सार्वजनिक स्थलों पर नजर आ रही लापरवाह भीड़ न पड़ जाए भारी, इन पांच नियमों का करें पालन

पटना एम्स के एसोसिएट प्रोफेसर तथा कोरोना नोडल आफिसर डा. संजीव कुमार ने बताया कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का कहर कम होने के बाद पर्यटन स्थलों बाजारों सार्वजनिक स्थलों पर नजर आ रही लापरवाह भीड़ भावी आफत की तस्वीर खींच रही है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 21 Jul 2021 12:59 PM (IST) Updated:Wed, 21 Jul 2021 01:16 PM (IST)
सार्वजनिक स्थलों पर नजर आ रही लापरवाह भीड़ न पड़ जाए भारी, इन पांच नियमों का करें पालन
आइएमए ने भी चेताया है कि अगर ऐसे हाल रहे तो कोरोना की तीसरी लहर आने की काफी आशंका है।

पटना, पवन कुमार मिश्र। भारतीय चिकित्सक संघ (आइएमए) ने भी चेताया है कि अगर ऐसे हाल रहे तो कोरोना की तीसरी लहर आने की काफी आशंका है। बेहतर होगा कि जिस स्थिति से बीते दौर में हम गुजरे वह वक्त हमारी अपनी लापरवाही से दोहराया न जाए...सभी जानते हैं कि कोरोना या अन्य वायरस को जिंदा रहने और अपनी संख्या बढ़ाने के लिए नई-नई जीवित कोशिकाओं की जरूरत होती है।

यदि उसे नई जीवित कोशिकाएं ही न मिलें तो यह स्वत: खत्म हो सकता है। वायरस की दो कमजोरियों का लाभ उठाकर ही इस महामारी से छुटकारा पाया जा सकता है। पहली, यह सिर्फ मनुष्य में ही खुद को जीवित रख सकता है, जो अपनी समझदारी से इसकी चेन को तोड़ सकते हैं। दूसरी, इनका आकार मध्यम है और यह सिर्फ ड्रापलेट्स के जरिए ही संक्रमित से स्वस्थ व्यक्ति तक पहुंच सकते हैं। ऐसे में एक-दूसरे से छह फीट की दूरी, सही तरीके से मास्क पहनकर और समय-समय पर साबुन-पानी से हाथ धोकर या सैनिटाइजर का इस्तेमाल करके कोरोना महामारी से निजात पाई जा सकती है।

तो नहीं होगा लाकडाउन: लाकडाउन यानी जीवन के लिए जरूरी तमाम गतिविधियों को कुछ वक्त के लिए रोक देना। हालांकि यह कोरोना का उपचार नहीं है। फिर भी जब आमजन कोरोना महामारी के खतरे को जानते-समझते हुए भी उसके अनुरूप व्यवहार नहीं करते तो सरकार-प्रशासन को मजबूरन सख्त कदम उठाने पड़ते हैं। यदि आमजन कोरोना के खतरे को समझकर उससे बचाव के अनुरूप व्यवहार को अपनी आदत बना लें तो बिना लाकडाउन लगाए ही कोरोना को नियंत्रित व खत्म किया जा सकता है। वैक्सीन के प्रति हर प्रकार की भ्रांति को नजरअंदाज कर समय पर इसकी डोज लें तो कोई कारण नहीं है कि पार्क, बस, ट्रेन, मंदिर, स्कूल आदि बंद हों।

बने कोरोना संस्कृति: कोरोना संस्कृति से अर्थ है कि बीते करीब डेढ़ साल में हर किसी में साफ-सफाई, पौष्टिक भोजन और मास्क पहनने, शारीरिक दूरी बरतने को लेकर जो आदतें विकसित हुई हैं, उनका लगातार पालन न सिर्फ कोरोना, बल्कि अन्य संक्रमणों से भी रक्षा कर सकता है। इसके प्रति सरकार को न केवल सख्त रुख अपनाना चाहिए, बल्कि उस तरह से सुविधाएं भी मुहैया करानी चाहिए। एक बार कोरोना संस्कृति पूरी तरह विकसित हो गई तो सरकार को न तो लाकडाउन या कोरोना कफ्र्यू लगाने की जरूरत पड़ेगी और न ही कोरोना संक्रमण का इतना खतरा रहेगा। कोरोना की दूसरी लहर के खतरनाक परिणामों के बाद भी जो लोग सबक नहीं सीख रहे, उन्हें सख्त संदेश देकर इसका अनुपालन कराया जाना चाहिए।

