जर्सी गाय का दूध पीकर खराब हो रही लोगों की मानसिकता, बिहार में बोले पुरी मठ के शंकराचार्य
भारतीय संस्कृति में गाय के दूध की क्या अहमियत है ये क्या किसी को बताने की जरूरत है। गाय को दूध भारत ही नहीं दुनिया भर के लोग अमृत मानते हैं। लेकिन शंकराचार्य ने दावा किया है कि गाय का दूध पीकर ही लोगों की मानसिकता खराब हो रही है।
पटना/बेगूसराय, जागरण टीम। भारतीय संस्कृति (Indian Culture) में गाय के दूध की (Cow's milk) क्या अहमियत है, ये क्या किसी को बताने की जरूरत है। गाय को दूध भारत ही नहीं दुनिया भर के लोग अमृत मानते हैं। लेकिन अब सनातनियों के बड़े संत शंकराचार्य ने दावा किया है कि गाय का दूध पीकर ही लोगों की मानसिकता खराब हो रही है। इसी का असर है कि लोगों का नैतिक स्तर गिर रहा है। यह बात पुरी के शंकराचार्य (Shankaracharya of Puri Math) ने बिहार (Bihar) के बेगूसराय (Begusarai) जिले में आयोजित एक धार्मिक आयोजन में कहीं।
देसी गायों को अपनाने पर दिया जोर
बेगूसराय के भरौल (Bharaul Village) गांव में आयोजित एक धर्मसभा (religious meeting) में गोवर्धन मठ पुरी के पीठाधीश्वर श्रीमद जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि मिथिला (Mithila in Bihar) की धरती पर देसी गायें (Desi cows) लुप्त होती जा रही हैं। जर्सी गाय का दूध लोगों का व्यवहार बदल रहा है। घरों में मां सीता की तस्वीर भी नहीं दिख रही है। लोगों तामसी प्रवृति बढ़ रही है। आज के राजनेता दिशाहीन हैं। राजनेता राजनीति की परिभाषा ही नहीं जानते हैं।
कहा- देश में केवल शंकराचार्य, बाकी सभी देशद्रोही
शंकराचार्य ने कहा कि देश में चार ही मठों के जगतगुरु शंकराचार्य हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त जो मठाधीश शंकराचार्य बनकर घूम रहे हैं, वे देशद्रोही हैं। कहा कि किसान अब कृषक नहीं रह गए हैं। उन्होंने बैलों की जगह ट्रैक्टर ले लिया है। धर्म सभा में श्रद्धालुओं के पूछे गए प्रश्नों का जवाब शालीनता से दिया।
देसी गाय और खेती में देसी पद्धति को अपनाने पर देते हैं जोर
पुरी के शंकराचार्य देसी गाय और खेती में देसी पद्धति अपनाने पर जोर देते हैं। वह हर साल गोपाष्टमी के मौके पर गोमाता के पूजन कार्यक्रम में शामिल होते हैं। उनका कहना है कि देसी पद्धति प्राकृतिक है। इसे अपनाकर ही समाज से बुराइयों का अंत किया जा सकता है।