नव-संवत्सर के साथ कल से नवरात्र प्रारंभ, जानें कलश स्थापन का मुहूर्त और पूजा की विधि
इसा बार 9 दिनों का पूर्ण नवरात्र एवं 15 दिन का पूर्ण पक्ष सामान्यता शुभ फल कारक है। 20 को महाष्टमी पूजा और 21 को महानवमी है। मंगलवार की सुबह 846 बजे से पहले कलश स्थापन करना अच्छा होगा। जाने शुभ मुहूर्त और पूजन की विधि।
गिरधारी अग्रवाल, बक्सर। कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से की थी और इस 12 महीने की काल विशेष अवधि को एक संवत्सर कहते हैं। मंगलवार को नवसंवत्सर प्रारम्भ हो रहा है। इसके साथ ही वासंतिक नवरात्रि भी प्रारम्भ हो जाएंगे। नवरात्र में मां भगवती के नौ स्वरूपों के साथ-साथ नौ गौरी के दर्शन पूजन का भी शास्त्र सम्मत प्रमाण है। आचार्य मुक्तेश्वरनाथ शास्त्री ने बताया कि 9 दिनों का पूर्ण नवरात्र एवं 15 दिन का पूर्ण पक्ष सामान्यता शुभ फल कारक है।
इस वर्ष के राजा मंगल
उन्होंने कहा कि उत्सव धर्मिता सनातन धर्म का प्राण तत्व है और नए सत्र में इसका शुभारंभ मंगलवार के दिन से हो रहा है, यानि इस वर्ष के राजा मंगल है। शास्त्री जी ने कहा कि सनातन धर्म में व्रत त्योहार के निर्धारण का आधार-स्तंभ चंद्र संवत्सर ही होता है और वाराणसी पंचांग रूपेण महाष्टमी का व्रत एवं पूजन तथा घर-घर में की जाने वाली भवानी उत्पत्ति की पूजा जिसे महानिशा पूजा (नवमी पूजा) के नाम से जाना जाता है वह इस महीने की 20 तारीख दिन मंगलवार को सम्पन्न होगी। वहीं, महानवमी की पूजा 21 तारीख दिन बुधवार को तथा नवरात्रि के समापन से सम्बंधित हवन पूजन भी इसी रात 7:01 बजे तक किया जा सकेगा। आचार्य के मुताबिक व्रतियों द्वारा सुबह 8:46 बजे से पूर्व कलश स्थापन सर्वोत्तम
धर्मशास्त्र के अनुसार मां भगवती की उपासना में कलश स्थापना का खास महत्व है जो प्रतिपदा तिथि में प्रात: समय किया जाना सर्वोत्तम है। विधिपूर्वक कलश स्थापना करने से इसका पूर्ण लाभ प्राप्त होता है। हालांकि, यदि सुबह के समय कलश स्थापना में कोई अड़चन पैदा हो रही है तो वे मध्याह्न अभिजीत मुहूर्त (11.35 से 12.23 बजे के मध्य) में विकल्प के रूप में कर सकते हैं। वैसे कलश का स्थापन प्रात:काल में सुबह 8 बजकर 46 मिनट से पूर्व कर लेना बेहतर होगा।
वर्ष में चार बार आता है नवरात्रि
कर्मकांडियों के अनुसार नवरात्रि का त्योहार वर्ष में चार बार आता है। चैत्र और शारदीय नवरात्रि के साथ दो और भी नवरात्रि होती है, जिन्हें माघ नवरात्रि और आषाढ़ नवरात्रि कहा जाता है। नवरात्रि में मां दुर्गा के अलग-अलग 9 स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। हालांकि, इस नवरात्रि की धार्मिक मान्यता अधिक है। जो 13 तारीख की मंगलवार से प्रारम्भ हो रही है और इसका समापन 21 तारीख को होगा। जिसमें भक्त इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि की पूजा-अर्चना करेंगे।
नवरात्रि की पूजन विधि
आचार्यों के अनुसार चैत्र नवरात्र की प्रतिपदा तिथि को प्रात: काल स्नान करने के बाद आगमन, पाद्य, अर्घय, आचमन, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंध, अक्षत-पुष्प, धूप-दीप, नैवेद्य-तांबूल, नमस्कार-पुष्पांजलि एवं प्रार्थना आदि उपचारों से पूजन करना चाहिए। नवीन पंचांग से नव वर्ष के राजा, मंत्री, सेनाध्यक्ष, धनाधीप, धान्याधीप, दुर्गाधीप, संवत्वर निवास और फलाधीप आदि का फल श्रवण करें। निवास स्थान को ध्वजा-पताका, तोरण-बंदनवार आदि से सुशोभित करें।
देवी के स्थान को सुसज्जित कर गणपति और मातृका पूजन कर घट स्थापना करें। लकड़ी के पटरे पर पानी में गेरू घोलकर नौ देवियों की आकृति बनाएं या सिंहवाहिनी दुर्गा का चित्र या प्रतिमा पटरे पर या इसके पास रखें। पीली मिट्टी की एक डली व एक कलावा लपेट कर उसे गणेश स्वरूप में कलश पर विराजमान कराएं। घट के पास गेहूं या जौ का पात्र रखकर वरुण पूजन और भगवती का आह्वान करें ।