सकारात्मक सोच के साथ बिहार के इस लाल ने की समाज की सेवा, युवाओं के लिए बने प्रेरणास्रोत

निशांत मानना है कि एक युवा ही समाज और देश में बदलाव ला सकता है। वह कहते हैं कि युवाओं का साथ ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है।

By Neel RajputEdited By: Publish:Sun, 15 Dec 2019 02:19 PM (IST) Updated:Sun, 15 Dec 2019 02:19 PM (IST)
सकारात्मक सोच के साथ बिहार के इस लाल ने की समाज की सेवा, युवाओं के लिए बने प्रेरणास्रोत
सकारात्मक सोच के साथ बिहार के इस लाल ने की समाज की सेवा, युवाओं के लिए बने प्रेरणास्रोत

एक युवा अपनी धार्मिक सामाजिक, सांस्कृतिक मान्यताओं के दायरे में रहते हुए देश और समाज के लिए बहुत कुछ कर सकता है। इसके लिए उसे इतना करना होगा कि वे देश और समाज को नुकसान पहुंचाने वाला कोई काम न करे। समाज और देश के लिए समर्पित यह सोच बिहार के निशांत कुमार की है। मूल रूप से गया के रहने वाले निशांत की सोच हमेशा से ही सुधारवादी रही है। उन्होंने समाज के हर वर्ग के लिए काम किया है और उन्हें मुख्य धारा से जोड़ने की कोशिश की है।

वह शिक्षा को केवल नौकरी पाने का जरिया नहीं मानते। उनके अनुसार वे शिक्षा के जरिए युवाओं में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करना चाहते हैं और देश को ऐसे समर्पित युवा देना चाहते हैं, जिनकी न सिर्फ अपनी किताबों, बल्कि देश, समाज, संस्कृति की भी बराबर समझ हो। जो किसी सियासत के हाथ का उपकरण या फिर किसी कंपनी का नौकर बनकर ही न रह जाएं।

युवा ही सबसे बड़ी ताकत

2010 में निशांत ने युवाओं को बेहतर और समग्र शिक्षा देने के मकसद के साथ गया से एक शुरुआत की। आज उनके माध्यम से पढ़ाए और उत्प्रेरित किए गए हजारों युवा घर-परिवार, देश और समाज के लिए अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर अपना योगदान दे रहे हैं। निशांत ने युवाओं के लिए बहुत ही काम किया है। उनका मानना है कि एक युवा ही समाज और देश में बदलाव ला सकता है। वह कहते हैं कि युवाओं का साथ ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है। उनके साथ हर कौम, हर धर्म, हर जाति के युवा जुड़े हैं, क्योंकि उनकी कक्षा में केवल इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है।

जीवन और समाज को प्रभावित कर रहा सोशल मीडिया

विवेकानंद और ओशो से गहरे तौर पर प्रभावित निशांत जहां एक तरफ देश के विकास में युवाओं का महत्वपूर्ण योगदान मानते हैं, वहीं सोशल मीडिया को युवाओं के लिए खतरनाक भी मानते हैं। वह कहते हैं सोशल मीडिया उपयोगी है लेकिन यह हमारे जीवन और समाज को गहरे तक प्रभावित कर रहा है।

सामान्यीकरण से बचना होगा

निशांत का मानना है कि समाज में विभाजनकारी ताकतें हावी हो रही हैं। इसके लिए कोई राजनीतिक दल या कोई एक समूह ही जवाबदेह नहीं है। वे कहते हैं कि ऐसे खतरों के पीछे सामान्यीकरण एक बड़ी वजह है। हमें चीजों के सामान्यीकरण से बचना होगा। निशांत कहते हैं कि किसी एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों के काम के लिए आप पूरे समुदाय या जाति को गाली नहीं दे सकते, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा ही हो रहा है।

पर्यावरण को लेकर भी बहुत संवेदनशील हैं निशांत

निशांत ने केवल शिक्षा और समाज के लिए काम नहीं किया, बल्कि वह पर्यावरण को लेकर भी बहुत संवेदनशील हैं। वह आने वाले पीढ़ी के लिए बहुत चिंतित हैं। उनका मानना है कि बच्चे प्रकृति के मूल तत्वों से दूर होते जा रहे हैं। शहरों में खेल के मैदान सिमटते जा रहे हैं। यह चिंता का विषय है।

बिहार की धरती शिक्षा के क्षेत्र में प्राचीन काल से अपनी एक अलग पहचान रखती है। यहां विक्रमशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय रहे, जहां सैकड़ों साल पहले ही विदेशों के छात्र भी पढ़ने आते थे। मौजूदा समय में जब बिहार की शिक्षा व्यवस्था गंभीर चुनौतियों से जुझ रही है, वहां निशांत सिंह जैसे युवा शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता एक बड़ी उम्मीद बनकर सामने आए हैं। जागरण ऐसे युवाओं को सलाम करता है। शिक्षा, युवा, समाज और पर्यावरण के लिए किए गए कार्यों की वजह से ही निशांत पिछले साल 2018 में Icon of Bihar पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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