'अंधा कुआं' में दिखी स्त्री के दर्द की कहानी

हमारे समाज का यह कड़वा सच है कि स्त्री की कहानी दुखों से भरी पड़ी है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 27 Feb 2020 01:14 AM (IST) Updated:Thu, 27 Feb 2020 01:16 AM (IST)
'अंधा कुआं' में दिखी स्त्री के दर्द की कहानी
'अंधा कुआं' में दिखी स्त्री के दर्द की कहानी

पटना। हमारे समाज का यह कड़वा सच है कि स्त्री की कहानी दुखों से भरी पड़ी है। जन्म से लेकर मृत्यु तक उसे जिंदगी के हर मोड़ पर प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है। यही वजह है कि स्त्री के जीवन की किताब का हर पन्ना उसके संघर्ष, शोषण और प्रताड़ना की कहानी सुनाता है। वो इस प्रताड़ना से बचने की लाख कोशिश करती है, लेकिन बच नहीं पाती है। किस्मत उसे बार-बार उसी मोड़ पर लाकर खड़ी कर देती है, जहां उसे अंधेरा, दर्द, अकेलापन, खामोशी, तिरस्कार, प्रताड़ना झेलना पड़ता है। कुछ ऐसे ही दृश्य बुधवार की शाम कालिदास रंगालय के मंच पर देखने को मिले। मौका था बिहार आर्ट थियेटर की ओर से नाटक 'अंधा कुआं' के मंचन का। नाटक में स्त्री के दर्द, अंतर्वेदना और उसके मार्मिक जीवन की सच्चाई को बहुत ही खूबसूरत ढंग से प्रस्तुत किया है। नाटक में एक ऐसी ग्रामीण महिला सूका की कहानी है जो अपने पति से बहुत प्यार करती है, लेकिन उसे बदले में प्रताड़ना मिलती है। पति के अत्याचार से तंग आकर वह घर छोड़कर इंदर के साथ भाग जाती है, लेकिन पुलिस की सहायता से फिर उसे घर लौटना पड़ता है। उसका पति अपने अपमान का बदला लेने के लिए उसे और ज्यादा प्रताड़ित करने लगता है। सूका अपने अत्याचार का वर्णन करते हुए मिनकू काका से कहती है - 'इजलास से छूटकर इस घर में आये हुए डेढ़ महीने बीत गये, तब से आजतक एक दिन भी ऐसा नहीं हुआ होगा, जिस दिन मुझे मेरे पति ने ना मारा हो। जो साड़ी पहने इजलास से आयी थी वहीं आज तक मेरे तन पर सड़ रही है।' इन्हीं यातनाओं से तंग आकर सूका कुएं में आत्महत्या के लिए कूद जाती है। मगर किस्मत यहां भी उसका साथ नहीं देती है। वह जिस कुएं में कूदती है, उसमें पानी ही नहीं रहता है। इसके चलते वह बच जाती है। इंदर फिर दूसरी बार सूका को लेने आता है। लेकिन वह अपने पति भगौती के साथ रहने में ही नियति समझती है। सूका को परास्त करने के लिए भगौती एक सौतन ले आता है। भगौती की दूसरी पत्‍‌नी लच्छी भी अपनी प्रेमिका के साथ भाग जाती है। लच्छी को भगाने में इंदर की साजिश होगी यह सोचकर भगौती की इंदर के साथ हाथापाई हो जाती है। इसमें भगौती की टांग टूट जाती है। भगौती से इतनी यातनाएं सहने के बावजूद उसकी पत्‍‌नी सूका उसकी खूब सेवा करती है। इधर इंदर भगौती को मारकर फिर से सूका को प्राप्त करने आता है। अपाहिज पति को बचाने में सूका की मौत हो जाती है। तब जाकर भगौती की आंखें खुलती हैं कि वह सच में अंधा हो गया था। नाटक का निर्देशन उज्ज्वला गांगुली ने किया, जबकि नाट्यकार लक्ष्मी नारायण लाल थे।

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