नेताजी की जयंती पर विशेष: सुभाषचंद्र के बाद शीलभद्र थे अंग्रेजों के नंबर दो युद्ध अपराधी

पटना जिले के बख्तियारपुर में जन्मे शीलभद्र याजी ने संघर्ष और विचारधारा के स्तर पर नेताजी का आखिर तक साथ दिया। नेताजी पर 50 हजार रुपये और शीलभद्र याजी पर 25 हजार रुपये का इनाम था । पूरे बिहार में उनकी 438 सभाएं कराई थी।

By Sumita JaiswalEdited By: Publish:Sat, 23 Jan 2021 09:32 AM (IST) Updated:Sat, 23 Jan 2021 10:48 PM (IST)
नेताजी की जयंती पर विशेष: सुभाषचंद्र के बाद शीलभद्र थे अंग्रेजों के नंबर दो युद्ध अपराधी
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की फाइल फोटो।

पटना, अरविंद शर्मा । पटना जिले के बख्तियारपुर में जन्मे शीलभद्र याजी ने संघर्ष और विचारधारा के स्तर पर शुरू से आखिर तक नेताजी सुभाषचंद्र बोस का साथ निभाया। इसी समर्पण के चलते अंग्रेजों ने नेताजी के बाद उन्हेंं नंबर दो का युद्ध अपराधी घोषित कर रखा था। नेताजी पर 50 हजार रुपये का इनाम था और शीलभद्र याजी पर 25 हजार रुपये का। 1939 में जब फॉरवर्ड ब्लाक की स्थापना हुई तो नेताजी ने उन्हेंं बिहार के प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी। बाद में भी नेताजी ने जब देश छोड़ दिया तो याजी उनके उत्तराधिकारी के रूप में फारवर्ड ब्लॉक के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए।

पूरे बिहार में 438 सभाएं करवाई

शीलभद्र याजी के पुत्र सत्यानंद याजी के पास नेताजी से जुड़ी पूरी दास्तान है, जो वक्त-बेवक्त अपने पिता से सुना करते थे। यह भी कि 1939-40 में नेताजी ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ जन जागृति के लिए अभियान छेड़ा तो शीलभद्र याजी के बुलावे पर वह बिहार के दौरे पर आए। तब याजी ने नेताजी के लिए पूरे बिहार में 438 सभाओं का आयोजन कराया था। रामगढ़ (अब झारखंड) का कांग्रेस अधिवेशन भी याजी ने ही आयोजित कराया था, जिसमें महात्मा गांधी से नेताजी के मतभेद खुलकर सामने आए थे।

उनके प्रयासों के चलते स्‍वतंत्रता सेनानियों को पेंशन

नेताजी के करीबी होने का खामियाजा शीलभद्र याजी को बार-बार भुगतना पड़ा। इसी का नतीजा था कि ब्रिटिश पुलिस ने 1946 में उन्हेंं दो-दो बार कोर्ट मार्शल किया। इसी साल नौसेना को विद्रोह के लिए उकसाने के आरोप में उन्हेंं गिरफ्तार किया गया। आठ महीने जेल में रहे। आजादी के बाद ही रिहा हो पाए। आजादी के बाद याजी ने स्वतंत्रता सेनानियों के हक की लड़ाई भी शुरू की। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर का संगठन बनाया। अरसे तक संघर्ष किया, जिसके बाद केंद्र सरकार को झुकना पड़ा। इंदिरा गांधी ने तीन दशक बाद 1980 में उनके प्रयासों के चलते ही देशभर के स्वतंत्रता सेनानियों को पेंशन आदि की सुविधाएं दीं। याजी इस संगठन के तीसरे राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और आजीवन बने रहे। नेताजी ने जब आजाद हिंद फौज की स्थापना की तो शीलभद्र याजी ने देश में रहते हुए उन्हें मजबूती दी। वर्मा की सीमा पर मणिपुर के मोइरंग में आजाद ङ्क्षहद फौज के 26 हजार बलिदानियों का स्मारक बनवाया, जिसका उद्घाटन 1955 में हुआ।

नेताजी के संदेश आते ही फैल गया आंदोलन

1942 की जनक्रांति में बिहार की बड़ी भागीदारी थी। सुभाषचंद्र बोस के ब्रॉडकास्ट संदेश पहुंच रहे थे। जहां-तहां से ङ्क्षहसा की खबरें भी आ रही थीं किंतु अनुशासित समूह भी सक्रिय थे। इसमें फॉरवर्ड ब्लाक के शीलभद्र याजी और किसान सभा के संतलाल सिंह (बांका) प्रमुख थे। उनके साथ यूपी-बिहार के केशव प्रसाद शर्मा, शिवदास घोष, धनराज शर्मा, लंबोदर मुखर्जी, उषा मुखर्जी, बांका के संतोष शर्मा और संध्या देवी, दरभंगा के रामलोचन सिंह एवं नियामतपुर के अंबिका सिंह भी सक्रिय थे। महेंद्र चौधरी को 1943 में गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी दे दी गई। स्वामी सहजानंद सरस्वती भी आंदोलनकारियों को प्रोत्साहित कर रहे थे। शीलभद्र याजी की अपील पर गया जिले के यदुनंदन शर्मा एवं जगलाल चौधरी भी अति सक्रिय हो गए थे। अंग्रेज-भगाओ आंदोलन के लिए आम लोगों को प्रोत्साहित कर रहे थे ।

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