सिंगल डोज यानी सीमित सुरक्षा: कोरोना संक्रमण के खिलाफ वैक्सीन कोई भी हो, सही समय पर दोनों डोज लेने से ही कोरोना के विरुद्ध पर्याप्त मात्रा में एंटीबाडी विकसित होती हैं। तय समयावधि के बाद पहली डोज से बनी एंटीबाडी भी खत्म हो जाती है और संक्रमण का खतरा एक भी डोज नहीं लेने के बराबर हो जाता है। यही नहीं पहली डोज के बाद निर्धारित समय पर दूसरी डोज न लेने पर अपेक्षाकृत कुछ कम एंटीबाडी विकसित होती हैं। इससे पूर्ण सुरक्षा नहीं मिल पाती है। इसलिए बेहतर होगा कि जल्द से जल्द वैक्सीन की पहली डोज लें और पूरी सावधानी बरतते हुए जैसे ही दूसरी डोज लेने का वक्त पूरा हो, तुरंत ही वैक्सीनेशन करवाएं।

पांच नियमों का पालन जरूरी

संक्रमित की जल्द पहचान के लिए अधिक से अधिक लोगों की कोरोना जांच जारी रखी जाए संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए लोगों की पहचान कर उनकी जांच कराई जाए रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाने के सभी प्रयास किए जाएं। खान-पान की सेहतमंद आदतों का पालन हो गंभीर परिणामों से बचाव के लिए जल्द से जल्द पात्र लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज दे दी जाएं कोरोना से बचाव के नियमों का अनुपालन सुनिश्चित कराया जाए। बेवजह बाहर न जाएं और बाहर जाना ही हो तो मास्क व शारीरिक दूरी का पालन अवश्य करें

प्रशासन रखे ये तैयारियां

संक्रमितों को इलाज के लिए दूरदराज न जाना पड़े, घर के पास नजदीकी अस्पताल में हो व्यवस्था। गंभीर रोगियों को ही बड़े अस्पतालों में भेजा जाए हर जिले में आवश्यक क्षमता के अनुसार आक्सीजन जनरेशन प्लांट की स्थापना की जाए, क्योंकि इससे मचा हाहाकार पूरी व्यवस्था को हिला देता है वयस्क व बच्चों के लिए आइसीयू व वेंटिलेटर बेड की संख्या बढ़ाने के साथ ही पर्याप्त दवाएं, डाक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ की उपलब्धता सुनिश्चित कर ली जाए शहर हों या गांव, हर कोरोना संक्रमित को एक जैसा उपचार मिल सके, इसके लिए शिक्षण-प्रशिक्षण कार्यक्रमों को तेज किया जाए आपदा प्रबंधन की तैयारी कर ली जाए ताकि अचानक संक्रमण बढ़ने पर अफरा तफरी का माहौल न बनने पाए टीकाकरण व बचाव उपायों के प्रति लोगों को जागरूक करने के साथ हर हालात से निपटने के लिए अस्पतालों को तैयार रखा जाए

टीकाकरण के बाद भी रहें सतर्क: कोरोना वैक्सीन की दो डोज लेने वाले संक्रमण से पूरी तरह सुरक्षित हो गए, ऐसा मानना सही नहीं है। अध्ययनों के अनुसार, दो डोज लेने के बावजूद 10 फीसद लोग न केवल खुद संक्रमित हो सकते हैं, बल्कि दूसरों को भी बीमार कर सकते हैं। यह बात अलग है कि कोरोना संक्रमित हुए इन लोगों में से तीन फीसद में ही गंभीर लक्षण होते हैं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ती है। वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद संक्रमित होने वालों में से महज 0.4 फीसद की ही मृत्यु होने की आशंका होती है। ऐसे में यदि वैक्सीन की दोनों डोज लेने वाले कोरोना संस्कृति नहीं अपनाएंगे तो भी कोरोना की चेन नहीं टूटेगी और संक्रमण का खतरा हमेशा बना रहेगा। 18 वर्ष से कम उम्र के जिन लोगों को अभी वैक्सीन की सुरक्षा नहीं मिल पाई है, वे भी आपकी लापरवाही के गंभीर परिणाम भुगत सकते हैं।

न टूटे नाजुक कड़ी: तमाम सुरक्षा के बावजूद हमारे समाज की सबसे नाजुक कड़ी हैं बच्चे, बीमार और बुजुर्ग। इनके प्रति अतिरिक्त सावधानी बरतें। बच्चे, बीमार और बुजुर्ग घर से बाहर कम ही निकलते हैं। ऐसे में उन्हें कोरोना संक्रमण का खतरा बाहर जाने वाले स्वजन से ही होता है। बेहतर होगा बाहर से आने वाले सदस्य स्नान करने व कपड़े बदलने के बाद ही इनके पास जाएं। इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए पौष्टिक आहार दें। बच्चों को भी बचाव उपायों के प्रति जागरूक करें। शेष वयस्क, बीमार व बुजुर्गों को चिकित्सक की सलाह के पश्चात वैक्सीन की दोनों डोज लगवाएं।

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