मौसम के मिजाज पर निर्भर सारण के बच्चों की पढ़ाई, कारण जान रह जाएंगे हैरान; जान से रोज खिलवाड़

मढ़ौरा प्रखंड का खालिसपुर प्राथमिक विद्यालय आज भी सरकारी व्यवस्था की मार झेल रहा है। यहां बच्चों के लिए न तो क्लास रूम की व्यवस्था है और न ही बैठने की। स्कूल मूलभूत सुविधाओं से काफी दूर है। बच्चे पेड़ की छांव में शिक्षा ग्रहण करने हैं।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Mon, 04 Oct 2021 04:33 PM (IST) Updated:Mon, 04 Oct 2021 04:33 PM (IST)
मौसम के मिजाज पर निर्भर सारण के बच्चों की पढ़ाई, कारण जान रह जाएंगे हैरान; जान से रोज खिलवाड़
विशाल बरगद के पेड़ के नीचे पढ़ते बच्‍चे। जागरण।

बिपिन कुमार मिश्रा, मढ़ौरा (सारण)। आधुनिक युग में बच्चों को उच्च शिक्षा देने के लिये प्रोजेक्टर से पढ़ाई की व्यवस्था की जा रही है, तो कोरोना काल के समय में आनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था भी तेज हो रही है। लेकिन वर्तमान समय में एक ऐसा भी स्कूल है जहां के बच्चों की पढ़ाई मौसम के मिजाज पर निर्भर है। बारिश होते ही पढ़ाई ठप हो जाती है और बच्चे भागकर बचाव के लिए सीधे अपने घर पहुंचते हैं। करीब 7 वर्षों से स्कूल का भवन जर्जर होने के कारण प्राथमिक विद्यालय के बच्चे बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ने को मजबूर है।

मढ़ौरा प्रखंड का खालिसपुर प्राथमिक विद्यालय आज भी सरकारी व्यवस्था की मार झेल रहा है। यहां बच्चों के लिए न तो क्लास रूम की व्यवस्था है और न ही बैठने की। स्कूल मूलभूत सुविधाओं से काफी दूर है। बच्चे पेड़ की छांव में शिक्षा ग्रहण करने हैं। इसके बावजूद भी मासूम शिक्षा लेने के लिए हर दिन स्कूल आते हैं। करीब 7 वर्षों से यह स्कूल बदहाली के कगार पर है। खुले आसमान के नीचे लगभग 135 छात्र-छात्रा से अधिक बच्चे हर दिन पढऩे आते हैं,. लेकिन इन सात वर्षों में भवन निर्माण के लिये कोई भी पहल नही की गई है। प्राथमिक विद्यालय होने के नाते कक्षा एक से पांच तक की पढ़ाई होती है। कक्षा एक और दो के छोटे बच्चे बरगद के पुराने पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठते हैं। वहीं कक्षा- तीन, चार और पांच के विद्यार्थी घर से प्लास्टिक का बोरी लेकर आते हैं, जिसे बिछाकर खुले आसमान के नीचे बैठते हैं।

परेशानी तब होती है, जब बारिश होती है। बारिश होते ही बच्चे इधर-उधर भागते हुए स्कूल परिसर से सीधे घर पहुंचते हैं। स्कूल में प्रधानाध्यापक सत्येंद्र राय हैं और एक प्रतिनियोजित शिक्षिका बबीता देवी हैं, जो सभी बच्चों को एक साथ बैठाकर पढ़ाती हैं। इन दो शिक्षकों के भरोसे ही 135 से अधिक बच्चे हैं। कहने को तो इस विद्यालय के अपने पुराने भवन के साथ ही चमचमाता किचन भवन भी है। साथ ही स्कूल में बिजली की भी सुविधा है, लेकिन जब भवन ही जर्जर है तो बिजली के पंखे किस काम के।

प्रधानाध्यापक सत्येंद्र राय ने बताया कि करीब सात वर्षों से भवन जर्जर है। पूर्व के प्रधानाध्यापक द्वारा कई बार विभाग को लिखित आवेदन देकर जर्जर भवनों के बारे में अवगत कराया गया है, लेकिन अब तक कुछ भी निष्कर्ष नही निकला। मढौरा प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी मदन मोहन साह ने बताया कि समग्र शिक्षा विभाग को इसके लिये लिखा जायेगा और जल्द से जल्द भवन निर्माण का प्रयास किया जायेगा।

chat bot
आपका साथी