लंदन के संग्रहालय की जान है 211 साल पहले पटना में बनी मुहर्रम की पेंटिंग
हिंदू कलाकारों ने धर्म की दीवारें तोड़कर मुहर्रम जलूस व ताजिया पर खूबसूरत पेंटिंग्स बनाई हैं। ऐसी ही कुछ पेंटिंग्स द विक्टोरिया एंड अलबर्ट म्यूजियम की जान बनी हुई है।
पटना [भुवनेश्वर वात्स्यायन]। भारत की साझी विरासत में धार्मिक सद्भाव हर दौर में कायम रहा है। आज मुहर्रम के अवसर पर इसकी ही बात करें तो इसके ताजिया जलूस की परंपरा में मुसलमानों के साथ हिंदुओं की भी भूमिका रहती आई है। हिंदू कलाकारों ने धर्म की दीवारें तोड़कर मुहर्रम जलूस व ताजिया पर खूबसूरत पेंटिंग्स बनाई हैं।
मुहर्रम के ताजिया जुलूस के दीदार के बहाने यह भी जानिए कि आज से दो सौ ग्यारह साल पहले पटना के एक चित्रकार ने मुहर्रम के दृश्य पर एक बड़ी ही खूबसूरत पेंटिंग्स बनाई थी। 'पटना कलम' शैली के उस हिन्दू चित्रकार सेवक राम की पेंटिंग्स इतनी खूबसूरत हैं कि वे लंदन स्थित विश्व के सबसे बड़े डेकोरेटिव आर्ट्स एंड डिजायन संग्राहलय 'द विक्टोरिया एंड अलबर्ट म्यूजियम' की जान बनी हुईं हैं। मुहर्रम के दो दिन पहले पाकिस्तान में पटना के उस हिंदू कलाकार की मुहर्रम पर बनी उन खास पेंटिंग्स की खूब चर्चा हुई थी।
ताजिए दो सौ साल पहले ज्यादा खूबसूरत बनते थे
चित्रकार सेवक राम की पेंटिंग्स में ताजिए का खूबसूरत चित्रण है। उन पेंटिंग्स से स्पष्ट है कि दो सौ सालों के दरम्यान ताजिए व मुहर्रम जुलूस में कोई खास बदलाव नहीं आया है। 2018 में जिस तरह से ताजिए बनते हैैं, वही अंदाज 1807 में भी था। ताजिए के अखाड़े में तलवारबाजी भी आज की ही तरह दिख रही है। छोटे बच्चों की मौजूदगी भी दिखती है। सफेद कपड़े पहने लोग अधिक संख्या में हैैं। हां, पहले की तुलना में रंगों का इस्तेमाल में फर्क जरूर आया है।
शिवा लाल की पेंटिंग्स में ताजिए जुलूस के कई रंग
मुहर्रम को केंद्र में रखकर पेंटिंग बनाने वाले 'पटना कलम' शैली के कलाकारों में सेवक राम अकेले नहीं थे। कई अन्य हिंदू चित्रकारों ने भी मुहर्रम को केंद्र में रख पेंटिग्स बनाई है। 19वीं सदी के मध्य में शिवा लाल ने वॉटर कलर का इस्तेमाल कर मुहर्रम की जो पेंटिंग बनाई थीं, उसमें अखाड़े की मौजूदगी के साख-साथ दो लेयर में बना ताजिया जिस तरह की खूबसूरती के साथ है वह आज नहीं दिखता। हाथी पर संभवत: राजा की सहभागिता भी ताजिए के पहलाम वाले जुलूस में है। उनकी एक पेंटिंग मुहर्रम के दौरान इमामबाड़े के दृश्य से संबंधित भी है।
द विक्टोरिया एंड अलबर्ट संग्रहालय
ब्रिटेन में लंदन स्थित 'द विक्टोरिया एंड अलबर्ट म्यूजियम' दुर्लभ कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध है। इस संग्रहालय की स्थापना 1852 में हुई थी। वहां स्थाई रूप से 2.7 मिलियन प्रदर्श हैैं। ये प्रदर्श मुख्य रूप से डेकोरेटिव आर्ट व डिजायन से संबंधित हैैं।
पटना कलम शैली, एक नजर
