बिहारः कोरोना वायरस की तीसरी लहर को लेकर सिर पर खतरा, दिमाग में तिकड़म

विशेषज्ञों की मानें तो ये नए संक्रमित तीसरी लहर का कारण बन सकते हैं। वहीं राजधानी के बड़े अस्पताल के दो साहब इस खतरे से निपटने के बजाय आपसी खींचतान में लगे हैं। खतरे से निपटने के लिए टीम भावना कहीं नहीं दिख रही है।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Fri, 16 Jul 2021 05:01 PM (IST) Updated:Fri, 16 Jul 2021 05:01 PM (IST)
बिहारः कोरोना वायरस की तीसरी लहर को लेकर सिर पर खतरा, दिमाग में तिकड़म
कोरोना की तीसरी लहर को लेकर तरह-तरह की चर्चा चल निकली है। प्रतीकात्मक तस्वीर।

पवन कुमार मिश्र, पटना। कोरोना की दूसरी लहर जल्द ही दोबारा परवान चढ़ सकती है। कई राज्यों में शिकंजा कसने के साथ प्रदेश में भी एक पखवारे से औसतन सौ-सवा सौ नए संक्रमित मिल रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो ये नए संक्रमित तीसरी लहर का कारण बन सकते हैं। वहीं, राजधानी के बड़े अस्पताल के दो साहब इस खतरे से निपटने के बजाय आपसी खींचतान में लगे हैं। खतरे से निपटने के लिए टीम भावना कहीं नहीं दिख रही है। आक्सीजन, जरूरी दवाओं के भंडारण और शिशु रोग विभाग को दुरुस्त करने के कार्य में तेजी के बजाय अस्पताल दो धड़ों में बंटा है। हद तो यह कि एक साहब के अक्खड़पन से उनकी टीम छिन्न-भिन्न है। दूर बैठे हाकिम की नजर में व्यवस्था दुरुस्त है, बस साहब लोग इसी से खुश हैं। पूरे अस्पताल में ऐसा कोई नहीं है, जिसे रोगी अपनी व्यथा सुना सकें पर इसकी चिंता कौन करे? 

चुप्पी ओढ़ अब काट रहे मलाई 

अस्पताल में मशीन और उपकरण होंगे तो जांच और आपरेशन करने पड़ेंगे। दवाएं होंगी तो रोगियों में बांटनी भी पड़ेंगी। अगर ये सब नहीं हो तो आराम ही आराम। गरीबों का अस्पताल है इसलिए शिकायत और कार्रवाई का भी कोई खास खतरा नहीं है। ऐसे में इलाज हो या नहीं हो, हर माह भारी-भरकम वेतन समय पर खाते में पहुंच ही जाएगा। कोढ़ में खाज यह कि विभाग में जांच या सर्जरी क्यों नहीं हो रही है आदि पर जवाब नहीं देने का पुख्ता बहाना मिल गया। हर सवाल का एक ही जवाब, साहब ने बाहरी लोगों को विभाग में क्या चल रहा है, जानकारी देने से मना किया है। साहब से पूछो अल्ट्रासाउंड क्यों नहीं हो रहा, सर्जरी के उपकरण क्यों बंद हैं तो बड़ा मासूम सा जवाब मिलता है, हम काम करें या सवालों के जवाब दें। बिगड़ी व्यवस्था को ढर्रे पर लाने में कुछ समय तो लगेगा ही। 

जेब में भाड़ा, एंबुलेंस से ढुलाई 

एंबुलेंस यानी आतुर वाहन की चिकित्सा जगत में वही अहमियत है, जो शरीर में खून की। गंभीर रोगियों को समय पर सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल पहुंचा उनकी जान बचाने के लिए ही इसे हूटर जैसी विशेष सुविधा दी गई है। इसके हूटर की विशिष्ट आवाज सुनते ही अडिय़ल लोग भी रास्ता दे देते हैं। कोरोना काल में जब अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे थे तो एंबुलेंस में ही कई रोगियों का इलाज हुआ। इसकी महत्ता को देखते हुए पुरानी एंबुलेंस दुरुस्त कराने के साथ सरकार ने प्रखंडों तक में उपलब्धता सुनिश्चित कराई है। वाहन की संख्या बढऩे के बाद भी रोगियों को समय पर एंबुलेंस नहीं मिलती। वहीं, चिकित्सा प्रभारी भाड़े का पैसा जेब में डालने के लिए इनमें चूना-दवाओं आदि की ढुलाई करा रहे हैं। बार-बार लिखित और मौखिक चेतावनी पर जब सुधार नहीं हुआ तो अधिकारियों ने जिम्मेदार लोगों के वेतन में कटौती का फैसला लिया है। 

चहेतों की विदाई ने बढ़ाई मगजमारी 

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर की रोकथाम के लिए साहब को मनचाहे अधिकारियों को मनचाही जिम्मेदारी सौंपने का अधिकार मिला था। सब कुछ ठीक चल रहा था। अब कोरोना कम होते ही सभी प्रतिनियुक्तियां समाप्त कर दी गईं। कार्यालय में रहकर साहब की तरह उनके अधिकारोंं का इस्तेमाल करने वाले कर्मचारियों का वापसी से दुखी होना लाजमी है। हालांकि, इससे साहब भी कम दुखी नहीं हैं। बोलने मात्र से जो काम हो जाते थे, उन्हें अब खुद लगकर पूरा कराना होगा। यह तो मात्र समस्या है। असल दर्द इसका है कि बहुत सी बातें जो वे खुद नहीं बोल पाते थे, अपने इन विश्वासी कर्मियों से आराम से करा लेते थे। विश्वासी प्रतिनियुक्त पदाधिकारियों के जाने के बाद अब वे कैसे इन हालातों को संभालेंगे, इसके लिए मगजमारी शुरू हो गई है। वहीं, कुछ कर्मचारियों को अब भी यह विश्वास है कि साहब उन्हें कतई वापस नहीं जाने देंगे।

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