका, वैक्सीन ट्रायल में 50 फीसद को मिला था प्लेसिबो; अब किया जा रहा फोन

पटना एम्स के तीसरे चरण में करीब 1612 लोगों को ट्रायल वैक्सीन दी गई थी। इसमें 50 फीसद यानी करीब 800 लोगों को प्लेसिबो दिया गया था जिन्हें अब बारी-बारी से कॉल कर बुलाया जा रहा है। जानें क्या है मामला।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Mon, 10 May 2021 06:09 AM (IST) Updated:Mon, 10 May 2021 06:09 AM (IST)
बिहार में फिर से लेना होगा टीका, वैक्सीन ट्रायल में 50 फीसद को मिला था प्लेसिबो; अब किया जा रहा फोन
बिहार में कुछ लोगों को फिर से वैक्सीन लगाने के लिए फोन किया जा रहा है। प्रतीकात्मक तस्वीर।

राज्य ब्यूरो, पटना: राजधानी पटना के न्यू पुनाईचक में रहने वाले नीलांशु रंजन ने दिसंबर में पटना एम्स जाकर कोरोना की ट्रायल वैक्सीन ली थी। जनवरी में ट्रायल वैक्सीन का दूसरा डोज भी लगवाया। अब मई में उन्हें पटना एम्स से फोन कर बताया गया कि ट्रायल के दौरान आपको वैक्सीन की जगह प्लेसिबो (एक तरह का सामान्य द्रव्य) दिया गया था। उनकी पत्नी को भी प्लेसिबो ही मिला था। ऐसे में उन्हें दोबारा आकर वैक्सीन लेनी होगी। नीलांशु पहले तो अचरज में पड़े पर पूरी प्रक्रिया जानने के बाद उन्होंने बीते दिनों पटना एम्स जाकर फिर से वैक्सीन की डोज ली। अब दूसरी डोज चार जून को दी जाएगी। 

दोबारा वैक्सीन लेने की जरूरत

यह मामला सिर्फ नीलांशु रंजन का नहीं है। पटना एम्स के तीसरे चरण में करीब 1612 लोगों को ट्रायल वैक्सीन दी गई थी। इसमें 50 फीसद यानी करीब 800 लोगों को प्लेसिबो दिया गया था जिन्हें अब बारी-बारी से कॉल कर बुलाया जा रहा है। बाकी 50 फीसद लोग जिन्हें ट्रायल के दौरान असली वैक्सीन दी गई थी, उन्हें अब दोबारा इसे लेने की जरूरत नहीं है। 
 
डॉक्टरों को नहीं होता है पता, किसे मिली वैक्सीन और किसे प्लेसिबो


पटना एम्स के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. सीएम सिंह ने बताया कि वैक्सीन के ट्रायल की यह सामान्य प्रक्रिया है। पटना एम्स में 'कोवैक्सीन' के ट्रायल के दौरान भी यही हुआ था। इसमें आधे लोगों को वैक्सीन दी गई जबकि आधे लोगों को प्लेसिबो। प्लेसिबो को इस तरह समझिए कि यह सामान्य द्रव्य होता है, जिसका न कोई फायदा होता है न नुकसान। ट्रायल में यही देखा जाता है कि जिनको वैक्सीन दी गई उनमें प्लेसिबो वालों की तुलना में क्या असर हुआ है। इसी के आधार पर तय होता है कि वैक्सीन असरदार है या नहीं। ट्रायल के दौरान यह जानकारी न तो वैक्सीन लेने वालों को होती है और न ही डॉक्टरों को, कि किसे वैक्सीन दी गई है और किसे प्लेसिबो। इसकी मॉनीटरिंग केंद्रीय स्तर पर होती है। ट्रायल के दौरान वैक्सीन लेने आने वाले लोगों की जानकारी कंप्यूटर में फीड करने के बाद बताया जाता है कि इन्हें ए या बी वैक्सीन लगाएं। ट्रायल के दौरान दिए जाने वाले वैक्सीन और प्लेसिबो के रंग-रूप, आकार में कोई अंतर नहीं होता। ट्रायल सफल होने के बाद सेंट्रल डेटा प्रोसेसिंग यूनिट इसे डी-कोड करता है, इसके बाद जानकारी मिल पाती है कि किन-किन लोगों को वैक्सीन की डोज दी गई थी और किन्हें प्लेसिबो। जिनको भी प्लेसिबो मिला है, उन्हें कॉल कर इसकी जानकारी दी जा रही और फिर से वैक्सीन लेने का ऑफर किया जा रहा है।
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