Patna University: राजनीति की इस नर्सरी में पले-बढ़े नीतीश-लालू, इसने दी जेपी क्रांति को धार
पटना यूनिवर्सिटी का स्वर्णिम इतिहास रहा है। यही वो जगह है जहां से बिहार की राजनीति के दिग्गज निकले और इसका सितारा बुलंद किया। जेपी क्रांति को इस यूनिवर्सिटी ने ही धार दिया। जानिए..
पटना [नलिनी, प्रभात]। पटना विश्वविद्यालय ज्ञान का वह बरगद है, जो एक सदी से अधिक समय से सीना ताने खड़ा है। शिक्षा का यह केंद्र राजनीति की नर्सरी भी है। आज बिहार की सत्ता की धुरी रहे नेताओं ने यहीं से राजनीति का ककहरा सीखा। पटना विश्वविद्यालय में आज छात्रसंघ चुनाव है।
यह वही पटना विश्वविद्यालय है, जहां की छात्र राजनीति से निकले नेता आज बिहार की राजनीति को दिशा दे रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी हों या केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद, अश्विनी चौबे व राम विलास पासवान, पटना विवि छात्र संघ की ही ऊपज हैं।
जेपी क्रांति को दी थी धार
1970 में यहां पहली बार प्रत्यक्ष चुनाव के आधार पर मतदान हुआ था, जिसमें आज की विपक्षी राजनीति की धुरी लालू प्रसाद यादव महासचिव बने थे। इस विवि ने आपातकाल के दौर में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति को भी धार दी।
देश का सातवां सबसे पुराना विश्वविद्यालय
अशोक राजपथ पर गंगा के किनारे खड़े पटना विश्वविद्यालय की स्थापना 1917 ई. में अंग्रेजों ने की। यह देश का सातवां सबसे पुराना विश्वविद्यालय है। स्थापना के पूर्व इसके अंतर्गत आने वाले कॉलेज कोलकाता विश्वविद्यालय के अंग थे। पटना विश्वविद्यालय के अंतर्गत पटना साइंस कॉलेज, पटना कॉलेज, वाणिज्य महाविद्यालय, बीएन कॉलेज, पटना कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना लॉ कॉलेज, मगध महिला एवं पटना वीमेंस कॉलेज जैसे संस्थान आते हैं।
'यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन' की तर्ज पर बना पटना विवि
पटना कॉलेज के प्राचार्य प्रो. नवल किशोर चौधरी के अनुसार 1912 ई. में बंगाल से बिहार-उड़ीसा के अलग होने के बाद पटना में एक विश्वविद्यालय खोलने की मांग उठी। अंग्रेजों और भारतीय की 18 सदस्यीय 'नाथन कमेटी' बनाई गई। इस कमेटी ने 'यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन' की तर्ज पर पटना विवि की स्थापना करने की अनुशंसा की। पीयू के सौ साल के इतिहास पर लिखी किताब 'ए हिस्ट्री ऑफ पटना विवि' में इसका जिक्र बखूबी किया गया है।
इस किताब के लेखक और संपादक डॉ. जयदेव मिश्र, डॉ. जयश्री मिश्र और डॉ. सुरेंद्र कुमार हैं। किताब के लेखकों में जयदेव मिश्र के अनुसार 'यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन' में संबद्ध, एडेड, अंगीभूत और वोकेशनल कॉलेज का चलन था।
इस तरीके को पटना विवि में भी अपनाया गया। वोकेशनल कॉलेज में पटना ट्रेनिंग कॉलेज और पटना लॉ कॉलेज आया तो एडेड कॉलेज में बीएन कॉलेज शामिल हुआ। विवि की स्थापना के बाद तीन गवर्मेंट कॉलेज, पांच एडेड कॉलेज और वोकेशनल कॉलेज इससे जुड़े। इसकी स्थापना पटना विवि एक्ट 1917 के तहत हुई जिसका कार्यक्षेत्र नेपाल और उड़ीसा तक था।
63 साल पहले बना पीयू छात्र संघ
पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ की स्थापना 1956 ई. में हुई। तब से 1968 तक पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ के समस्त प्रतिनिधियों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता था। 1968 ई. में विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने प्रत्यक्ष चुनाव की मांग को लेकर तत्कालीन कुलपति डॉ. कलिकिंकर दत्त से मुलाकात की।
विश्वविद्यालय के तत्कालीन उपकुलपति ने लोकमत कराया जिसके बाद तय हुआ कि अब प्रत्यक्ष चुनाव के द्वारा छात्रसंघ के प्रतिनिधि चुने जाएंगे। नौ मार्च, 1970 को पहली बार प्रत्यक्ष चुनाव के आधार पर मतदान हुआ।
पहले चुनाव में लालू बने महासचिव
