पद्मश्री गुलाम मुस्तफा खान का था पटना से लगाव, मेरे मना सुमिरन कर.... था पसंदीदा भजन

भारतीय शास्त्रीय संगीत के सिरमौर रामपुर सहसवान घराने से संबंध रखने वाले पद्मश्री उस्ताद मुस्तफा खान (Padmshri Ustad Mustafa Khan) का 89 साल की उम्र में मुंबई में निधन हो गया। उनका पटना से बेहद गहरा लगाव रहा

By Shubh Narayan PathakEdited By: Publish:Mon, 18 Jan 2021 10:02 AM (IST) Updated:Mon, 18 Jan 2021 10:02 AM (IST)
पद्मश्री गुलाम मुस्तफा खान का था पटना से लगाव, मेरे मना सुमिरन कर.... था पसंदीदा भजन
पटना में एक प्रस्‍तुति से पहले प्रो. सी एल दास के घर रियाज करते पद्मश्री मुस्तफा खान। जागरण

पटना, जागरण संवाददाता। भारतीय शास्त्रीय संगीत के सिरमौर रामपुर सहसवान घराने से संबंध रखने वाले पद्मश्री उस्ताद मुस्तफा खान (Padmshri Ustad Mustafa Khan) का 89 साल की उम्र में मुंबई में निधन हो गया। तीन मार्च 1931 को उत्तरप्रदेश के बदायूं में जन्म लेने वाले उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान के शिष्यों की लंबी सूची रही है। जिसमें गायक सोनू निगम, हरिहरन, शान, आशा भोंसले, एआर रहमान आदि रहे। उस्ताद गुलाम मुस्तफा का संबंध तो वैसे देश के हर कोने से रहा लेकिन पटना शहर से भी उनका गहरा संबंध रहा।

शहर के सरोद वादक रहे स्वर्गीय प्रो. सीएल दास की पुत्री व कथक नृत्यांगना डॉ. रमा दास की मानें तो उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान का हमारे घर से पारिवारिक संबंध रहा। जब भी वे पटना कार्यक्रम करने आते तो पिताजी से मिलने जरूर आते थे। डॉ. रमा दास बताती हैं कि पटना के अलावा दरभंगा, मोतिहारी आदि जगहों पर उनके कई कार्यक्रम होते थे। उन्हें सुनने के लिए लोगों की बड़ी भीड़ लगी रहती थी। वे एक ख्याल गायक होने के साथ-साथ साहित्य के प्रति भी रुचि रखते थे। उनका पंसदीदा बंदिश 'मेरे मना सुमिरन कर ले मेरे मनाÓ भजन वे हमेशा गाया करते थे। 

डॉ. रमा दास की मानें तो पटना में चित्रगुप्त पूजा के दौरान 1977 में आए थे और अपनी प्रस्तुति दी थी। वर्ष 1983 में पटना न्यू क्लब में कार्यक्रम के दौरान अपनी प्रस्तुति दी थी। शहर की सरोद वादक प्रो. रीता दास बताती हैं कि न्यू क्लब पटना में आयोजित कार्यक्रम के दौरान उनके साथ सरोद की प्रस्तुति करने का अवसर मिला था। वो बताती हैं कि कई बार कार्यक्रम में जाने से पूर्व पिताजी के साथ बैठ घर पर कुछ देर के लिए रियाज भी करते थे। वहीं विद्यापति पर्व के मौके पर 1973 में मोइनुलहक स्टेडियम में उनका प्रोग्राम हुआ था। जिसे सुनने के लिए लोगों की काफी भीड़ जमा हुई थी। अपनी प्रस्तुति देने के बाद उस्ताद प्रो. सीएल दास से मिलने कंकड़बाग घर पर आए थे।

प्रो. सीएल दास के प्रति उस्ताद मुस्तफा खान का गहरा लगाव था। यही कारण था कि जब भी पटना आते तो उनसे जरूर मिलते। डॉ. रमा दास ने बताया कि हमारे पिताजी ने शहर में कई प्रोग्राम करवाए जिसमें उस्ताद गुलाम मुस्तफा का भरपूर योगदान रहा। प्रस्तुति के दौरान अपने घराने की बंदिश अवश्य प्रस्तुत करते थे। रमा दास बताती हैं कि मुस्तफा खान जब पिताजी से मिलने पटना आए थे तब उन्होंने कहा था कि रियाज के लिए एकांत बहुत जरूरी है। उन्होंने इस बात की चर्चा भी की थी कि बचपन के दिनों में डर और झिझक से बचने के लिए गाया करते थे। वे अपना रियाज कब्रिस्तान में करते थे। क्योंकि उनका मानना था कि घर में भीड़ होने के कारण रियाज में व्यवधान पड़ता है। डॉ. रीता दास बताती हैं कि उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान क पिता उस्ताद वारिस हुसैन खान भी ङ्क्षहदुस्तानी संगीत गायन के बड़े उस्ताद हुआ करते थे।

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