बिहार में कन्हैया फैक्टर ने बिगाड़ा आरजेडी-कांग्रेस का रिश्ता, विधानसभा उपचुनाव में आरपार के हालात- INSIDE STORY

बिहार के विपक्षी महागठबंधन में आरजेडी व कांग्रेस आरपार की लड़ाई के मूड में दिख रहे हैं। इस लड़ाई के केंद्र में कन्हैया कुमार की कांग्रेस में एंट्री है। आरजेडी नहीं चाहता कि महागठबंधन में तेजस्‍वी यादव के मुकाबले का कोई और चेहरा सामने आए। यहां पढ़ें इनसाइड स्‍टेारी।

By Amit AlokEdited By: Publish:Mon, 04 Oct 2021 11:53 AM (IST) Updated:Mon, 04 Oct 2021 03:50 PM (IST)
बिहार में कन्हैया फैक्टर ने बिगाड़ा आरजेडी-कांग्रेस का रिश्ता, विधानसभा उपचुनाव में आरपार के हालात- INSIDE STORY
तेजस्‍वी यादव एवं कन्‍हैया कुमार। फाइल तस्‍वीरें।

पटना, अरविंद शर्मा। Bihar Politics बिहार में 12 वर्षों के बाद महागठबंधन (Mahagathbandhan) के आधार राष्‍ट्रीय जनता दल (RJD) एवं कांग्रेस (Congress) दो विपरीत धुरी पर खड़े नजर आ रहे हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन तात्कालिक कारण है कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) का भारतीय कम्‍युनिस्‍ट पार्टी (CPI) छोड़कर कांग्रेस का दामन थामना। बिहार में महागठबंधन (Mahagathbandhan) की ड्राइविंग सीट पर बैठे आरजेडी को यह बुरा लगा है। तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के रास्ते में अड़चन दिखी। विस्फोट तो होना ही था। विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) में गठबंधन के तहत कांग्रेस को 243 में से 70 सीटें देकर बाद में कोसने वाले लालू प्रसाद (Lalu Prasad Yadav) ने उपचुनाव (Bihar Assembly By-election) को मौके की तरह लिया। उसके हिस्से की सीट छीनकर हैसियत बताना जरूरी समझा।

आरजेडी की रणनीति को वामदलों का मौन समर्थन

आरजेडी की रणनीति में वामदलों (Left Parties) का भी मौन समर्थन माना जा रहा है। कन्हैया के स्टारडम से उम्मीद लगाने वाले वामदलों को कांग्रेस के रवैये से झटका लगा है। साथी दल को तोड़ने को महागठबंधन धर्म के खिलाफ भी माना गया। वामदल के एक बड़े नेता का कहना है कि गठबंधन के साथी दल ही अगर सहयोगी पार्टी के कार्यकर्ता पर डोरा डाले तो इसे ठीक कैसे कहा जा सकता है। ऐसे में कांग्रेस के कद को छोटा करने के आरजेडी की रणनीति पर वामदलों ने आपत्ति नहीं जताई, बल्कि चुप्पी लगा ली।

दोनों सीटों पर लड़ने की कर दी इकतरफा घोषणा

यही कारण है कि आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह (Jagdanand Singh) ने रविवार को मीडिया के सामने दोनों सीटों पर लड़ने की एकतरफा घोषणा कर दी। दावा भी किया कि साथी दलों की सहमति ले ली गई है। जबकि, कांग्रेस को इसके बारे में बताया तक नहीं गया। सिर्फ वामदलों से बातचीत को ही आमराय मान ली गई। भाकपा माले (CPI ML) के राज्य सचिव कुणाल ने आरजेडी से बातचीत की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि हमसे संपर्क किया गया था। हम चाहते हैं कि महागठबंधन में बिखराव नहीं हो, लेकिन यह सोचना दोनों दलों का फर्ज होना चाहिए। किसी एक दल से गठबंधन नहीं बनता।

कन्हैया के कांग्रेस में आने का दिख रहा असर

कन्हैया के कांग्रेस में आने का असर आरजेडी में पहले से ही देखा जा रहा है। पहले तो आरजेडी के नेताओं ने कोई प्रतिक्रिया देने से परहेज किया। लालू-तेजस्वी चुप रहे। आरजेडी के मुख्य प्रदेश प्रवक्ता भाई वीरेंद्र ने कन्हैया को पहचानने से ही इनकार कर दिया। तीन दिन बाद शिवानंद तिवारी ने मुंह खोला तो कन्हैया के खिलाफ ही बयान दिया। कांग्रेस को भी कोसा। उपचुनाव में कांग्रेस की दावेदारी को खारिज करने से पहले शिवानंद का बयान भी संकेत था कि कांग्रेस का फैसला आरजेडी को अच्छा नहीं लगा है।

कन्हैया से तेजस्वी की शुरू से ही है अदावत

बिहार में कांग्रेस और आरजेडी की मित्रता पुरानी और विश्वसनीय मानी जाती है। किंतु वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद यह पहला मौका है, जब दोनों दल एक-दूसरे से लड़कर आर-पार करने के रास्ते पर बढ़ चले हैं, जिसके मूल में कन्हैया हैं। दरअसल लालू प्रसाद अपने उत्तराधिकारी के रास्ते में कोई अवरोध नहीं चाहते। इसीलिए लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने कन्हैया के खिलाफ आरजेडी का प्रत्याशी उतार दिया था। सीपीआइ के बारे में प्रचारित भी किया गया कि वह एक जाति और जिले की पार्टी है, लेकिन परिणाम के बाद तेजस्वी की आंखें खुलीं। विधानसभा चुनाव में मार्क्‍सवादी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी और भाकपा माले समेत सीपीआइ को भी साथ लिया। फिर भी कन्हैया के साथ मंच साझा करने से बचते रहे।

...अब आगे-आगे देखिए होता है क्‍या? 

अब सवाल यह है कि आगे क्‍या होगा? कन्‍हैया के कांग्रेस में शामिल होने का बिहार में महागठबंधन व आरजेडी तथा राज्‍य की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा? अब नजरें इसपर टिकी हैं कि कांग्रेस कन्‍हैया को बिहार में कोई जिम्मेदारी सौंपती है या नहीं। शायद आरजेडी को भी इसका इंतजार है। अब आगे-आगे देखिए क्‍या होता है।

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