पटना विश्वविद्यालय में वर्ष 1970 में पहली बार चुनाव हुआ था, तब लालू प्रसाद महासचिव बने थे। फिर 1971 में चुनाव हुआ। इसमें अध्यक्ष पद के लिए राम जतन सिन्हा और लालू प्रसाद आमने-सामने थे। इसमें लालू प्रसाद की हार हुई। रामजतन सिन्हा अध्यक्ष बने तो नरेंद्र सिंह महासचिव।
1973 में हुए चुनाव में लालू प्रसाद अध्यक्ष बने, सुशील कुमार मोदी महासचिव एवं रवि शंकर प्रसाद सहायक महासचिव बने। इसके बाद 1977 में हुए चुनाव में अश्विनी चौबे पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष बने।
1980 में अनिल शर्मा एवं 1984 में रणवीर नंदन महासचिव बने। वर्ष 1984 तक आते-आते छात्र संघ चुनाव में हिंसा चरम पर आ गई। स्थिति यह हो गई थी कि उम्मीदवार हथियार लेकर प्रचार करने लगे। उम्र सीमा तय न होने के कारण नेतागिरी चमकाने के लिए लोग छात्र बनकर राजनीति करते रहे। नतीजा, छात्र संघ चुनाव पर अघोषित रोक लग गई।
जेपी क्रांति में चमके छात्र नेता
1975 की जेपी क्रांति में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के नेता खूब चमके। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के क्रांतिकारी नेतृत्व में कदम से कदम मिलाने वाले लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, सुशील कुमार मोदी, रविशंकर प्रसाद, अश्विनी कुमार चौबे जैसे नेताओं को मुख्यधारा की राजनीति में मजबूत पहचान मिली।
2012 में आशीष सिन्हा बने अध्यक्ष
28 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद वर्ष 2012 में पटना विश्वविद्यालय में फिर से चुनाव हुआ। इसमें अखिल भारतीय विद्यालय परिषद के आशीष सिन्हा और ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन की तरफ की उम्मीदवार दिव्या गौतम के बीच अध्यक्ष पद के लिए मुकाबला। इसमें आशीष ने अध्यक्ष में बाजी मार लिया। उपाध्यक्ष में आइसा समर्थित अंशुमान ने जीत दर्ज की। एआइएसएफ की अंशु कुमारी महासचिव जबकि छात्र जदयू की अनुप्रिया सचिव बनी थी।
लॉ कॉलेज से निकलते थे सबसे ज्यादा नेताजी
पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष रह चुके वरिष्ठ नेता राम जतन सिन्हा कहते हैं, 1971 के समय पटना विश्वविद्यालय की छात्र संघ राजनीति में दरभंगा हाउस, लॉ कॉलेज व हथुआ हॉस्टल के छात्रों का बोलबाला हुआ करता था। उस समय साइंस कॉलेज या पटना कॉलेज के छात्र राजनीति में नहीं आते थे।
लोग 8-10 वर्ष तक लॉ कॉलेज में रहते थे। छात्र नेता अधिक लॉ कॉलेज में रहते थे। पहली बार के अध्यक्ष बने राजेश्वर प्रसाद मेडिकल कॉलेज के बाहर रहते थे। वह मनोनित नेता थे।
महासचिव बने लालू यादव भी छात्रों से ज्यादा नहीं मिलते थे। तब हम सोशल सर्विस सचिव होने के कारण काफी घूमे। 1971 में लालू प्रसाद व मैंने साथ में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा। तब पढऩे वाले छात्रों ने हमें वोट दिया। सबसे अधिक वोट से मैं जीता।
छात्र संघ के दबाव पर ही हम तब हर पेपर में चार-चार दिन का गैप देकर परीक्षा कराते थे, परीक्षा एकेडमिक कलेंडर के अनुसार होती थी लेकिन बाद में यह पूरी तरह बदल गया। समय के साथ परिस्थिति बदलती है। तब प्रचार के लिए कोई रोक नहीं थी। कक्षा में शिक्षक रहते थे तब अनुमति लेकर जाते थे।
कई शख्सियतों का रहा है जुड़ाव
पटना विश्वविद्यालय से राजनीति के साथ हर क्षेत्र की शख्सियतों का जुड़ाव रहा। विवि से अनुग्रह नारायण सिंह, विधानचंद्र राय, ललित नारायण मिश्र, जय प्रकाश नारायण, रामधारी सिंह दिनकर, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद, शत्रुघ्न सिन्हा, सुशील कुमार मोदी, सीपी ठाकुर, रविशंकर प्रसाद, यशवंत सिन्हा, संप्रदा सिंह, उषाकिरण खान, एचसी वर्मा, पद्मश्री गायिका शारदा सिन्हा, आचार्य किशोर कुणाल, प्रो. केसी सिन्हा आदि ने शिक्षा प्राप्त कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।
1917 ई. में हुई थी पटना विश्वविद्यालय की स्थापना
1956 ई. में पटना विवि छात्रसंघ की हुई स्थापना
1968 ई. तक अप्रत्यक्ष पद्धति से होता था चुनाव
1970 ई. में पहली बार छात्र संघ का प्रत्यक्ष निर्वाचन
1984 ई. में ङ्क्षहसा के बाद छात्र संघ चुनाव हो गया बंद
2012 ई. में 28 साल के बाद वापस शुरू हुआ चुनाव