शिक्षण की चुनौतियों पर काम करने के लिए छोड़ी सरकारी नौकरी, अब कई सौ बच्चों को दे रहे हैं मुफ्त शिक्षा

दोनों स्कूलों में राईट टू एजुकेशन एक्ट के तहत 25 प्रतिशत बच्चों को निशुल्क पढ़ाया जाता है और 300 से अधिक बच्चों को स्कूल प्रशासन के द्वारा अलग से निशुल्क पढ़ाया जाता है।

By Neel RajputEdited By: Publish:Sun, 15 Dec 2019 01:51 PM (IST) Updated:Sun, 15 Dec 2019 02:21 PM (IST)
शिक्षण की चुनौतियों पर काम करने के लिए छोड़ी सरकारी नौकरी, अब कई सौ बच्चों को दे रहे हैं मुफ्त शिक्षा
शिक्षण की चुनौतियों पर काम करने के लिए छोड़ी सरकारी नौकरी, अब कई सौ बच्चों को दे रहे हैं मुफ्त शिक्षा

जीवन में कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता इंसान को जो भी काम मिले उसे सही नीयत, मेहनत और ईमानदारी से करके ही आगे बढ़ा जा सकता है। बिहार के प्रकाश आनंद भी यही मानते हैं। स्नातक की पढ़ाई करने तक प्रकाश आनंद धोर अनिश्वरवादी थे, लेकिन संत विश्वनाथ को गुरू के रूप में स्वीकार करने के बाद इनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। गुरू के दिए गए मूलमंत्र ‘आई नो आई एम नथिंग’ के द्वारा इनके जीवन से अहंकार समाप्त हो गया। प्रकाश आनंद ने अपने अंदर से अहंकार को समाप्त कर अपने आपको सबसे छोटा समझकर छोटे से छोटे काम को भी करने में होने वाले संकोच को दूर कर दिया। 

2012 मे रखी एसएसएन ग्लोबल स्कूल की बुनियाद

जिस सरकारी नौकरी को प्राप्त करने की चाहत हर युवा की रहती है प्रकाश आनंद ने उस सरकारी नौकरी को छोड़कर शिक्षण की चुनौतियों पर काम करने का मन बनाया। उन्होंने 2012 में विक्रमगंज में गुरू के नाम पर एसएसएन ग्लोबल स्कूल की बुनियाद रखी। इनके स्कूल में करीब 1200 से अधिक बच्चे हैं। इसके अलावा प्रकाश ने संत डीएसएन वर्ल्ड के नाम से दूसरा स्कूल स्थापित किया, जहां 150 से अधिक बच्चे हैं। इन दोनों स्कूलों में अभी क्लास 8 तक की पढ़ाई होती है। बता दें कि दोनों स्कूलों में राईट टू एजुकेशन एक्ट के तहत 25 प्रतिशत बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाया जाता है। इसके साथ ही 300 से अधिक बच्चों को स्कूल प्रशासन के द्वारा अलग से नि:शुल्क पढ़ाया जाता है।

430 बच्चों को दी गई छात्रवृत्ति

पिछले वर्ष 2017-18 सेशन के दौरान 430 बच्चों को छात्रवृति प्रदान की गई। इसके अलावा 20 बच्चों को स्कूल के द्वारा यूनिफॉर्म, स्कूल बैग, किताबें, कॉपियां, कलम-पेंसिल इत्यादि नि:शुल्क वितरित की जाती है। बता दें कि प्रकाश आनंद ने विक्रमगंज के उदय प्रताप सिंह, जिन्होंने स्कूल के लिए अपनी जमीन और शुरुआत में अन्य संसाधन उपलब्ध करवाये, के सहयोग से स्कूल शुरू किया। इनके स्कूल में सभी शिक्षकों का चुनाव लिखित परीक्षा और साक्षात्कार से हुआ है। विक्रमगंज में स्मार्ट क्लास और ऑन लाइन प्रोब्लम सोल्यूशन की सुविधा प्रदान करने वाला इनका स्कूल पहला संस्थान है।

प्रकाशित हुई दो कविता संग्रह

पढ़ाई के दौरान ही प्रकाश आनंद की दो कविता संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं। इनकी पहली कविता संग्रह का नाम है ‘तुमने पुकारा’ और दूसरी कविता संग्रह का नाम ‘मैं तुम हो जाऊं’ है। यह एक आध्यात्मिक कविताओं का संग्रह है। प्रकाश आनंद को किताबों से प्रेम है, लेकिन युवा पीढ़ी का स्मार्टफोन और टेलीविजन से करीबी होना उन्हें सही नहीं लगता है। बच्चों में अनुशासनहीनता काफी अधिक बढ़ गई है। इसके लिए अभिभावक काफी हद तक जिम्मेदार हैं। प्रकाश आनंद का मानना है कि अभिभावकों को अपने बच्चों पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि उनके बच्चे क्या पढ़ते और क्या देखते हैं। नौकरी छोड़कर अपने स्कूल के जरिए बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने वाले प्रकाश आनंद के प्रयास काफी सराहनीय है। उनके इसी योगदान के चलते उन्हें 2018 में Icons of Bihar से नवाजा गया।

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