Bihar Politics: क्या वाकई असर डालेंगे RJD सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बोल!
Bihar Politics बिहार में बेरोजगारी महंगाई जैसे मुद्दे वाकई असरदार होंगे या जातिगत समीकरण ही प्रभाव डालेंगे। बस तीन दिन बाद सब सामने आ जाएगा कि बिहार पुराने र्ढे पर चलने वाला है या इससे दूर हटने वाला है।
पटना, आलोक मिश्र। Bihar Politics किसी भी अस्त्र-शस्त्र से ज्यादा असरदार होते हैं शब्दों के तीर। खासकर राजनीति में तो शब्दों का ही खेल होता है। जो जितने प्रभावी ढंग से अपने शब्दों को रखता है, वह उतना ही बेहतर प्रभाव छोड़ता है। अगर चयन सही नहीं होता है तो प्रभाव उल्टा भी पड़ जाता है। बिहार में चल रहे दो विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में मैदान में उतरे राजनीतिक दलों ने विरोधियों पर शब्दों से ही बम-गोली से ज्यादा घातक हमले कर दिए। लंबे समय से बिहार की राजनीति से दूर लालू प्रसाद यादव के पटना आने पर यह घमासान और तेज हो चला। अब किसका असर कितना हुआ? यह आज ईवीएम में कैद हो जाएगा, जिसका परिणाम मंगलवार को पता चलेगा।
बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव हमेशा केंद्र में रहे हैं। पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए वह जरूरी हैं। जेल से छूटने के बाद वह दिल्ली में अपनी बड़ी बेटी मीसा भारती के आवास पर स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे। खबरें यही आ रही थीं कि उनकी हालत ठीक नहीं है, लेकिन इधर चुनाव की डुगडुगी बजी और उधर लालू का दिल बिहार आने को मचलने लगा। तब यह माना जा रहा था कि संभवत: पार्टी की कमान संभाले लालू पुत्र तेजस्वी उन्हें नहीं आने देंगे, ताकि सत्ता पक्ष लालू के 15 साल के शासन को जंगलराज बता मुद्दा न बना सके। चूंकि ये दोनों सीटें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए जरूरी हैं। एनडीए जहां अपनी इन सीटों को बचाकर सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहता है, वहीं तेजस्वी इस जीत के सहारे कुर्सी पर कब्जे की हसरत पाले हैं। ऐसे में लालू के नहीं आने की संभावना ही बनी थी। राबड़ी देवी ने स्वास्थ्य का हवाला देकर उनके आने की अटकलों पर विराम लगा दिया था। ऐसे में चुनावी माहौल में सुस्ती सी छाई थी।
लेकिन लालू नहीं माने। उन्होंने पटना कूच से पहले ही दिल्ली से हमला शुरू कर दिया और पहला हमला हमेशा साथ रहने वाली कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्तचरण दास पर किया। उन्हें भकचोन्हर कह कर न केवल कांग्रेस, बल्कि एनडीए में भी खलबली मचा दी। लोग भकचोन्हर का अर्थ तलाशने लगे। किसी ने गूगल का सहारा लिया तो किसी ने पुराने जानकार का। सभी ने इसे दलित का अपमान बताया। लालू को दलित विरोधी करार देने और इस बहाने दलित वोटों को लामबंद करने की कोशिशें तेज हो गईं। लालू इतने पर ही नहीं रुके। पटना पहुंच उन्होंने फिर बाण चलाया कि तेजस्वी ने काफी कुछ उखाड़ दिया है, बचा-खुचा हम विसर्जित कर देंगे।
इधर चुनावी सभाओं को संबोधित करके पटना पहुंचने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सवाल दाग दिया गया कि लालू आपके विसर्जन की बात कह रहे हैं। लालू के जंगलराज को मुद्दा बनाए नीतीश कह बैठे कि- वो हमें गोली मार दें, इसके अलावा वो कुछ नहीं कर सकते, हां गोली जरूर मरवा सकते हैं। नीतीश कुमार का इतना बोलना था कि लालू पर चौतरफा हमले शुरू हो गए। इस वाद-विवाद पर नजरें गड़ाए लोगों की निगाहें लालू पर टिक गईं कि वे अब क्या बोलते हैं? जवाब देने लालू पहुंच गए चुनावी सभाओं में। लंबे अर्से के बाद बीमारी की हालत में लालू को देखने जुटे लोगों के सामने वे बोले कि- न बम चलेगा न गोली चलेगी, जीतेगा भोला। भोला से आशय खुद से था कि नीतीश ने उनके भोलेपन का खूब फायदा उठाया।
बहरहाल प्रचार समाप्त होने के बावजूद तीर अभी भी चल रहे हैं। एक-दूसरे पर हमले का क्रम जारी है। जनता शांत भाव से इसे देख रही है। इस शोर-शराबे में मुख्य मुद्दे दरकिनार हो गए। न विकास पर चर्चा हुई और न ही महंगाई ही कुछ भाव पा सकी। इस घमासान में खुद को बेहतर और दूसरे को बेकार साबित करने की ही होड़ लगी रही।
आज यानी शनिवार को मतदान होना है। सारी तैयारियां पूरी हो गई हैं। किसने कितना प्रभावित किया, यह कल ईवीएम में कैद हो जाएगा। नतीजे मंगलवार को आने हैं। उस दिन पता चलेगा कि वाकयुद्ध में बाजी किसके हाथ लगेगी? एनडीए फिर लालू के 15 साल के शासन का भय दिखाने में कामयाब होगा या लालू के प्रति नाराजगी, उनकी मौजूदा हालत के आधार पर सहानुभूति में बदलेगी। बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दे वाकई असरदार होंगे या जातिगत समीकरण ही प्रभाव डालेंगे। बस, तीन दिन बाद सब सामने आ जाएगा कि बिहार पुराने र्ढे पर चलने वाला है या इससे दूर हटने वाला है।
[स्थानीय संपादक, बिहार]