लालू यादव के लिए मजबूरी बना RJD का नेतृत्‍व, वजूद बचाने को पिता के सहारे तेजस्‍वी

लालू यादव जेल में रहने के बावजूद बिहार की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए हैं। उनके बल पर ही आरजेडी का वजूद टिका है। लालू के उत्‍तराधिकारी तेजस्‍वी भी उनके बिना अधूरे हैं।

By Amit AlokEdited By: Publish:Thu, 05 Dec 2019 08:35 AM (IST) Updated:Fri, 06 Dec 2019 10:20 PM (IST)
लालू यादव के लिए मजबूरी बना RJD का नेतृत्‍व, वजूद बचाने को पिता के सहारे तेजस्‍वी
लालू यादव के लिए मजबूरी बना RJD का नेतृत्‍व, वजूद बचाने को पिता के सहारे तेजस्‍वी

पटना [अरविंद शर्मा]। राष्‍ट्रीय जनता दल (RJD) के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर 11वीं बार भी लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के ही लगातार चुने जाने की खबर कोई हैरान करने वाली बात नहीं है। बल्कि, सवाल है कि जेल में रहकर भी पार्टी की कमान संभालने की आखिर क्या मजबूरी है?

यह सवाल खासकर तब, जब लालू परिवार से ही इस पद के लिए दो तगड़े दावेदार हैं। नेता प्रतिपक्ष के रूप में तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने अपनी पहचान बना ली है। पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में राबड़ी देवी (Rabri Devi) भी परिवार से ही बड़ी दावेदार हैं। फिर भी लालू का सहारा क्यों? क्‍या तेजस्‍वी यादव को वजूद बचाने के लिए पिता का सहारा चाहिए?

बीजेपी बोली: आरजेडी बंद करे बार-बार की नौटंकी

सवाल आरजेडी के अंदर से भी उठ रहे हैं और बाहर से भी। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेता मंगल पांडेय (Mangal Pandey) ने तो यह भी कह दिया कि लालू को आजीवन ही अध्यक्ष क्यों नहीं बना दिया जाता है? बार-बार की नौटंकी क्यों?

तेजस्‍वी ने साफ किया लालू की ताजपोशी का मतलब

चारा घोटाले (Fodder Scam) में सजा के दौरान रांची के अस्पताल (RIMS) में इलाजरत लालू की ताजपोशी के मकसद के मायने तेजस्वी के उस बयान से साफ हो जाते हैं, जिसमें उन्होंने कहा है कि उनके पिता व्यक्ति नहीं, विचारधारा हैं और उनके नेतृत्व में ही विधानसभा चुनाव (Bihar Assembl Election) होगा। तेजस्वी के बयान में सूबे की भावी सियासत का संकेत है। साथ ही सामाजिक समीकरण (Social Equations) दुरुस्त करने और राजनीतिक वजूद बचाने की जद्दोजहद भी दिख रही है।

पिता के जेल जाने के बाद तेजस्‍वी के हाथ में रही कमान

पिछले दो वर्षों से लालू के जेल में रहने के कारण आरजेडी की सारी जिम्मेवारी तेजस्वी यादव संभाल रहे हैं। उन्हीं के नेतृत्व में पार्टी ने लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) भी लड़ा। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी Narendra Modi) की लहर के सामने तेजस्‍वी का तेज फीका पड़ गया। बिहार में मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की अगुवाई में राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने बिहार में जबरदस्‍त जीत हासिल की। नतीजे के बाद पांच दलों के महागठबंधन (Grand Alliance) में घमासान छिड़ गया और सबके निशाने पर तेजस्वी आ गए। कारण यह कि चुनाव में गठबंधन की बागडोर तेजस्वी के हाथों में ही थी।

इस संदेश से बचना चाहते थे आरजेडी के रणनीतिकार

आरजेडी को एक डर और था कि तेजस्वी को अगर अध्यक्ष बना दिया गया तो संदेश जाएगा कि बेटों ने बुरे वक्त में पिता को बेदखल कर दिया। आरजेडी के रणनीतिकार इससे भी बचना चाह रहे थे।

तेजस्वी को नहीं बनाया-बताया जा सकता लालू

लालू के घोषित उत्तराधिकारी तेजस्वी हैं। तीन साल पहले पार्टी ने सर्वसम्मति से उन्हें ही मुख्यमंत्री प्रत्याशी (CM Candidate) भी घोषित किया था। किंतु संगठन की कमान सौंपने की राह में लोकसभा चुनाव नतीजे ने बड़ा फर्क डाला। शून्य पर आउट होने का खामियाजा तेजस्वी को भुगतना पड़ा। आरजेडी के रणनीतिकारों ने मान लिया कि तेजस्वी को लालू नहीं बनाया-बताया जा सकता है, क्योंकि आरजेडी के खाते में इतनी बुरी हार पहले कभी नहीं आई। इसी सोच ने तेजस्वी को खुद ही पीछे हटने पर विवश कर दिया।

महागठबंधन में खुद को आगे बनाए रखने की चुनौती

आरजेडी के सामने अभी बड़ी मुश्किल महागठबंधन में खुद को सर्वश्रेष्ठ बनाए रखने की है। लोकसभा में हार के बाद तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल उठने शुरू हो गए थे। उपचुनाव में जीतनराम मांझी (Jitan Ram Manjhi) और मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) ने अपनी राह अलग कर ली। उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) और कांग्रेस (Congress) के प्रदेश नेतृत्व ने भी खुलकर तेजस्वी का साथ नहीं दिया। ऐसे में विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ एकजुटता के लिए लालू का सहारा ही एकमात्र विकल्प दिखा।

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