बिहार के युवक की फुटपाथी दुकान पर महाराष्ट्र में चला बुलडोजर तो किया कमाल, यूपी में भी बढ़ गई मांग

पुणे में सिवान के एक फुटपाथी दुकानदार की दुकान पर प्रशासन का जब बुलडोजर चला तो वह गांव लौट आया। मैरवा प्रखंड के सिसवां खाप के बृजकिशोर शर्मा ने हिम्मत नहीं हारी और गारमेंट मैन्युफैक्चरिंग का काम शुरू किया।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Mon, 17 May 2021 04:03 PM (IST) Updated:Mon, 17 May 2021 04:03 PM (IST)
बिहार के युवक की फुटपाथी दुकान पर महाराष्ट्र में चला बुलडोजर तो किया कमाल, यूपी में भी बढ़ गई मांग
मैरवा में सिसवां खाप में अपनी दुकान पर कारीगरों के साथ काम करते बृजकिशोर शर्मा बाएं।

रिजवानुर रहमान, मैरवा/ सिवान: महाराष्ट्र के पुणे में बिहार के एक फुटपाथी दुकानदार की दुकान पर प्रशासन का जब बुलडोजर चला तो वह गांव लौट आया। मैरवा प्रखंड के सिसवां खाप के बृजकिशोर शर्मा ने हिम्मत नहीं हारी और गारमेंट मैन्युफैक्चरिंग का काम शुरू किया। पिछले साल कोरोना को लेकर हुए लॉकडाउन में महानगरों से बेरोजगार होकर लौटे कामगारों के दर्द को समझा और अपने क्षेत्र के आधा दर्जन को रोजगार से जोड़ने का फैसला किया। यह सब कुछ उसने उद्योग विभाग और सरकार से कर्ज लेकर किया। लेकिन उसका जुनून और आत्मविश्वास उसे सफलता की मंजिल की तरफ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहा। आज उसके द्वारा तैयार गारमेंट सामग्री सिवान के मैरवा, गुठनी, दरौली, नौतन के अलावा उत्तर प्रदेश के रामपुर बुजुर्ग, सोहनपुर, सलेमपुर, लार, कुशीनगर के बाजार स्थित दुकानों तक पहुंचती है। अब यूपी के लोग भी उसके बनाए कपड़ों की मांग करते हैं।

13 वर्ष पूर्व महाराष्ट्र का किया था रुख

प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने का हिस्सा बन चुके बृजकिशोर शर्मा ने परिवार की आर्थिक जरूरतों को समझते हुए इंटर पास करने के बाद 2008 में महाराष्ट्र के पुणे क्षेत्र के भोसरी जाकर रोजी रोटी की तलाश की। वहां 20 हजार रुपये से फुटपाथ पर बेल्ट, चश्मे की दुकान लगाई। धीरे-धीरे व्यावसायिक समझ के साथ कदम बढ़ते चले गए। आगे चलकर दुकान में रेडीमेड कपड़े, बैग भी बेचना शुरू कर दिए। बृजकिशोर शर्मा के अनुसार इतनी कमाई हो जाती थी, जिससे परिवार का खर्च चलने लगा था, लेकिन स्थानीय प्रशासन को फुटपाथ की यह दुकान रास नहीं आई। नौ साल की मेहनत पर तब पानी फिर गया जब 2017 में प्रशासन का बुलडोजर उसकी दुकान पर चला। अब इतने रुपये नहीं थे कि कहीं किराए पर दुकान मिल सके। वह थक-हारकर अपने गांव लौट आया। अपने साथ दुकान में बचे हुए कुछ रेडीमेड कपड़े वापस लाया था और उसे बेचने के लिए एक दुकान खोल दी। 

मां के नाम खोली मैन्युफैक्चरिंग कंपनी

बृजकिशार बताते हैं कि पुणे में अपने एक मित्र के संपर्क में था, जो कि बैग मैन्युफैक्चरिंग करता था। उसी तजुर्बे पर रेडीमेड कपड़ा मैन्युफैक्चरिंग करने का ख्याल आया। कोरोनाकाल में मास्क की मांग अचानक बढ़ गई। एक सिलाई मशीन लेकर वह मास्क तैयार करने लगा। बाजार में खपत अधिक होने से तैयार मास्क हाथोंहाथ बिक जाते थे। इसके बाद उद्योग विभाग से संपर्क किया। मुख्यमंत्री अनुसूचित जाति-जनजाति उद्यमी योजना के अंतर्गत 2018-19 में उद्योग विभाग से निबंधन कराकर बैंक से ऋण प्राप्त की और व्यवसाय को और आगे बढ़ाने का कदम बढ़ाया। मां के नाम पर आरती गारमेंट खोला। 

आधा दर्जन युवकों को मिला रोजगार 

बृजकिशार ने गारमेंट सामग्री  मैन्युफैक्चरिंग (निर्माण) के लिए 10 मशीन खरीदी। लोवर निकर, पजामा, हाफ पैंट-र्शट टी-शर्ट, ट्रैकसूट समेत कई सामग्री तैयार होने लगी। इस दौरान कोरोना की मार खाकर बहुत सारे कामगार महानगरों से गांव लौटे। उनकी जरूरतों को महसूस करते हुए आधा दर्जन से अधिक युवकों को उन्होंने रोजगार दिया। आज उनके तैयार माल बिहार और यूपी के सिवान तथा देवरिया, कुशीनगर जिलों के विभिन्न बाजारों तक पहुंचता है। वह बेरोजगार युवकों के लिए आत्मनिर्भरता की राह दिखा रहे हैं। कहते हैं कि एक कंप्यूटर भी खरीदा है, जिससे डिजाइनिंग करने में सुविधा होने लगी है। 

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