Paddy: 10 रुपये प्रति क्विंटल की दर से होती पैक्सों के धान की मिलिंग बाज़ार दर 70 रुपये

Paddy milling बिहारशरीफ में 9.8 एमटी की बोहनी के बाद धान अधिप्राप्ति की मात्रा बीते 26 नवंबर से अटकी पड़ी है। पैक्सों के प्रबन्धन का कहना है कि कैश क्रेडिट लोन मिलने के बाद ही अधिप्राप्ति रफ्तार पकड़ेगी।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Wed, 02 Dec 2020 12:32 PM (IST) Updated:Wed, 02 Dec 2020 12:32 PM (IST)
Paddy: 10 रुपये प्रति क्विंटल की दर से होती पैक्सों के धान की मिलिंग बाज़ार दर 70 रुपये
धान की खरीद में आ रही बाधा। जागरण।

नालंदा, जेएनएन। बिहारशरीफ में 9.8 एमटी की बोहनी के बाद धान अधिप्राप्ति की मात्रा बीते 26 नवंबर से अटकी पड़ी है। पैक्सों के प्रबन्धन का कहना है कि कैश क्रेडिट लोन मिलने के बाद ही अधिप्राप्ति रफ्तार पकड़ेगी। इस बीच यह रोचक है कि पैक्सों द्वारा धान की मिलिंग का व्यवस्थागत भुगतान मात्र 4 रुपये प्रति मन निर्धारित है। यानी 10 रुपये प्रति क्विंटल। यह कई साल पहले निर्धारित किया हुआ दर है जो इस साल भी लागू है। जबकि मिलिंग का बाजार दर 62 रुपये से 70 रुपये प्रति क्विंटल है। इस व्यवस्था से पैक्स प्रबन्धन नुकसान में रहता है। ऐसा पैक्स अध्यक्षों का दावा है। पैक्सों का प्रबन्धन इस दर को वर्तमान समय के लिए अव्यवहारिक बता स्थानीय अधिकारियों से विरोध दर्ज कराता रहा है। स्थानीय अधिकारी यह कह अपनी जिम्मेदारी से बच निकलते हैं कि यह व्यवस्था सहकारिता विभाग की है।

साल 2010 की व्यवस्था अब तक लागू

वर्ष 2010 में ही 10 रुपये प्रति क्विंटल की दर मिलिंग के लिए तय हुआ था। यह व्यवस्था अब तक लागू है। जबकि उस वक्त से अब तक डीजल के दाम और बिजली बिल का दर भी बहुत बढ़ गए।

सहकारिता विभाग की यह व्यवस्था इस तर्क पर आधारित है कि धान की मिलिंग के बाद प्राप्त भूसे एवं ब्रान बेचकर पैक्स प्रबन्धन शेष राशि का जुगाड़ कर घाटा को पाटे। बता दें, भूसे का इस्तेमाल मवेशियों के चारे एवं जलावन के लिए होता है। जबकि ब्रान (धान का अग्र भाग) का इस्तेमाल खाद्य तेल निर्माण में किया जाता है। ब्रान में वसा की मात्रा होती है। इसे खाद्य तेल (राइस ब्रान ब्रांड) बनाने वाली कम्पनियों को बेचा जाता है। कुछ खाद्य तेल कम्पनी धान के भूसे भी खरीद लेती है। ब्रान के आड़ में इसका भी इस्तेमाल तेल निर्माण में कर डालती है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकर हो सकता है।

बोरे में भी यही शर्त लागू

पैक्सों को सिर्फ मिलिंग के लिए  ही कम दर नहीं दिये जाते। बोरे में भी यही शर्त लागू है। एक क्विंटल धान में बोरे पर 45 रुपये का खर्च आता है। जबकि मिलता है 15 रुपये। 10 रुपये पैक्स को अपने खाते से करना होता है। यहां भी विभाग का तर्क है कि मिलिंग के बाद बचे बोरे का इस्तेमाल पैक्स ही करता है इसलिए शेष नुकसान की भरपाई वो उसी से करे। सीएमआर यानी कॉमन मिल्ड राइस की ट्रांसपोर्टिंग के खर्च निर्धारण में भी डंडी मार ली गई है। ट्रांसपोर्टिंग का खर्च भुगतान से करीब चार गुना अधिक पड़ता है।

नुकसान से बच सकता पैक्‍स प्रबंधन

सीएमआर जमा करने के लिए बिहारशरीफ या मोकामा स्थित एसएफसी के गोदाम में जाना पड़ता है। उस पर भी कई-कई दिन में चावल अनलोड होता है। चंडी प्रखण्ड के माधोपुर पैक्स के अध्यक्ष राकेश कुमार उर्फ विक्कू ने बताया कि यदि सीएमआर जमा लेने की व्यवस्था प्रखण्ड मुख्यालय स्तर पर रहे तो पैक्स प्रबन्धन नुकसान से बच जाए। एक तो कम खर्ची सरकारी व्यवस्था का व्यवसाय उसपर भी भुगतान इस साल का उस साल होने से पैक्सों के ऊपर बैंक कर्ज का बोझ बढ़ते चले जाने शिकायत सोसायटी संघ ने भी की है। इधर , विभिन्न मदों में पहले से एसएफसी के यहां पैक्सों के बकाया भुगतान की मांग को लेकर सोसायटी संघ ने 15 दिसम्बर तक धान अधिप्राप्ति नहीं करने का आह्वान कर रखा है। जबकि जिला सहकारिता पदाधिकारी किसान हित मे धान खरीद बाधित नहीं करने का आग्रह समितियों से की है।

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