परिवहन घोटाला: जांच कमेटी पर उठने लगी उंगलियां, 10 सप्ताह बाद भी नहीं आई जांच रिपोर्ट

एक ओर लॉकडाउन में सारे दफ्तर बंद कर दिए गए थे वहीं दूसरी ओर जिला परिवहन कार्यालय में उसी दौरान खेला जा रहा था चोरी के वाहनों का फर्जी तरीके से निबंधन कराने का खेल। दस सप्ताह बीत चुके हैं परंतु आज तक जांच रिपोर्ट नहीं सौंपा गया है।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Wed, 02 Dec 2020 02:24 PM (IST) Updated:Wed, 02 Dec 2020 02:24 PM (IST)
परिवहन घोटाला: जांच कमेटी पर उठने लगी उंगलियां, 10 सप्ताह बाद भी नहीं आई जांच रिपोर्ट
परिवहन घोटाले की जांच में भी बड़ा खेल। जागरण।

[चन्द्रशेखर] पटना। एक ओर लॉकडाउन में सारे दफ्तर बंद कर दिए गए थे, वहीं दूसरी ओर जिला परिवहन कार्यालय में उसी दौरान खेला जा रहा था चोरी के वाहनों का फर्जी तरीके से निबंधन कराने का खेल। अकेले कोरोना काल में जिला परिवहन कार्यालय के अधिकारियों एवं परिवहनकर्मियों की मिली भगत से 7000 से अधिक चोरी की वाहनों का फर्जी तरीके से निबंधन कर दिया गया। जिला परिवहन अधिकारी द्वारा मामले का उजागर करते हुए परिवहन आयुक्त को पत्र भेजकर मामले में कार्रवाई की मांग की गई। कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति करते  हुए  पांच सदस्यीय जांच कमेटी बना एक सप्ताह के अंदर पूरे मामले की जांच रिपोर्ट देने को कहा गया। एक  सप्ताह तो दूर दस सप्ताह बीत चुके हैं परंतु आज तक जांच रिपोर्ट नहीं सौंपा गया है।

कोरोना काल में रजिस्‍टर्ड हो गईं चोरी की गाडि़यां

मालूम हो कि जिला परिवहन कार्यालय में अप्रैल से लेकर अगस्त तक के चार माह में पुराने खाली पड़े नंबरों पर चोरी की लक्जरी गाड़ियों का निबंधन कर दिया गया था। पूर्व के अधिकारियों की लापरवाही के कारण बीआर-01पीजी एवं बीआर -01डीएन सीरीज में 3000 के आसपास नंबरों को खाली छोड़ दिया गया था। इसकी जानकारी तत्कालीन अधिकारियों एवं क्लर्क को था। अधिकारियों व क्लर्क की मिलीभगत से हजारों  चोरी के वाहनों को निबंधित कर दिया गया। पूरे देश भर से चुराए गए लक्जरी  वाहनों पटना निबंधन कार्यालय  से निबंधन कर दिया गया। एक-एक वाहन से दो से ढाई लाख रुपये लिए गए थे। इतना ही नहीं सैकड़ों पुराने दो पहिया व चार पहिया वाहनों के निबंधन को निरस्त कर उस पर चोरी की लक्जरी  वाहनों को निबंधित  कर दिया गया था। ऐसे सैकड़ों वाहन मालिकों ने इसकी शिकायत जिला निबंधन कार्यालय में दे दी है।

एनआइसी के मामले में अब तक नहीं हुई कार्रवाई

एनआईसी की तकनीकी पेंच फंसा ऐसे मामलों में आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। नतीजा यह है कि वास्तविक  वाहन मालिक बगैर निबंधन के घूम रहे हैं और चोरी की गाड़ी के मालिक निबंधित वाहनों से घूम रहे हैं। इनमें से सैकड़ों ऐसे भी वाहन थे जिसे निजी फिनांसर अथवा बैंक से लोन लेकर खरीदा गया था। वाहन खरीदने वाले फर्जी नाम से कागजात जमा कर फिनांसर से वाहनों की खरीद कर ले रहे थे। बाद में किसी थाने में चोरी का मामला दर्ज कर उसी वाहन को दूसरे नाम से यहां निबंधित करा लेते थे। इस तरह के 78 वाहनों की शिकायत विभिन्न फिनांसरों अथवा बैंकों द्वारा जिला परिवहन  कार्यालय को दिया  गया है। सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि इन वाहनों को 2018, 2019 अथवा 2020 में फिनांसर से खरीदा गया था और इनका निबंधन 2014, 2015, 2016 के खाली पड़े नंबरों पर निबंधित कर दिया गया। इस तरह से 7000 से अधिक ऐसे वाहनों का फर्जी तरीके से निबंधन कर दिया गया है। इनमें से नब्बे फीसद वाहन दूसरे शहरों में चलाए जा रहे हैं। जब परिवहन अधिकारी से इस संबंध में बात की गई तब बताया गया कि  जांच कर रहे सारे सदस्य विधानसभा चुनाव में व्यस्त थे। शीघ्र ही जांच रिपोर्ट मिल जाएगा।

आरोपी ही कर रहे हैं अपने उपर लगे आरोपों की जांच

परिवहन विशेषज्ञ व जनता दल यू के वरिष्ठ नेता सुबोध कुमार ने इस पांच सदस्यीय जांच कमेटी पर  ही उंगली  उठाते हुए कहा कि जो इस मामले में आरोपी हैं वही अपने ही उपर लगे आरोपों की जांच कर रहे हैं। ऐसे जांच रिपोर्ट का नतीजा पहले से ही सारे लोगों को पता है। उन्होंने कहा कि जब तक इस घोटाले  में वाहनों के निबंधन को बनाई गई टीम के सारे सदस्य शामिल नहीं होंगे घोटाला संभव नहीं है। कंप्यूटर का कोड डीटीओ के पास  ही होता है। वाहनों के निबंधन के कागजात पर सारे सदस्यों का हस्ताक्षर होता है। ओटीपी नंबर के बगैर  निबंधन संभव नहीं, जो अधिकारी के मोबाइल पर ही आता है।

chat bot
आपका साथी