बिहार की राजधानी पटना व आसपास के इलाकों में ब्रिटिश काल में फली-फूली चित्रकला की शैली 'पटना कलम' शैली है। इसे 'कंपनी पेंटिंग' भी कहते हैैं। काल 18वीं शताब्दी के आरंभिक काल से 20वीं शताब्दी के मध्य काल के बीच का माना जाता है। यह शैली 1770 तक पूरी तरह से स्थापित हो गयी थी। इसका विस्तार पटना, दानापुर व आरा तक था। पटना में पटना सिटी स्थित दीवान मुहल्ला, लोदी कटरा औैर मच्छरहट्टा मुहल्ले में इसके कलाकार रहते थे। सेवक राम व शिवा राम ऐसे ही कलाकारों में शामिल थे।
मुहर्रम के ताजिया जुलूस के दीदार के बहाने यह भी जानिए कि आज से दो सौ ग्यारह साल पहले पटना के एक चित्रकार ने मुहर्रम के दृश्य पर एक बड़ी ही खूबसूरत पेंटिंग्स बनाई थी। 'पटना कलम' शैली के उस हिन्दू चित्रकार सेवक राम की पेंटिंग्स इतनी खूबसूरत हैं कि वे लंदन स्थित विश्व के सबसे बड़े डेकोरेटिव आर्ट्स एंड डिजायन संग्राहलय 'द विक्टोरिया एंड अलबर्ट म्यूजियम' की जान बनी हुईं हैं। मुहर्रम के दो दिन पहले पाकिस्तान में पटना के उस हिंदू कलाकार की मुहर्रम पर बनी उन खास पेंटिंग्स की खूब चर्चा हुई थी।
ताजिए दो सौ साल पहले ज्यादा खूबसूरत बनते थे
चित्रकार सेवक राम की पेंटिंग्स में ताजिए का खूबसूरत चित्रण है। उन पेंटिंग्स से स्पष्ट है कि दो सौ सालों के दरम्यान ताजिए व मुहर्रम जुलूस में कोई खास बदलाव नहीं आया है। 2018 में जिस तरह से ताजिए बनते हैैं, वही अंदाज 1807 में भी था। ताजिए के अखाड़े में तलवारबाजी भी आज की ही तरह दिख रही है। छोटे बच्चों की मौजूदगी भी दिखती है। सफेद कपड़े पहने लोग अधिक संख्या में हैैं। हां, पहले की तुलना में रंगों का इस्तेमाल में फर्क जरूर आया है।
शिवा लाल की पेंटिंग्स में ताजिए जुलूस के कई रंग
मुहर्रम को केंद्र में रखकर पेंटिंग बनाने वाले 'पटना कलम' शैली के कलाकारों में सेवक राम अकेले नहीं थे। कई अन्य हिंदू चित्रकारों ने भी मुहर्रम को केंद्र में रख पेंटिग्स बनाई है। 19वीं सदी के मध्य में शिवा लाल ने वॉटर कलर का इस्तेमाल कर मुहर्रम की जो पेंटिंग बनाई थीं, उसमें अखाड़े की मौजूदगी के साख-साथ दो लेयर में बना ताजिया जिस तरह की खूबसूरती के साथ है वह आज नहीं दिखता। हाथी पर संभवत: राजा की सहभागिता भी ताजिए के पहलाम वाले जुलूस में है। उनकी एक पेंटिंग मुहर्रम के दौरान इमामबाड़े के दृश्य से संबंधित भी है।
द विक्टोरिया एंड अलबर्ट संग्रहालय
ब्रिटेन में लंदन स्थित 'द विक्टोरिया एंड अलबर्ट म्यूजियम' दुर्लभ कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध है। इस संग्रहालय की स्थापना 1852 में हुई थी। वहां स्थाई रूप से 2.7 मिलियन प्रदर्श हैैं। ये प्रदर्श मुख्य रूप से डेकोरेटिव आर्ट व डिजायन से संबंधित हैैं।
पटना कलम शैली, एक नजर
बिहार की राजधानी पटना व आसपास के इलाकों में ब्रिटिश काल में फली-फूली चित्रकला की शैली 'पटना कलम' शैली है। इसे 'कंपनी पेंटिंग' भी कहते हैैं। काल 18वीं शताब्दी के आरंभिक काल से 20वीं शताब्दी के मध्य काल के बीच का माना जाता है। यह शैली 1770 तक पूरी तरह से स्थापित हो गयी थी। इसका विस्तार पटना, दानापुर व आरा तक था। पटना में पटना सिटी स्थित दीवान मुहल्ला, लोदी कटरा औैर मच्छरहट्टा मुहल्ले में इसके कलाकार रहते थे। सेवक राम व शिवा राम ऐसे ही कलाकारों में शामिल थे।